Negative Attitude

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Wednesday, November 13, 2013

ओपिनियन पोल

ओपिनियन पोल है बकवास लेकिन,कोई है ख़ास तो कोई है निराश..
मज़मा यूँ ही नहीं लगता जम्हूरियत में,गुल्लक इकठ्ठा यूँ ही नहीं होता...
तिज़ारत करने वाले जानते है कि बकवास की भी कीमत होती है..
बस समझना ये है कि बेचने वाला या ग्राहक- है कौन ख़ास...
ओपिनियन का बाज़ार,विरोधी है हज़ार,बकवास बिकेगा ऊँची कीमत मे...
देखना क्योंकि जम्हूरियत में नहीं व्यर्थ जाती है आस...
ओपिनियन की जमाखोरी है अभी,बस समय का इन्तेजार है..
है (मज़मा+ओपिनियन पोल)२ का समीकरण और चुनाव है बिलकुल पास...
हल ढूढ़ने में लगा रहे है सभी कयास,यह समीकरण है जो इतना ख़ास..
वाह वाह सुनने के लिए बकवास कहना पड़ता है वर्ना राजनीती में क्या होता है बकवास...
यहाँ होतें सभी ख़ास,न होते है कोई निराश और होते हम आस पास..
इस समीकरण का हल जरुरी है बस यही मज़बूरी है...
जनता को पटाना है,मज़मा भी लगाना है..
कब मौसम बदल जाए, होता नहीं इसका आभास...
कब कहा ओपिनियन पोल है बकवास,बस लोगो को ग़ुमराह करने का है ये प्रयास..

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