कोरोना के नाम पर अचानक लॉकडाउन और इस अचानक लॉकडाउन में हमारे देश के प्रवासी श्रमिक,मजदूर या कामगार के साथ जो दुर्दशा हो रही है उसे शोषण और क्रूरता के लिए मानव इतिहास के किसी भी कालखंड से सर्वाधिक स्वर्णिम माना जाएगा। "जान है तो जहान है" के नाम पर श्रमिक,मजदूर या कामगार को इस हालत में छोड़ दिया गया जिसमे उनके पास भोजन के अभाव के साथ साथ ख़ुद को सुरक्षित रखने के लिए महाराष्ट्र,दिल्ली,तमिलनाडु या कर्नाटक से उत्तर प्रदेश या बिहार तक पैदल यात्रा करने की अनिवार्यता थोप दिया गया..इनके लिए इनका देश अचानक से परदेश हो गया..टीवी पर इनकी दशा देख शरीर सिहर जाता है,तंत्रिका तंत्र मानो स्थिर हो जाती है परन्तु इन पर करुणा दिखाने के वजाये समस्त लोकतंत्र इंसानो की इम्युनिटी बढ़ाने के लिए त्रिकटु चूर्ण बाँट रही है.
हमारी लोकतंत्र की इम्युनिटी इतनी ख़राब है ये किसी को कहाँ पता था.लॉकडाउन जैसी विपरीत परिस्थितियों से लड़ने की सरकारी योजना या मानदंडों में प्रवासी श्रमिक,मजदूर या कामगार थे ही नहीं? कोरोना ने अब तक जितने(2752) लोगो की जान ली है उससे कही ज्यादा हमारे लोकतंत्र की ख़राब इम्युनिटी के वजह से प्रवासी श्रमिकों की जान गयी है.
The Hindu अखबार में प्रकाशित एक रिपोर्ट के मुताबिक़ विभिन्न राज्यों में फंसे लगभग ११ हजार प्रवासी श्रमिकों के सर्वेक्षण में पाया गया कि 8 अप्रैल से 13 अप्रैल के बीच, 96% प्रवासी श्रमिकों को सरकार से राशन नहीं मिला। सर्वेक्षण में शामिल लोगों में से 90% को उनके नियोक्ताओं द्वारा मजदूरी भुगतान नहीं मिला। 27 मार्च से 13 अप्रैल तक, सर्वेक्षण में शामिल 70% श्रमिकों के पास जीविका के लिए २०० रुपये से भी कम बचा था. यह सर्वेक्षण Stranded Workers Action Network (SWAN) द्वारा किया गया था .. सुचना के नाम पर झुठ परोसने वालों को The Hindu अखबार की इस रिपोर्ट में देशद्रोह दिखाई देगा,असली देशभक्ति तो सिर्फ जमात जमात की रट लगाना है.
सही तरीक़े से आँकलन करें तो पायेंगे की कोरोना भारत में ख़ुद से नहीं आया,लाया गया है,संक्रमण को सत्कार से पोषित किया गया और फिर इसके लिए आनन् फ़ानन में लॉकडाउन का चक्र तैयार किया गया और यह बताया गया की कैसे गणित/सांख्यिकी और नारों/theme से कोरोना को मात दी जायेगी। याद कीजिये कोरोना संक्रमण से बचने के लिए मास्क कितना ज़रूरी ये दूसरे चरण के लॉकडाउन के उद्घोषणा में बताया गया था!
WHO ने वैश्विक स्तर पर मौत के आंकड़ों का विपणन करके कोरोना महामारी को इतना भयावह बताया मानो समस्त मानव जाती विलुप्त होने वाली है.ध्यान रहे सामान्य तौर पर भारत में हर दिन लगभग 27000 लोगो की मृत्यु होती है! WHO ने दुनिया को वैश्विक स्तर पर मौत के आंकड़ों में कभी भी जनसांख्यिकीय विविधता,समुचित इलाज़ की प्राथमिकता में भेदभाव को बताया ही नहीं। एक ऐसी वैश्विक संस्था जिसकी स्वास्थ्य के मामले में अभिभावक होने की ज़िम्मेदारी है,वह हर दिन एक नयी बात करके गुमराह या यूँ कहे की भयभीत कर रहा है.सोचिये वैश्विक स्तर पर नेतृत्व एवं WHO की इम्युनिटी कितनी ख़राब है?
हमारे देश में ग़रीबी और खाद्य सुरक्षा सर्वदा से स्थानिक रोग रहा है और ऐसे में प्रवासी श्रमिकों,मजदूरों या कामगारों को लॉकडाउन में क्रूरता के साथ अनाथ छोड़ देना हमारे गणराज्य के तीनो स्तम्भों विधायिका,न्यायपालिका,कार्यपालिका की ख़राब इम्युनिटी को दर्शाता है.देश जब इनके लिए खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित नहीं कर सकता वो महामारी से क्या लड़ेगा ? हम कोरोना से जितने से पहले कई बार मरेंगे वह भी तड़प तड़प कर!
हमारे देश में खाद्य सुरक्षा के प्रति करुणा और संवेदनशीलता के उदहारण है.Amma Unavagam(Tamil) को ही ले लीजिये। यह तमिलनाडु सरकार द्वारा संचालित एक खाद्य सब्सिडी कार्यक्रम है। Amma Unavagam का शाब्दिक अर्थ है माँ की कैंटीन (अम्मा कैंटीन)। यह भारत में किसी भी सरकार द्वारा चलाई गई पहली योजना है। बिना किसी योजना के अचानक से थोपे गए लॉकडाउन के दौरान तमिलनाडु में अम्मा कैंटीन गरीबों के लिए वरदान सिद्ध हुआ है.सत्तारूढ़ एआईएडीएमके राज्य में मौजूद कैंटीन के भोजन का पूरा खर्च वहन करके अम्मा कैंटीन को ग्राहकों के लिए मुफ्त कर चुकी है. राज्यभर में लगभग 650 अम्मा कैंटीन में से अकेले चेन्नई में ही 407 हैं. यहां सुबह के नाश्ते में इडली, दोपहर के लिए विभिन्न प्रकार के चावल जबकि रात के खाने के लिए रोटी आदि भी उपलब्ध कराई जाती है.
भारत एक श्रमिक अधिशेष देश है और इसके लिए सबसे पहले लोकतांत्रिक व्यवस्थाओं में गरीबों एवं श्रमिकों के प्रति करुणा के लिये मजबूत इम्युनिटी की आवश्यकता है जिससे की हमारी व्यवस्था विपरीत परिस्थितियों में लोगो को कम से कम भोजन जैसी बुनियादी जरूरतों को सुनिश्चित कर सके.
हमे शहर-शहर,गाँव-गाँव अम्मा कैंटीन जैसी खाद्य सुरक्षा चाहिए ताकि ग़रीब, प्रवासी श्रमिक लॉकडाउन जैसी विपरीत परिस्थितियों का डट कर मुक़ाबला कर सके....हमे आरोग्य सेतु ऍप नहीं,भोजन सेतु ऍप चाहिए...
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