मैं ये लेख लिखना नहीं चाहता था पर अपने आप को रोक नहीं पाया।
भारत में आम आदमी के अभिव्यक्ति की आजादी कितनी सुरक्षित है इसका एक
उदाहरण (मुंबई की फेसबुक वाली घटना) हम सब भूले तो नहीं ही होंगे.दिवंगत
श्री बाला साहब ठाकरे के निधन पर एक फेसबुक यूजर ने फेसबुक स्टेटस लिखा और
उसकी दोस्त ने उसे शेयर कर दिया और एक राजनितिक पार्टी के कार्यकर्ताओं की
शिकायत पर दो युवतियों को अपनी निर्दोष भावना व्यक्त करने पर पुलिस ने
अतिशय तेजी दिखाते हुए रात मे ही गिरफ्तार कर लिया था।
हाल ही में
बसपा के सांसद शफीकर्रहमान बर्क ने देश की संसद में....जी हाँ संसद
में..इन्टरनेट पर नहीं...वन्देमातरम का बहिष्कार करके साबित किया है कि ये
लोग वोट बैंक के लालच में तुष्टिकरण के लिये किसी भी हद तक जा सकते है।
वन्देमातरम जो माँ की आराधना का गान है आजादी की लड़ाई का मूल मंत्र रहा है
उसका खुला विरोध करके क्या सांसद महोदय ने लोकतंत्र का अपमान नही किया है?
राजनेताओं
के ऊपर की गई आम आदमी(जो मतदाता भी है) की टिप्पणी पर तो पुलिस बहुत तेजी
से गिरफ्तारी की कार्यवाही करती है लेकिन जब कोई नेता या रसूखदार व्यक्ति
सरेआम अभद्रता करते हैं तो उनके खिलाफ कोई कार्यवाही नही होती। संसद जो
लोकतंत्र की मंदिर मानी जाती है,में एक सांसद द्वारा ही समस्त सांसदों की
उपस्थिति में देश की भावनाओं का बलात्कार किया जाता है और इस बलात्कार पर
कोई भी राजनितिक पार्टी गंभीर नहीं दिखाई देती... बसपा सुप्रीमो मायावती
ने तो इस मामले पर मौनव्रत ही धारण कर लिया है। देश की मीडिया ने भी इस
विषय पर कोई ख़ास तवज्जो नहीं दिया। कुछ बहस हुई और बात ख़त्म...अब इस
इंधन,इस
उर्जा की क्या आवश्यकता? आजादी मिलने तक ही इसकी उपयोगिता थी।
क्या ये
यह संविधान प्रदत्त समानता के अधिकार का सरेआम उल्लंघन नहीं है? यह सही है
कि अभिव्यक्ति की आजादी के अधिकार की भी अपनी सीमायें और मर्यादा है। लेकिन
इसकी कर्त्तव्यपरायणता में तो कोई आरक्षण नहीं होनी चाहिये... कोई धर्मभेद
नहीं होनी चाहिए...क्या वन्देमातरम के बहिष्कार से देश की भावनाओं को
क्षति नहीं पहुंचा है? क्या IT ACT और इस कानून के तर्क इन सांसदों पे लागु
नहीं होता है?
{...वन्दे मातरम्।
सुजलां सुफलां मलय़जशीतलाम्, [यानि साफ स्वव्छ जल ,अच्छे मीठे फल और शीतल हवाएं देने देने वाली ]
शस्यश्यामलां मातरम्। वन्दे मातरम् .. [ चारो ओर हरियाली है]
शुभ्रज्योत्स्ना पुलकितयामिनीम्,[ जिसकी चांदनी धवल फैली / में रात मतवाली है ]
फुल्लकुसुमित द्रुमदलशोभिनीम्,[जहाँ डाल डाल फूल खिले / कमलों की लाली है ]
सुहासिनीं सुमधुरभाषिणीम्,[जिसका हृदय है हास्य पूर्ण / मीठी जिसकी बोली है]
सुखदां वरदां मातरम् । वन्दे मातरम् ...
इन पंक्तियों में है देश की खुशहाली
कई होली और है कई दिवाली
है ईद की खुशियाँ और शब्-ए-बरात की कव्वाली
धर्मो का भण्डार है ये और है राष्ट्रधर्म की बोली
इन पंक्तियों में देश है बसता
शहीदों की है ये रंगोली कहाँ करती अट्हास है किसको
और किसको करती है ये ठिठोली
इन पंक्तियों में है देश की खुशहाली
कई होली और है कई दिवाली...}
भारतीय
लोकतंत्र की एक बदकिस्मती है की लोकतंत्र का चोला पहन इसके ही नुमाइन्दे
वोट बैंक की खातिर इसकी अस्मत लुटने को आतुर है। भ्रस्टाचार,चीन या
पकिस्तान के मुद्दे पे बोलने की बात आती है तो ये पूरी इमानदारी से
प्रतिक्रिया देने में जुट जाते है लेकिन अफ़सोस इस मुद्दे पे देश के दीवानों
की आकाल पड़ी है???
आश्चर्य है… भारत में आम आदमी के अभिव्यक्ति की
आजादी कानून के दायरे में होनी चाहिए और राजनेताओं की अभिव्यक्ति की आजादी
पर कानून लागु ही नहीं होता है???
सटीक आलेख !!
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार पूरण जी...
Deleteइस देश का दुर्भाग्य है कि अच्छे नेता पैदा होना ही बंद हो गए
ReplyDeleteप्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार अल्का जी..
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