पिछले कुछ दिनों से रात में मैक्सिमम सिटी का पारा गिरकर 13-16 के इर्द
गिर्द घूम रहा है और सर्द हवाएं लोगो को गर्मी में भी सर्दी के एहसास करा
रही है। मैं भी इन सर्द हवाओं के चपेट में ताप को झेल रहा हूँ पर गिरते नही
चढ़ते ताप का!! यहाँ ऐसा प्रतीत हो रहा है मानो सूर्य की किरणे सर्द हवाओं
का बहिष्कार कर रही है और रात की मध्यम सर्द हवाए सूर्य की गर्मी का खूब
मजाक उडा रही हो। पौष आने वाला माघ से नजरे चार कर रहा है और वसंत इनकी
आशिक़ी देख इर्ष्या की अग्नि में जल रही है। ऋतुए जब बदल रही होती है तब ऐसी
अस्थिरता आम बात है वैसे ऋतुराज वसंत का माघ महीने की शुक्ल पंचमी(बस अगले
कुछ ही हफ्तों में) से आरंभ होता है। इस ऋतु के आने पर सर्दी कम हो जाती
है। मौसम सुहावना हो जाता है। पेड़ों में नए पत्ते आने लगते हैं। आम बौरों
से लद जाते हैं और खेत सरसों के फूलों से भरे पीले दिखाई देते हैं अतः राग
रंग और उत्सव मनाने के लिए यह ऋतु सर्वश्रेष्ठ मानी गई है.
वैसे
तो इस मैक्सिमम सिटी में ज्यादातर परिस्थितियाँ मैक्सिमम ही है लेकिन जो
सबसे मिनिमम है वो है सर्दी और मैं तपते शरीर से इन्ही सर्द हवाओं को महसूस
करने मैक्सिमम सिटी की उस सड़क पे निकला जहाँ से
गर्व,घमंड,चंचलता,ख्वाब,संयम,सुन्दरता,कामुकता,तीब्रता,व्याकुलता एवं अनंत
बहुत साफ़ साफ़ दिखाई देती है। सर्द हवाओं के साथ धीरे धीरे स्याह होता नीला
गगन और उस पर एशिया की सबसे अमीर मानी जाने वाली नगरपालिका की प्रकाश-पुंज
द्वारा अंधियारे और उजाले की बीच की ये प्रतियोगिता जिसकी हार और जीत का
अंजाम सिर्फ इन्हें ही मालूम है देखते नहीं बन रही थी। यह वही प्रकाश पुंज
है,यह वही ख्वाब है,यह वही तीब्रता,यह वही व्याकुलता है और यह वही अनंत है
जहाँ लोग जीने की तमन्ना भी रखते है और मरने का इरादा भी। इस मैक्सिमम
सिटी का यही वो सूक्ष्म रास्ता है जहाँ भारत की गरीबी बहुत धुंधली और
इंडिया की विलासिता बिलकुल स्पष्ट दिखाई देती है। वैसे तो लोग तपती शरीर
में सर्द हवाओं से परहेज किया करते है लेकिन कल मेरी इस तपती शरीर को इन
सर्द हवाओं से जो शुकून मिला वो शायद पिछले 2-3 दिनों में औषधियों से भी
नहीं मिली थी।चकाचौंध रौशनी में तेज रफ़्तार से दौड़ती रंग बिरंगी गाड़ियों के
शोर में भी शुकून और संयम महसूस हो रहा था। शरीर में सांस ही क्रियाशील
जिंदगी की सूचक होती है और कल की ये सर्द हवाएं तपती शरीर में ऑक्सीजन का
प्रवाह कर रही थी। अरब सागर की ओर निहारती इस सुक्ष्म रास्ते की ऊँची ऊँची
बहुमंजिली इमारत इमारत नहीं वल्कि इस मैक्सिमम सिटी का गर्व है,घमंड है और
ऊँचा होने की विरासत भी। शायद इसी लिए यहाँ से गुजरती सर्द हवाएं भी मेरी
तपती शरीर को अपनी हैसियत के बलबूते आराम पंहुचा रही थी। सार्वलौकिक सोच
में मदमस्त यहाँ के सैलानी,मोहब्बत के अनुयायी युवक दल और नीरस बुढापे में
जिंदगी की रस बरक़रार रखने को प्रयत्नशील बुजुर्ग जोड़े जिंदगी जी लेने की
अजब लेकिन गजब प्रेरणा देती है। लगभग डेढ़ घंटे की चहलकदमी से उर्जावान होकर
अब मेरा तपता शरीर पूरी तरह से थक चूका था और फिर क्या बस निकल पड़ा अपने
आशियाने की तरफ रात्रि विश्राम के लिए। अब ट्रेन की तेज रफ़्तार के आगे ऊँची
ऊँची इमारते आँखों से ओझल होती जा रही थी और इसी मध्य अनायास एक FM रेडियो
चैनल द्वारा प्रस्तुत ये गीत.....It made my day......समय
के किसी पड़ाव पर अगर ख्वाब और हकीक़त दो अलग अलग रास्ते चल रहे हो तो ऊँची
और भडकदार इमारतों की उदासी और खामोश सागर की शक्लो सूरत देख इस सोंच को
बहुत उर्जा मिलती है शायद ऊँचा बनना और ऊँचा दीदार करना दोनों ही जरूरी है
इस जिंदगी में,आखर दोनों एक दुसरे को प्रेरित करने में संपूरक जो है...
ओ रे मनवा तू तो बावरा है
तू ही जाने तू क्या सोचता है बावरे
क्यूँ दिखाए सपने तू सोते जागते
जो बरसें सपने बूँद बूँद
नैनों को मूँद मूँद
कैसे मैं चलूँ ,देख न सकूँ
अनजाने रास्ते
गूँजा-सा है कोई इकतारा..:-)
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