Negative Attitude

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Friday, January 25, 2013

जन गण मन अधिनायक जय हे...

भारतीय गणतंत्र की 64व़ी वर्षगांठ। पक्का पक्की एक और छुट्टी का दिन! हम मैक्सिमम सिटी वाले मेजोरिटी से माइनॉरिटी बनने के लिए हर दिन भारतीय रेल से ही यात्रा किया करते है। यहाँ की ट्रेन में यात्री-गण का अपना छोटा छोटा समूह होता है जो अपने समूह के लोगो के लिए सीट(Seat) रखने में अपना सर्वस्प लगा देते है। इसी समूह में मैं भी अल्पसंख्यक की तरह सीट के मध्य जो जगह होती है में सबसे पीछे मौजूद रहता हूँ। ट्रेन अपने नियत समय पर रवाना हुई और साथ साथ गपाश्टक चालीसा भी शुरू हो गया। एक यात्री ने अपने मित्र से कहा क्यों भाई कल तो छुट्टी है..क्या प्रोग्राम है? मित्र - कुछ नहीं भाई कल ड्राई डे (Dry day) है...खंभा आज ही लेना पड़ेगा ? सुनकर ऐसा प्रतीत हुआ मानो अभी भी आम आदमी अपने आप को गुलाम महसूस कर रहा हो। आम आदमी की दयनीय होती परिस्थिति से देशभक्ति की भावना भी अब कितना बोझिल हो चुकी है की भारत के गण के लिए गणतंत्र दिवस के मुकाबले ड्राई डे (Dry day) की महत्ता का ज्यादा ख्याल है? वैसे गणतंत्र दिवस और गणतंत्र का शाब्दिक अर्थ तो हम सबको पता ही है.बस नहीं पता है की इस राष्ट्र गान जन-गण-मन का अधिनायक कौन है? किसकी स्तुति गाते है हम? और क्यों?  एक बार फिर मंथन!

गणतंत्र दिवस:- जैसा की हम सभी जानते है की 26 जनवरी 1950 को भारत का संविधान लागू हुआ था,तभी से देश गणतंत्र हुआ और उसी उपलक्ष मे 26 जनवरी को हर वर्ष गणतंत्र दिवस मनाया जाता है। गणतंत्र या गणराज्य का शाब्दिक अर्थ संख्या अर्थात बहुसंख्यक का शासन है। सैंकड़ो वर्षों की गुलामी और आजादी के नाम मिले विभाजन, रक्तपात और शरारती पड़ोसी के बाद 26 जनवरी 1950 को भारत पुनः गणतंत्र बना।हमने इन 64 वर्षों में अनेक आंधी-तूफानों का सफलतापूर्वक सामना किया है लेकिन दुर्भाग्यवश आज़ाद भारत आज तक गण और तंत्र के बीच समन्वय नहीं बिठा सका है और जब तक गण और तंत्र के बीच समन्वय नहीं होगा तब तक गण के लिए इस राष्ट्रीय पर्व गणतंत्र दिवस का महत्व भी समझ से परे होगा।

हाल ही में सीमा पर शहीद हुए देश के दो बहादुर लाल(लांस नाइक वीर हेमराज एवं सुधाकर सिंह) इस गणतंत्र में गण की शक्ति,प्रतिभा और समर्पण की मिसाल है जिनका क़र्ज़ हम तमाम भारतवासी कभी भी पूरा नहीं कर पायेंगे। नमन करते हैं तुझको एवं उन तमाम धरती पुत्रों की जिन्होंने अपनी जननी और जन्मभूमि की शान बढ़ाई है। गणतंत्र की महत्ता समझनी है है इनके निस्वार्थ वलिदान को महसूस करे अर्थ स्वतः ही आपका आलिंगन करेंगे।जय जवान,जय किसान से जय विज्ञान तक इस देश के तंत्र की नहीं बल्कि ‘गण’ की महिमा है,जो आज संपूर्ण विश्व के लिए प्रेरणा का श्रोत है। अस्त्र शस्त्र का भारी भरकम बेडा और सूचना प्रौद्योगिकी में प्रगति इत्यादि इसके साक्ष्य है।संविधान,कानून, नियम,उप नियम और संविधान में संशोधनों का कारण एक ही है। तंत्र चाहता है कि गण हर हाल में व्यवस्था को सुचारू बनाए। अगर हम तंत्र की इस धारणा को समझते हुए आत्मसात करें तो कानून के साथ उप कानून और नियम के साथ उप नियम की जरूरत नहीं होगी। जरूरत सिर्फ इतनी है कि हम अपने कर्तव्यों की पालना शुरू कर दें। पर प्रश्न यह है की इस कर्त्तव्य रुपी झंडे को कौन फहराएगा? कौन इस परेड की सलामी लेगा? और कौन इस समारोह में मुख्य अतिथि होगा? - गणतंत्र के तमाम गण या सिर्फ राजनीतिज्ञ?

