Negative Attitude

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Wednesday, May 14, 2014

एक्स्ट्रा इनिंग्स

पतन और परिवर्तन प्रकृति का शाश्वत नियम है औऱ ये उन लोगो के उपर भी लागु होता जो विजयी भवः से आशीर्वादित है.जनादेश परमात्मा का सन्देश होता है और इसका इस्तकबाल हर खास-ओ-आम को करना ही चाहिए। मैं २०१४ लोकसभा चुनाव को भारतीय गणतंत्र  का सबसे दिलचस्प चुनाव मानता हूँ क्योंकि सम्पन्न होते युग में सपने बेंचना इतना आसान नहीं है और जिस तरह लोगो ने कीमत क़ी परवाह किये बिना इस बार सपनो को खरीदा है... क्या कहने!! लोकसभा वैसे तो राष्ट्रीय राजनीती है लेकिन जिस तरह से इस चुनाव में क्षेत्रीय राजनीती ने अपनी भागीदारी दिखाई है वो कबिल- ए- तारिफ है.इससे मतलबविहीन तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण की राजनीती पर काफी हद तक लगाम तो लगेगा ही साथ साथ  राष्ट्रीय पार्टियों को ये समझने पर मजबुर करेगा की तुष्टिकरण और ध्रुवीकरण की राजनीती से कही ज्यादा संवेदनशील है क्षेत्रीय राजनीती,ध्यान नही दिये तो हिसाब क़िताब गड़बड़ाना तय है.

युग न ही समाप्त होता है,और न ही इसकि शुरुआत होतीं है... ये तो अपनी चाल में चलता रहता है... हमारे बदलते सोच परिवर्तन का एहसास दिलाते है... वर्ना ये सारे राजनेता उसी राजभवन के किरायेदार है.... ये तो बस सपनो की ऊँची कीमत के वादे पर कमरा बदल कर समझौते का विस्तार कर रहे है...

अब जबकी आप समझौते पर बटन दबा चुके है तो इंतजार कीजिये अच्छे दिन आने का जिसका शुभ ज्योतिषीय संयोग १६ मई से पांच वर्ष तक लगातार रहेगा..इस बार हर घर में बिजली के सपने के साथ साथ लालटेन भी खूब बिका.... एग्जिट पोल तो यही कहता है लालटेन मजबुती से बापसी कर रहा है....कही ये उस सपने की ओर तो इशारा नही  कर रहा जिसमें आप सपने देखते कुछ और है और उसका अर्थ निकलता कुछ और है....खैर अगर लालटेन की बापसी हो रही है तो लोड शेडिंग/बिजली की कमी की भी दमदार बापसी तय है...नोट कर लीजिये....

एग्जिट पोल की माने तो इस बार ओडिशा का शंखनाद भी लोगो को जाग्रित नहीं कर पाया और बिहार का तीर भी चिड़िया क़ी आँख का लक्ष्य भेद करने में चुक गया...वैसे इन दोनों राज्यों में विकास सिर्फ़ चुनावी मुद्दा नहीं था वल्कि हक़ीक़त में यहाँ निरन्तर विकास हो भी रहा हैं...पता नहीं इस चुनाव में ओडिशा के लोगो को इस मान्यता पर क्यों विश्वास नहीं हुआ की शंख की सर्पिल ध्वनी से नकारात्मक ऊर्जा का विनाश होता है.... बिहार का तीर भी क्यों ये समझने में नाकाम रहा की दांये हाँथ की अंगुलियों के मुकाबलें बाएं हाँथ की अंगुलियों में कोमलता कही ज्यादा होती है... भले ही दाहिने हाथ से तीर को अगर तेजी से छोडा जाये तो तीर सीधा शक्ति से निकालता है लेकिंग अगर अँगुलियों क़ी कोमलता का इस्तेमाल कर तीर छोड़ा जाये तो तीर घुर्पण करते हुए अपने भीतर की शक्ति से साथ काल को भी अपने चँगुल मे लपेटते हुए लक्ष्य की ओर आगे बढ़ता है....शायद सपनो के बम्पर सेल में परिपक्व राजनीतिज्ञों से साथ साथ जनता भी फेमिनिन आर्ट समझने में नाकाम रही....खैर युग समाप्त नहीं हुआ है... मरम्मत के लिये अभी भी वक़्त है... जोर और टशन तो दिखाना हीं होगा....एक समय अर्जुन की वाणों की रक्षा ने गुरु द्रोण को भी असफल बना दिया था...बंगाल और दक्षिण भारत की  क्षेत्रीय पार्टियों से सीख लीजिए,पहले घर को मज़बूत करे फिर उसका गुम्बद!... पहले ऑफिस को खूबसूरत बनाये फिर उसका वेबसाइट!...

कुलमिलाकर भारतीय सियासत में क्षेत्रीय पार्टियों की दमखम के साथ साझीदारी और सपनें बेचने कि राजनीति बदलाव के रुप में एक शुभ संकेत है जो कम से कम हर पांच वर्ष में कड़ी चुनावी प्रतियोगिता और कुछ हद तक सत्ता परिवर्तन आश्वस्त करने में सक्षम भी होगा...प्रधानमंत्री कार्यालय में हर स्तर पर बिदाई क़ी परंपरा शुरू हो चुकी है और अब प्रतीक्षा किजिये १६ मई का जो यह बतायेगा क़ी इसके बाद की परंपरा स्वागत ऐवं ताज़पोशी के लिए सीधा परिणाम आएगा या सुपर ओवर होगा...

  

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