विकल्प,मानवीय जीवन में समय की शाश्वत गति के संक्रमण से उत्पन्न हो रहे विभिन्न परिस्थितियों का सामना करने में एक औषधि की तरह कार्य करता है.सिर्फ परिस्थितियाँ हीं विकल्प नहीं तलाशती वल्कि विकल्प भी परिस्थितियाँ तलाशने को आतुर रहती है.क्योंकि परिवर्तन संसार का नियम है और यही परिवर्तन जब अनुकूल होता है तो अहंकार उत्पन्न करता है और यदि प्रतिकूल हो तो अवसाद को जन्म देता है।
परिवर्तन परिवर्तित होने पर इठलाता भी है और संताप से कराहता भी है क्योंकि ये खुद भी नहीं जानता है की वो अगले क्षण किस रूप में होगा। २०१४ लोकसभा चुनाव भी परिवर्तन के रूप में अनुकूल और प्रतिकूल से संतोषभरा संतुलन की उम्मीद के लिए था.गरीबो के विशाल जन समुह वाले इस गणराज्य में जीवन जीने के लिए दिन ब दिन बढ़ते संताप से राहत की आस के लिए था परन्तु हुआ क्या अमीरो के चश्मे से गरीबी फिर से ग्लूकोमा की शिकार हुई और भोजन,रोजमर्रा की वस्तुओं,शिक्षा और स्वस्थ्य की सुलभता के बजाये अनुकूल के पिटारे से अनगिनत स्मार्ट सिटी,बुलेट ट्रेन और अच्छे दिन के पोटली में ठुस ठुस कर भरी कड़वी दवा मिली। सत्ता मिलते ही चौकीदारी की दुनियादारी किले की चारदीवारी में गौरवान्वित होकर मौन हो गई.परिवर्तन की प्रदर्शनी इस तरह लगाईं गयी जैसे मानो भारत अब जाकर स्वतंत्र हुआ है.ब्रह्माण्ड की कई जम्हूरियत इसकी गवाह बनी और इतिहास में दर्ज होने की लालसा सफलता के साथ ऐतिहासिक होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया। आज परिवर्तन ही परिवर्तित होकर आम आदमी के संताप की तीक्ष्णता का कारण बन बैठा है.२०१४ लोकसभा में परिवर्तन से आम गरीब आदमी को क्या मिला जिससे ये कहा जाए की थोड़ी राहत है....मेरी राय में कुछ भी नहीं....हाँ ये हम भूल ही गए की मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में बहुत कुछ मिला जैसे वज़ीर-ए-आज़म की कार्यशैली,पिछली सरकार के पदाधिकारियों की छुट्टी एवं कड़वी दवा के भविष्य में होने वाले विस्तृत फायदे इत्यादि । अच्छे दिन की कड़वी दवा हमारे देश में रोड के किनारे पाये जाने वाले खानदानी दवाखाना की उस औषधि जैसी है जो रोग पर तो बेअसर होती है परन्तु रोगी को निःसंकोच वैराग्य का चरम एहसास कराती है.परिवर्तन प्राकृतिक हो तो यह संतुलन और सामंजस्य बनाने का ज्ञान और धैर्य आपको उपहार में प्रदान भी करता है किंतु अगर यही परिवर्तन क्रोध के दबाब में हो तो अनिश्चितता का भय सदैव बना रहता है. लोग अभी इसी राय में है की इतने बड़े देश में नयी लोकतंत्र का अच्छे दिन का मंत्र का असर दिखने में वक़्त लगेगा लेकिन मेरे मालिक.... मेरे अन्नदाता हमने तो आपके वादे के अनुसार ट्वेंटी ट्वेंटी के लिए इवीएम में बटन दबाया था लेकिन आप तो टेस्ट मैच खेलने लगे....कोई बात नहीं....विचलित न हो....पहली पारी का वायदा दूसरी पारी में पूरा करने का विकल्प खुला है अभी....
परिवर्तन परिवर्तित होने पर इठलाता भी है और संताप से कराहता भी है क्योंकि ये खुद भी नहीं जानता है की वो अगले क्षण किस रूप में होगा। २०१४ लोकसभा चुनाव भी परिवर्तन के रूप में अनुकूल और प्रतिकूल से संतोषभरा संतुलन की उम्मीद के लिए था.गरीबो के विशाल जन समुह वाले इस गणराज्य में जीवन जीने के लिए दिन ब दिन बढ़ते संताप से राहत की आस के लिए था परन्तु हुआ क्या अमीरो के चश्मे से गरीबी फिर से ग्लूकोमा की शिकार हुई और भोजन,रोजमर्रा की वस्तुओं,शिक्षा और स्वस्थ्य की सुलभता के बजाये अनुकूल के पिटारे से अनगिनत स्मार्ट सिटी,बुलेट ट्रेन और अच्छे दिन के पोटली में ठुस ठुस कर भरी कड़वी दवा मिली। सत्ता मिलते ही चौकीदारी की दुनियादारी किले की चारदीवारी में गौरवान्वित होकर मौन हो गई.परिवर्तन की प्रदर्शनी इस तरह लगाईं गयी जैसे मानो भारत अब जाकर स्वतंत्र हुआ है.ब्रह्माण्ड की कई जम्हूरियत इसकी गवाह बनी और इतिहास में दर्ज होने की लालसा सफलता के साथ ऐतिहासिक होने का प्रमाण पत्र प्राप्त कर लिया। आज परिवर्तन ही परिवर्तित होकर आम आदमी के संताप की तीक्ष्णता का कारण बन बैठा है.२०१४ लोकसभा में परिवर्तन से आम गरीब आदमी को क्या मिला जिससे ये कहा जाए की थोड़ी राहत है....मेरी राय में कुछ भी नहीं....हाँ ये हम भूल ही गए की मीडिया में ब्रेकिंग न्यूज़ के रूप में बहुत कुछ मिला जैसे वज़ीर-ए-आज़म की कार्यशैली,पिछली सरकार के पदाधिकारियों की छुट्टी एवं कड़वी दवा के भविष्य में होने वाले विस्तृत फायदे इत्यादि । अच्छे दिन की कड़वी दवा हमारे देश में रोड के किनारे पाये जाने वाले खानदानी दवाखाना की उस औषधि जैसी है जो रोग पर तो बेअसर होती है परन्तु रोगी को निःसंकोच वैराग्य का चरम एहसास कराती है.परिवर्तन प्राकृतिक हो तो यह संतुलन और सामंजस्य बनाने का ज्ञान और धैर्य आपको उपहार में प्रदान भी करता है किंतु अगर यही परिवर्तन क्रोध के दबाब में हो तो अनिश्चितता का भय सदैव बना रहता है. लोग अभी इसी राय में है की इतने बड़े देश में नयी लोकतंत्र का अच्छे दिन का मंत्र का असर दिखने में वक़्त लगेगा लेकिन मेरे मालिक.... मेरे अन्नदाता हमने तो आपके वादे के अनुसार ट्वेंटी ट्वेंटी के लिए इवीएम में बटन दबाया था लेकिन आप तो टेस्ट मैच खेलने लगे....कोई बात नहीं....विचलित न हो....पहली पारी का वायदा दूसरी पारी में पूरा करने का विकल्प खुला है अभी....
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