आदर्श रूप में गणतंत्र में गण और तंत्र के बीच समन्वय बिठाने की जिम्मेदारी राजनीतिज्ञों की होती है लेकिन हमारे देश की राजनीती अभी भी राजतंत्र वाली होती है प्रजातंत्र वाली नहीं। ये हमारी राजनीतिज्ञों द्वारा की जा रही ता ता थैया से समझी जा सकती है। हाल ही में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के खिलाफ तल्ख टिप्पणी की और यहाँ तक कह दिया की अब मैं क्या करूं? क्या मैं पीएम को मारूं? राज्य में कम वजन और कुपोषण के कारण नवजात शिशुओं की मौत के बढ़ते आंकड़े का जिक्र करते हुए उन्होंने एक और विवादास्पद व्यान दिया की पड़ोसी राज्य बिहार से ज्यादा संख्या में मरीजों का आना एक समस्या बन गई है। मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने कहा, 'आप जानते हैं हमारी समस्या क्या है? बिहार से कई लोग इलाज के लिए अपने बच्चों को लेकर पश्चिम बंगाल के जिलों मालदा और मुर्शिदाबाद के अस्पतालों में आते हैं।' हाल की एक और घटना है जिसमे महाराष्ट्र के जाने माने राजनीतिज्ञ राज ठाकरे ने कहा की बिहारी बलात्कारी होते है। गणतंत्र में केंद्र अगर घर है तो राज्य इसके कमरे और केंद्र की जिम्मेदारी समूचे घर की देखभाल करने की है एवं राज्य की जिम्मेदारी कमरे और इसमें  रहने वाले गण की देखभाल की है। लेकिन आज तक हम राजतन्त्र या गुलामी के फोर्मुले को भूल नहीं पाए है। वही फुट डालो राज करो नीति को अपनाकर गौरवान्वित हो रहे है। राज्यों को देश का हिस्सा नहीं वल्कि एक अलग मुल्क की तरह देखा जा रहा है। फुट डालो राज करो की नीति असुरक्षित वातावरण का संकेत होता है जहाँ पॉवर स्ट्रगल में गण से लेकर तंत्र तक असुरक्षित होता है और सब एक दुसरे के दुश्मन प्रतीत होते है। ऐसी राजनीती में हम एक समृद्ध गणराज्य की कैसे कल्पना कर सकते है? किसी भी देश के विकास में तंत्र के साथ साथ गण का एकजुट होना भी आवश्यक है। लेकिन प्रजातंत्र को राजतन्त्र के चश्मे से देखकर परिचालन करना न राजनीती के लिए स्वास्थ्यवर्धक है और न ही राजनीतिज्ञ के लिए। जनता ‘मालिक’ नहीं, ‘नौकर’ बनी दिन-काट रही है क्योंकि उसके लिए बने अस्पतालों में इलाज के नाम पर लम्बी लाइनें तो हैं लेकिन रोगी के लिए बिस्तर, बैड भी नहीं है। रेल के डिब्बे में पैर रखने की जगह नहीं एवं बसों में भी बेबसी का आलम है और उस पर BUY 1 GET 1 OFFER के तहत देश के भीतर ही अप्रवासी होने का लांक्षण भी।संबिधान को लागु हुए 64 वर्ष हो चुके है लेकिन आज भी औसतन 50-60% लोग ही वोट देते है। विश्व के सातवें सबसे बड़े लोकतंत्र में आधी आबादी के मत के वगैर लोकतंत्र का परिचालन एक दक्ष गणतंत्र की परिभाषा वयां करने में सक्षम है। भ्रष्टाचार,महिला के सुरक्षा सम्बन्धी कानून के मुद्दे इत्यादि आज के स्वतंत्र मीडिया वाले युग में मनोरंजन मात्र है। भ्रष्टाचार और कालेधन पर खूब बढ़-चढ़कर बातें करते करने वाले क्या इतना भी नहीं जानते कि यह ‘तंत्र’ की निष्क्रियता अथवा मिली भगत के बिना संभव नहीं है। यह तंत्र और नियमों की असफलता नहीं तो और क्या है?

अगर परिवर्तन ही इसका हल है तो वो परिवर्तन भारतीय राजनीती में होनी चाहिए। राजनीती का स्वरुप ऐसा हो,राजनीती की नियत ऐसी हो जिसका उद्देश्य मात्र सत्ता हासिल करना न हो वल्कि इसके साथ साथ प्रजा के लिए सामाजिक,आर्थिक,बौद्धिक एवं मनोवैज्ञानिक विकास का भी संकल्प हो और असफल होने पर सत्ताधारी राजनितिक पार्टी या उनके समूह की उत्तरदायित्व भी तय की जाये। फिर देखिये गण और तंत्र के बीच संघर्षविराम कैसे होता है..

आप सभी को गणतंत्र दिवस के पावन अवसर पर अनंत शुभकामनाये…HAPPY REPUBLIC DAY….जय हिन्द..:-)

7 comments:

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    1. प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार..:)

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    1. प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार..:)

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  3. सभी देशवासियों को हार्दिक शुभकामनायें

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    1. प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार..:)

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  4. प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार..:)

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