असहिष्णुता या धार्मिक असहिष्णुता कोई ऐसा मुद्दा नहीं है जिसको किसी एक प्रांत से जोड़ कर देखा जाए वल्कि ये तो एक राष्ट्रीय स्तर का लोकप्रिय राजनैतिक मसला है.इस मुद्दे पर अब तक अति विशिष्ट व्यक्ति या उनका समुह सोशल मीडिया के जरिये अपनी राय का इज़हार कर रहे थे तो सुर्खिया बनती तो थी लेकिन वो अल्पकालिक हो शांत हो जाती थी लेकिन आज जब उसका विरोध राष्ट्रीय ख्याति को अस्वीकार कर हो रहा है तो सरकार इसको राष्ट्रविरोधी गतिविधि जैसा मान रही है?
लोकतंत्र है तो विपक्ष भी होगा और विरोध भी होगा लेकिन अगर इस मुद्दे पर भी असहिष्णुता हो तो इसका मतलब हुआ की आप देश की संवैधानिक व्यवस्था का विरोध रहे है. कलाकार अगर राजनीती करता है तो इसमें कोई वैचारिक समस्या नहीं दिखती परन्तु अगर वही कलाकार कला और उसकी दिव्यता का राजनीतिकरण करने लगे तो जनमानस के सोच में कभी भी इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर एक तरह की सौहार्दपूर्ण राय पिरोई नहीं जा सकती। इसका हल सैद्धांतिक विरोध और विपक्ष से ही संभव है.पहले हम सभी असहिष्णुता पर ईमानदार हो,इसको स्वीकार करे और इस पर सहिष्णुता रखे,ये कोई निम्नस्तर का सियासी मुद्दा नहीं है जिसको आप रैलियों या प्रेस वार्ता के माध्यम से जनता को फुसला लीजियेगा, यह तो भारतीय गणराज्य के जनसांख्यिकीय विविधताओं के मनभेद का मामला है जहाँ अपनापन समझने की परिभाषा कई भागों में विभाजित हो गई है.अगर हम इस मुद्दे पर ईमानदारी और सहिष्णुता से पेश नहीं आये तो ये उन बुद्धिजीवियों/कलाकारों जिन्होंने इस मुद्दे पर सम्मान लौटाया नहीं वल्कि उस सोच की वेदना में गिरवी रखा है जिसमे हिंदुत्व से हिन्दू भी त्रस्त है और इंसान से इंसानियत भी। पहले इन सम्मानित बुद्धिजीवियों की वेदना को तो समझिए,मार्च मार्च तो कभी भी खेल सकते है !
केंद्रीय हुकूमत इसको कांग्रेस या पार्टीगिरी मान इस मुद्दे को तरजीह न दे नई दिल्ली में नवंबर में मार्च का समर्थन कर क्या सन्देश देना चाहती है? यही न की हम पावर में है और हमे गब्बर मानो। असहिष्णुता का ज्यादा विरोध हुआ तो इस पर भी बन लगा साल के किसी भी महीने को मार्च बना माहौल को अनुपम खेर...अनुपम खेर बना देंगे।
वैसे अनुपम खेर इसी दिव्य सोच के साथ कभी अपने कर्म नगरी में मार्च निकालते जहाँ कई वर्षो से राजनैतिक तौर पर मान्यता प्राप्त प्रांतवादी असहिष्णुता फल- फुल रही है तो उनको हम बहुत जिम्मेदार और साहसी बुद्धिजीवी मानते। जितनी निडरता एवं अदम्य साहस से दिल्ली में नवंबर को मार्च बनाया,कभी अपने कर्मनगरी में किसी भी महीने को मार्च बनाये फिर देखिएगा, उनको अवश्य एशियन पेंट्स से घर कलर कराना पड़ेगा...क्योंकि एशियन पेंट्स से कलर कराने के बाद हर घर कुछ कहता है !!…:)
लोकतंत्र है तो विपक्ष भी होगा और विरोध भी होगा लेकिन अगर इस मुद्दे पर भी असहिष्णुता हो तो इसका मतलब हुआ की आप देश की संवैधानिक व्यवस्था का विरोध रहे है. कलाकार अगर राजनीती करता है तो इसमें कोई वैचारिक समस्या नहीं दिखती परन्तु अगर वही कलाकार कला और उसकी दिव्यता का राजनीतिकरण करने लगे तो जनमानस के सोच में कभी भी इस तरह के संवेदनशील मुद्दे पर एक तरह की सौहार्दपूर्ण राय पिरोई नहीं जा सकती। इसका हल सैद्धांतिक विरोध और विपक्ष से ही संभव है.पहले हम सभी असहिष्णुता पर ईमानदार हो,इसको स्वीकार करे और इस पर सहिष्णुता रखे,ये कोई निम्नस्तर का सियासी मुद्दा नहीं है जिसको आप रैलियों या प्रेस वार्ता के माध्यम से जनता को फुसला लीजियेगा, यह तो भारतीय गणराज्य के जनसांख्यिकीय विविधताओं के मनभेद का मामला है जहाँ अपनापन समझने की परिभाषा कई भागों में विभाजित हो गई है.अगर हम इस मुद्दे पर ईमानदारी और सहिष्णुता से पेश नहीं आये तो ये उन बुद्धिजीवियों/कलाकारों जिन्होंने इस मुद्दे पर सम्मान लौटाया नहीं वल्कि उस सोच की वेदना में गिरवी रखा है जिसमे हिंदुत्व से हिन्दू भी त्रस्त है और इंसान से इंसानियत भी। पहले इन सम्मानित बुद्धिजीवियों की वेदना को तो समझिए,मार्च मार्च तो कभी भी खेल सकते है !
केंद्रीय हुकूमत इसको कांग्रेस या पार्टीगिरी मान इस मुद्दे को तरजीह न दे नई दिल्ली में नवंबर में मार्च का समर्थन कर क्या सन्देश देना चाहती है? यही न की हम पावर में है और हमे गब्बर मानो। असहिष्णुता का ज्यादा विरोध हुआ तो इस पर भी बन लगा साल के किसी भी महीने को मार्च बना माहौल को अनुपम खेर...अनुपम खेर बना देंगे।
वैसे अनुपम खेर इसी दिव्य सोच के साथ कभी अपने कर्म नगरी में मार्च निकालते जहाँ कई वर्षो से राजनैतिक तौर पर मान्यता प्राप्त प्रांतवादी असहिष्णुता फल- फुल रही है तो उनको हम बहुत जिम्मेदार और साहसी बुद्धिजीवी मानते। जितनी निडरता एवं अदम्य साहस से दिल्ली में नवंबर को मार्च बनाया,कभी अपने कर्मनगरी में किसी भी महीने को मार्च बनाये फिर देखिएगा, उनको अवश्य एशियन पेंट्स से घर कलर कराना पड़ेगा...क्योंकि एशियन पेंट्स से कलर कराने के बाद हर घर कुछ कहता है !!…:)
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