Negative Attitude

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Tuesday, February 19, 2013

त्रिआयामी इच्छा

समय के साथ मानव जीवन में भी बहुत से बदलाव हुए और उनमे से एक महत्वपूर्ण बदलाव जो देखने को मिला वह चित्र/छवि देखने की त्रिआयामी- 3D फार्मूला का.परिवर्तन से हुए अनुभवों से हम इंसानों ने भी समझा की किसी चित्र/छवि को साधारण नजरिये से देखकर अब उसकी पारदर्शिता या उसमे छुपी गहराई का अंदाजा लगाना कठिन हो गया है। क्यों न इसके देखने की अभियान्त्रिकी में बदलाव लाया जाए और वो बदलाव हमें 3D-त्रिआयामी चलचित्र के रूप में  मिला। 3D-त्रिआयामी चलचित्र  में तीसरा आयाम जोड़ने के लिए उसमें अतिरिक्त गहराई जोडने की आवश्यकता पड़ती है। 3D-त्रिआयामी फिल्म के फिल्मांकन के लिए प्रायः ९० डिग्री पर स्थित दो कैमरों के प्रयोग के साथ साथ दर्पण का भी प्रयोग किया जाता है। दर्शक थ्री-डी चश्मे के साथ दो चित्रों को एक ही महसूस करते हैं और वह उन्हें त्रि-आयामी लगती है। ऐसी फिल्में देखने के लिए वर्तमान उपलब्ध तकनीक में एक खास तरीके के चश्मे को पहनने की आवश्यकता होती है।

एक ओर जहाँ इंसान इतने टुकडो में बँट चूका है की मतभेद और मनभेद में भी अब इंसानी जिंदगी के उत्थान की उम्मीद दिखती है। ऐसे जटिल/विकृत मानव समाज में हम इंसानों के चेहरे भी कई परतो में लिपटे मालूम होते है। कर्म का चेहरा कुछ और
,उत्सव का चेहरा कुछ और,और शोक का चेहरा कुछ और। हम इंसानों ने ही खुद से अपने आप को बहुरुपिया बना लिया है। माना की जिंदगी की विभिन्न दौर में इसकी आवश्यकताएं भी है लेकिन इसके निरंतर उपयोग हम इंसानों को इसका व्यसनी बना देता है।
काश 3D-त्रिआयामी चलचित्र देखने में इस्तेमाल होने वाले चश्मे के तरह कई परतो में लिपटे इंसानी चेहरे को भी देखने/समझने के लिए कोई चश्में का इजाद हो जाये ताकि हम इंसान पुरे आत्मविश्वाश के साथ अपने बहुरूपी चेहरे का एक वैधानिक चेतावनी के साथ विपणन कर सके..

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