Negative Attitude

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Saturday, June 6, 2020

हम "सामाजिक" होते हुए भी "शारीरिक दूरी" से कोरोना से लड़ सकते हैं...

जैसे जैसे कोरोनोवायरस संकट प्रत्येक गुजरते दिन के साथ भयंकर होता रहा है, हर किसी के दिमाग में एक ही बात चल रही है की "यह सब कब समाप्त होगा?" सही जवाब है- किसी के पास कोई सुराग नहीं है। लेकिन पता नहीं दुनिया के तमाम प्रबुद्धजन यह बताने से क्यों हिचक रहे कि यह दुनिया का अंत नहीं है।

संसार की प्रत्येक प्रणाली जो मानव के सहज अस्तित्व के लिए जिम्मेदार है, "पोस्ट कोविड", "न्यू नॉर्मल" और "सोशल डिस्टेंसिंग" आदि जैसे कथनों को बेचने में काफी व्यस्त हैं ,मानो कल पूरी तरह से कोविड मुक्त नई दुनिया होगी? सत्य तो यह है कि हमें अभी लंबे समय तक कोरोना के साथ रहने की आदत डालनी होगी।

इन दिनों,सभी सोशल/मास मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर वेबिनार और बहुत सारे छोटे डेटा एवं अंतर्दृष्टि की होड़ लगी हुई है जो मुख्य रूप से मंदी, कम उत्पादन, बिक्री और खपत के "डर" के साथ साथ कोरोना काल के बाद मानव शरीर में नए तंत्रिका तंत्र होने को भी प्रोत्साहित कर रही है.


इसमें तरह के अंतर्दृष्टि में नया क्या है? यह स्पष्ट है कि जब जनता को लंबी अवधि के लिए लॉकडाउन का एकमात्र विकल्प दिया जाता है,तो उपभोक्तावाद के सभी स्तरों पर "उपभोग/खपत" तो बंद हो ही जाएगी।


यहाँ सवाल यह है कि क्या हमें ऐसी अंतर्दृष्टि / धारणाओं पर विश्वास करने की ज़रूरत है जो "भय" को प्रोत्साहित करती हैं? भारत में "CoVid प्रबंधन" के लिए अब तक के सभी शोध और सांख्यिकीय मॉडलिंग निराशाजनक रहे हैं? और यह हमें एक मजबूत संदेश देता है कि जब पूरा पारिस्थितिकी तंत्र अशांत अवस्था से गुजर रहा हो,तो कोई भी शोध या धारणा केवल भ्रमित करने का कार्य ही करेगी।

भारत सरकार की "CoVid19 प्रबंधन टीम" कोरोना वायरस की तरह ही अनूठा है और इन्होने अंततः यह पाया है कि महामारी से लड़ने के लिए रोकथाम ही एकमात्र उपकरण है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन यह "8pm कठिन फैसले" करने की आदत को भुनाने के लिए एक राजनीतिक अवसरवाद साबित हुआ और इसके परिणामस्वरूप "भय" और "मनुष्यों पर विश्वास की कमी" के रूप में एक और संक्रामक मनोवैज्ञानिक बीमारी उत्पन्न हो गयी। हम कानूनों को निष्क्रिय करके लॉकडाउन को अनलॉक तो कर सकते हैं लेकिन "सोशल डिस्टेंसिंग" को बनाए रखने के डर से जो "समाज में भय और विश्वास की कमी" हुई है इसका इलाज़ ढूंढ़ निकालना एक कठिन कार्य होगा।

यदि मास्क,हाथ की स्वच्छता और शारीरिक दुरी ही "कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी" के लिए मुख्य सुरक्षात्मक उपकरण हैं, तो हमें स्थायी रूप से "सोशल डिस्टेंसिंग" शब्द का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए अन्यथा मनुष्य,कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी से कम,मनुष्यों से अधिक डरेगा और जिसका अर्थव्यवस्था पर निश्चित तौर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ।

हमारे नेतागण और तमाम गणमान्य बुद्धिजीवियों को इस महामारी के दौरान "शारीरिक दुरी" के जगह पर "सामाजिक दुरी" शब्द कैसे अप्रासंगिक है और इसका जो त्रुटिपूर्ण उपयोग किया जा रहा है,के बारे में बड़े पैमाने पर जन संपर्क/जन संचार शुरू करना चाहिए ताकि मनुष्यों के बीच विश्वास क़ायम किया जा सके. 

हम, मनुष्य सामाजिक होने के लिए यंत्रस्थ हैं। हम "सामाजिक" होकर भी "शारीरिक दूरी" को बनाए रखते हुए महामारी से आसानी से लड़ सकते हैं। कृपया "सामाजिक दुरी /Social Distancing " शब्द का डर मत पाले, महामारी कुछ समय में दूर हो जाएगी लेकिन हमें सामाजिक ही रहना है .. !!


मास्क का उपयोग करें,हाथ को साफ़ करते रहे,सार्वजनिक स्थानों पर "शारीरिक दूरी" बनाए और प्रधान चौकीदार के कथनानुसार हमेशा आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयासरत रहे..!

