Negative Attitude

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Friday, October 18, 2013

दि ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2013 और भारत निर्माण?

दि ग्लोबल स्लेवरी इंडेक्स 2013 के अनुसार विश्व में अभी तकरीबन 3 करोड़ लोग गुलाम का जीवन जी रहे हैं, इनमें से तकरीबन आधे केवल भारत में हैं.आज़ाद भारतीय गणराज्य में गुलामी/दासता की इतनी बड़ी तादाद इस बात के संकेत है की अंग्रेजो से आजादी हासिल करनी शायद आसान थी परन्तु आज़ादी से आज़ाद होना बहुत कठिन है। या यूँ कहे  की स्वतंत्रता अभी भी कही न कही गुलामी के माहौल में ही है और एक ऐसी समाज, एक ऐसी संबिधान,एक ऐसा तंत्र की तलाश कर रहा है जो मानवीय स्वरुप के बटवारे से मुक्त हो,जहाँ सामाजिक सुरक्षा की औषधि आरक्षण न हो,जहाँ कानून के नियमो के आवाज़ और न्याय एक हो,जहाँ जिंदगी और जिंदगी की गुणवता की परिभाषा की भाषा एक हो,जहाँ धर्म और इसके प्रति निरपेक्ष होने के लिए धर्म को अपराधी न बनाया जाए। सिर्फ लकीरे खींचने से मानवीय मतभेद समाप्त हो जाते तो अब तक दुनिया भर के शब्दकोष में आजादी और गुलामी के अर्थ  बदल जाने चाहिए थे। एक हिन्दुस्तान के लिए आजादी की लड़ाई लड़ी गयी थी और आज इसी आज़ाद हिन्दुस्तान के भीतर 28 से ज्यादा सरहदें है। कहीं सवर्ण,कहीं दलित,कहीं महादलित,कहीं अल्संख्यक,कही भाषा,कहीं प्रांतवाद तो कही भीतरी रेखा परमिट। लकीरे खींचते खींचते इंसान यहाँ इतने टुकडो में बँट गया की गुलामो और शोषितों की संख्या में आज हम विश्व में अव्वल नंबर पर है। गुलाम थे तो एक हिस्सेदार था और अब आज़ाद है तो सब हिस्सेदार हो गए। हिस्सेदारों की बढती तादाद,राजयोग का मोह और गहरी लकीरों में बँटी जनता आज़ाद भारत की राजीनीति में इस तरह काबिज है की  संबिधान में हर रोज कई पुराने पन्ने निकाल कर भारत निर्माण के नाम पर कई नए पन्ने जोड़ दिए जाते है ताकि बंटवारे और लकीरों की राजनीती हर दिन नए और कामुक रूप में प्रस्तुत कर क़ानूनी तौर पर जब चाहे तब भुना लिया जाय। भारत निर्माण सिर्फ संसद में प्रस्तावित बिलों का विज्ञापन कर नहीं किया जा सकता,इसके लिए लकीरों पर अंकुश लगाना होगा,इसके लिए मानवीय स्वरूपों के विभाजन और फिर विपणन रोकना होगा। भारत निर्माण तब सफल होगा जब स्वतंत्रता पूरी तरह स्वतंत्र होगी,आजादी शोषित नहीं होगी और राजनीती नस्लबाद और फिर नक्सल्बाद न करे। *भारत में गुलामो की अनुमानित संख्या :- 13,300,000 –14,700,000  है * 32.7% भारतीय अपना जीवन अंतर्राष्ट्रीय गरीबी रेखा US$1.25/प्रति दिन  के नीचे जीने को मजबूर है -मिलो हम आ गए,मिलो हमें जाना है ??

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