महामारी जैसे घोर संकट के समय में अगर देश का मुखिया/ प्रधानमंत्री सभी तरह के कर वसूलने के बाद समाज के सभी वर्गों पर करुणा दिखाने के बजाये,देश की जनता को आत्मनिर्भर बनने के संकल्प लेने लिए बार- बार जोर डालते हो तो..इसका आम आदमी क्या मतलब निकाले?
ज़िल्ल-ए-इलाही,आप,भारत में अच्छे दिन लाने का फरिश्ता बन प्रधानमंत्री की सत्ता हासिल की थी और सोचिए आज आप लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के अधिवक्ता बन बैठे?..इसका बहुत स्पष्ट मतलब है की..आपने 2014 से आज तक जो भी वादे किये हैँ या आपका जो भी भक्तकथित मास्टरस्ट्रोक था,वो सभी महज़ एक फ़रेब का पुलिंदा था..लालकिला फतेह करने की चाल थी...राजा औऱ सेंट्रलविस्टा का सुख भोगने का हठ था..गटर से गैस निकालने की आविष्कारक प्रेरणा के श्रोत बनने का ज़ज्बा था, चाय और पकौड़े के व्यावसाय को "जी टीवी" पर प्रसिद्धि दिलाने का दीवानापन था..जटिल GST लागू कर छोटे/मंझोले व्यवसायों की बर्बादी सुनिश्चित कर संसद भवन को रंगीन रोशनियो से सराबोर करने का जुनून था, रातोंरात नोटबंदी कर कमजोर अर्थव्यवस्था को और लाचार बनाने की दिवानगी थी और महामारी के शुरुआत में महज़ चंद घंटों के भीतर लॉकडाउन लगाने का साहसिक निर्णय की फकीरी थी...कैसे भी करके, सत्ता पाने के जिद्द की प्रेरणा के लिए माननीय आप इस सदी के राजनैतिक महानायक हैं..और ऐसा कहने में किसी को कोई संशय भी नहीं होनी चाहिए..!!
इसके साथ-साथ अब तो भारतवासियों को आपके राज्यपाल महामहिम सत्यपाल जी से यह भी पता चल गया कि आप केवल करिश्माई व्यक्तित्व वाले जननेता ही नही लोकप्रिय घमंडी प्रधानमंत्री भी है..!!
आप महान है..आपने भारत को मुफ़्लिसी और बेकारी का जो सौगात दिया है उसके लिए,जनगणमन के आधिनायक आपका सदैव कर्जदार रहेंगे.ये कोई काल्पनिक अवधारणा नहीं है,आपके ही नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है.
आपकी अर्थशास्त्र के समझ का भी कोई मुकाबला नहीं है...आप अर्थशास्त्र का सबसे सुलभ मार्ग जानते है की कर वसूली के लिए भारत कितना मासूम एवं दिलदार है....देश में खुदरा महंगाई दर का जलवा इसका जीता जागता उदाहरण है...
ज़रफ़िशाँ है मिरी ज़रख़ेज़ आवामो का बदन..
ज़र्रा ज़र्रा मिरे हिन्दोस्तां का पारस निकला..!!
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