Monday, June 1, 2020

सन्देश "आत्मनिर्भर" होने का नहीं "परमात्मनिर्भर" का है

हर भारतवासी को गर्व होनी चाहिए की भारत अब दुनिया के उन सात देशों में आ गया है जहां कोरोना संक्रमण के सबसे अधिक मामले हैं। फ्रांस को भी पीछे धकेल दिया है। भारत में कोरोना संक्रमितों की संख्या 1,88,883 हो गई है। फ्रांस में 1,88,752 मरीज़ हैं। भारत से ठीक आगे यानि छठे पायदान पर इटली है और इसको पीछे छोड़ने में ज़्यादा देर  लगेगी। अमरीका हर क्षेत्र में अव्वल रहता है और कोरोना में भी वह अव्वल ही है,यहाँ 18 लाख से अधिक कोरोना संक्रमण के केस हैं। लॉक डाउन के शुरुआत में भारत कोरोना संक्रमण के मामले मेंं विश्व में २२वें नंबर पर था,आज 7 वें नंबर पर हैं, भारत विश्व में एक मात्र ऐसा देश होगा जहाँ ऐसे वक़्त में लॉकडाउन के कई वन्दिशों में छूट दी जा रही है जब कोरोना संक्रमण के मामले हर दिन एक नयी उचाईयों को छू रही है वर्ना हर कोरोना प्रभावित देश लॉकडाउन तभी हटाने पर विचार करती है जब संक्रमण की रफ़्तार कम होने लगती है.


भारत बिना कोई योजना के सीधे लॉकडाउन की ओर चला गया। जबकि विश्व स्वास्थ्य संगठन ने ऐसा कोई सख्त सुझाव नहीं दिया था। लॉकडाउन के दो उद्देश्य थे। कोरोना संक्रमण के फ़ैलाव को रोकना और स्वास्थ्य सुरक्षा को दुरुस्त करना। दोनों ही मोर्चों पर लॉकडाउन पूरी तरह से विफल रहा...सरकार कोरोना प्रबंधन में हर मोर्चे पर ध्वस्त रही है,लॉकडाउन वृहत पैमाने पर टेस्टिंग और कांटेक्ट ट्रेसिंग के ज़रिए कोरोना की रफ़्तार पर नियंत्रण करने का एक अवसर था लेकिन सरकार की दूरदर्शिता का आभाव,लापरवाही,बदइंतज़ामी एवं मजदूरों के पलायन में देशव्यापी अराजकता से ध्यान भटकाने के लिए थाली पिटवाकर,दिया जलाकर लॉकडाउन को टोटका की तरह इस्तेमाल किया और अब जब सरकार को उनके द्वारा लिए फैसले निकम्मी सिद्ध हुई तो आत्मनिर्भर होने वाले सन्देश के साथ कोरोना से हाथ धो सबकुछ राज्य सरकारों पर थोप दिया। 

प्रधान मंत्री के लिए जनता के लिए मन की बात बिल्कुल स्पष्ट थी- "आपका जीवन,आपका परिवार- आप जाने,आपका काम जाने- कोरोना से बच गये तो बच गये,जो चल बसे तो आपका नसीब- कोरोना रहेगा और गाजे बाजे के साथ रहेगा"-बस आपको सिर्फ़ प्रधान मंत्री की लोकप्रियता पर गर्व करते रहना है क्योंकि अभी भारत के विकास रूपी लोकप्रियता लम्बे समय तक निम्न स्तर पर रहने वाली है! कोरोना की विफल सफलता पर राष्ट्राध्यक्ष की लोकप्रियता,राष्ट्र की प्रसिद्धि से ज़्यादा ज़रूरी है.

कोरोना को स्थानिक रोग के तौर पर सीमित कर दिया गया होता तो अलग बात होती लेकिन ये जितने समय तक महामारी के रूप में रहेगा,अनिश्चितता और स्थगन हमारे जीवन का दीर्घकालीन हिस्सा होगा। हमारे सर्वाधिक लोकप्रिय प्रधान मंत्री ने आत्मनिर्भरता का सन्देश मानो यूँ दिया जैसे की लॉक डाउन से पहले  प्रत्येक भारतीय को विपरीत परिस्थितियों में एक निश्चित सामाजिक सुरक्षा मिलती थी जो कोरोना काल में बंद हो जायेगी। हम समस्त भारतवासी सदैव से ही आत्मनिर्भर ही रहते है क्योंकि हमे पता है की हमारे प्रधान मंत्री का आत्मनिर्भर "PM-CARES" फंड "CITIZEN CARE" के लिए नहीं होगा?


सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकोनॉमी (सीएमआईई) के ताज़ा आंकड़ों के अनुसार मई 2020 में भारत की बेरोजगारी दर 23.5 फीसदी है.फरवरी में ये दर 7.8 फीसदी और मार्च में 8.8 फीसदी थी। सेंटर फॉर मॉनिटरिंग इंडियन इकॉनमी के महेश व्यास की एक टीवी चैनल से बातचीत के अनुसार मई में तक़रीबन 10 करोड़ लोग बेरोज़गार हुए है.कितने लोगों की सैलरी कट हुई है इसकी सटीक गणना उनके पास नहीं थी लेकिन उनके अनुमान के अनुसार ये करीब 5-6 करोड़ होनी चाहिए। भारत में राष्ट्रीय स्तर पर परिवार का औसत अकार तक़रीबन 5 व्यक्ति है और उपरोक्त संख्या मोटे तौर पर यह तो जरूर बताती है की इस समय हमारे देश में तक़रीबन 60 करोड़ जनसँख्या (देश की आबादी का 45-46%) आर्थिक बदहाली से गुज़र रही है ऐसे में प्रधानमंत्री के आत्मनिर्भरता का सन्देश स्पष्ट तौर से लोकतंत्र की क्रूरता और प्रजातान्त्रिक मूल्यों से लोककल्याण के विलुप्त होने की सन्देशवाहिका है. 


अंधकार में मत रहिये, प्रधान मंत्री का सन्देश "आत्मनिर्भर" होने का नहीं "परमात्मनिर्भर" का है....अपनी रक्षा ख़ुद करें। शरीर से दूरी बनाए....मास्क ज़रूर लगाएं।



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