Negative Attitude

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Saturday, October 13, 2012

सूचना का अधिकार या व्यक्तिगत आक्रमण का हथियार?

मित्रों कल सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) की सातवी वर्षगाँठ थी.इस विशालकाय लोकतंत्र में भ्रष्टाचार को रोकने और समाप्त करने की दिशा में एक अति महत्वाकांछी कानून जो अपने उद्धेश्यों को पूरा करने की कसौटी पर कितना खरा उतर पाया है इसका आँकलन करना इस कानून से भी अत्यधिक चुनौतीपूर्ण है.परन्तु अगर इस कानून की प्रतिष्ठा और प्रभावोत्पादकता को और ओजस्वी बनाना है तो सूचना का अधिकार अधिनियम कानून अपने कसौटी पर कितना खरा उतर पाया है इसका आँकलन करना अब अनिवार्य हो गया है? इस चर्चा को आगे बढाने से पहले एक बार फिर इस कानून के बारें में अपनी याद्दास्त को ताजादम कर लेते है...

सूचना का अधिकार अधिनियम (Right to Information Act) भारत सरकार द्वारा पारित एक कानून है जो 12 अक्तूबर, 2005 को लागू हुआ था .इस नियम के द्वारा भारत के सभी नागरिकों को सरकारी रेकार्डों और प्रपत्रों में दर्ज सूचना को देखने और उसे प्राप्त करने का अधिकार प्रदान किया गया है.संविधान के अनुच्छेद 19(1) के तहत सूचना का अधिकार मौलिक अधिकारों का एक भाग है. अनुच्छेद 19(1) के अनुसार प्रत्येक नागरिक को बोलने व अभिव्यक्ति का अधिकार है. 1976 में सर्वोच्च न्यायालय ने एक मामले में कहा है कि लोग कह और अभिव्यक्त नहीं कर सकते जब तक कि वो न जानें.इसी मामले में, सर्वोच्च न्यायालय ने आगे कहा कि भारत एक लोकतंत्र है और लोकतान्त्रिक व्यवस्था में आम आदमी ही देश का असली मालिक होता है. इसलिए लोगों को यह जानने का अधिकार है कि सरकारें जो उनकी सेवा के लिए हैं,क्या कर रहीं हैं?प्रत्येक नागरिक कर/ टैक्स देता है,यहाँ तक कि एक गली में भीख मांगने वाला भिखारी भी टैक्स देता है जब वो बाज़ार से साबुन खरीदता है(बिक्री कर, उत्पाद शुल्क आदि के रूप में).नागरिकों के पास इस प्रकार यह जानने का अधिकार है कि उनका धन किस प्रकार खर्च हो रहा है.

सूचना का अधिकार अधिनियम हर नागरिक को अधिकार देता है कि वह :-

* सरकार से कोई भी सवाल पूछ सके या कोई भी सूचना ले सके.
* किसी भी सरकारी दस्तावेज़ की प्रमाणित प्रति ले सके.
* किसी भी सरकारी दस्तावेज की जांच कर सके.
* किसी भी सरकारी काम की जांच कर सके.
* किसी भी सरकारी काम में इस्तेमाल सामिग्री का प्रमाणित नमूना ले सके.


जनता इस कानून को किस तरीके से उपयोग करे एवं इस उपयोग से उनको उनके जीवन में कैसे फायदा हो ये गौर करने वाली बात है.अगर सूचना का अधिकार का यथोचित और रचनात्मक इस्तेमाल नहीं किया गया तो फिर यह एक निष्फल कानून बन जाएगा.सूचना का अधिकार और निजता के अधिकार के बीच अनिवार्य संतुलन बनाए रखना ही सूचना का अधिकार का समुचित उपयोग माना जाना चाहिए,क्योंकि निजता का अधिकार भी मानव जीवन की एक मौलिक अधिकार है.इस कानून का इस्तेमाल किसी व्यक्ति विशेष की आलोचना करने और उन्हें नीचा दिखाने के लिए नहीं किया जाना चाहिए.अब तक यह कानून भ्रष्टाचार पर लगाम लगाने में बिलकुल नाकाम रही है? मान लीजिये सूचना के अधिकार के तहत हमें जो सुचना चाहिए थी, प्राप्त हो गयी पर इस सुचना को न्यायतंत्र के साथ कैसे जोड़ा जाये जिससे व्यवस्था में सुधार हो सके और अपराधियों को दंड मिल सके, के लिए कोई सख्त मसविदा नहीं? सूचना के अधिकार के तहत प्राप्त सूचना की सुरक्षा और गोपनीयता निर्धारित होनी चाहिए ताकि प्राप्त सूचना को अभिलाषित न्याय मिल सके जो की सात वर्षीय अनुभवी यह कानून प्राप्त सूचना की पारदर्शिता के साथ गोपनीयता बनाये रखने में विफल रहा है? अब तक यह कानून एक स्टिंग ऑपरेशन की तरह इस्तेमाल होता आया है,अब तक यह कानून मीडिया के जरिये प्रबंध किया जा रहा है,जो इस कानून की जवाबदेही लिए एक गंभीर खतरा है. आजकल इस कानून को व्यवस्था में सुधार के वजाए व्यक्तिगत हमले के लिए उपयोग किये जा रहे है और वह भी सिर्फ मीडिया के जरिये?मीडिया के लिए सूचना के अधिकार के जरिये प्राप्त सुचना उनके लिए मीडिया सामग्री मात्र है जिसका उपयोग दर्शकों की संख्या में वृद्धि के अलावा और कुछ नहीं माना जाना चाहिए.क्या सिर्फ मीडिया के जरिये इस अधिकार का उपयोग उचित है? यह कानून देश की जनता को सशक्त तो बनाता है परन्तु इसका हो रहे उपयोग का तरीका क्या इस सूचना का अधिकार अधिनियम को कमजोर और प्रभावहीन नहीं बना रहा है?जिस कानून को भ्रष्टाचार जैसी गंभीर समस्या रोकने और समाप्त करने का उत्तरदायित्व है उसका इतना तुच्छ एवं असंवेदनशील उपयोग निश्चित तौर पर इस कानून को अपने उद्धेश्यों को पूरा करने में बाधा पैदा करेगा?सूचना का अधिकार अधिनियम के तहत सूचना प्राप्त करने के लिए जिस तरह मसविदा तैयार किया गया है ठीक उसी तरह सूचना प्राप्त होने के बाद इसके उपयोग और उपयोग के तरीके का भी सख्त मसविदा तैयार होना चाहिए ताकि इसके उपयोग और दुरूपयोग दोनों की संभावनाओं को समझकर न्यायतंत्र के साथ जोड़ा जा सके वर्ना यह कानून सिर्फ मीडिया प्रचार-साधन रह जाएगा.हिन्दुस्तान जैसे विशालकाय लोकतंत्र में सिर्फ कानून बनाने से नहीं चलेगा,कानून प्रभावशाली और इसके उद्देश्य कैसे पूरा हो, इसको सुनिश्चित करने की प्रणाली भी विकसित करने की आवश्यकता है...हमारे संबिधान में कानून तो हर अपराध के लिए है परन्तु अपराध कमने के वजाय,निरंतर बढ़ते ही जा रहे है? मतलब स्पष्ट है की सिर्फ नाम का कानून नहीं, एक प्रभावशाली एवं जिम्मेदार कानून की आवश्यकता है और तभी वांक्षित परिणाम प्राप्त हो सकेंगे....शुभ रात्रि...

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