पुराणों के अनुसार द्वापर युग के बारे में कहा
गया है की इस युग में पृथ्वी
पर पाप कर्म बढ़ गए थे और भगवान श्री कृष्ण का अवतार एवं महाभारत
का युद्ध भी इसी युग में हुआ था। हमारे आर्यावर्त के इतिहास में मामा भांजा
के रिश्ते हमेशा से ही लोभ,लालच और पारिवारिक भ्रष्टाचार की प्रतिक मानी
जाती रही है। महाभारत में शकुनि मामा का जलवा किसको ज्ञात नहीं
है जिन्होंने धर्म और अधर्म के चौसर में भ्रष्टाचार को इतना भावुक रूप दिया
की करुक्षेत्र की मिटटी आज तक लहू लुहान है। पुराण के द्वापर युग और आज के
वन्दे मातरम युग में अंतर मात्र इतना है की आज धर्म की सम्पूर्णता का
आंकलन करने वाला कोई नहीं है सब करुक्षेत्र की मिटटी बन चुके है तो अधर्म
के दुष्परिणाम की प्रत्याशा कौन करेगा। भ्रष्टाचार तो बस अधर्म का एहसान और
रवायत का बड़ी शिद्दत से निर्वाह कर रहा है,नारायणी सेना भी साथ है।
रेल
घुंस काण्ड भी इसी इसी परंपरा की झलक है जो दर्शाती है की भ्रस्टाचार
का जन्म घर में होता है और राजनीती में आकर जवां होती है। जैसे शीला की
जवानी के मजे सपरिवार उठाते है वैसे ही इसकी जवानी के भी लुत्फ़ उठाये,हर्ज़
क्या है ? बुद्धिजीवियों के खेल शतरंज में प्यादा की स्थिति यथावत ही है सिर्फ बुद्धिजीवियों की पीढियाँ बदली है...चिंता से चतुराई घटे, दुःख से घटे शारीर, पर लोभ से लक्ष्मी बढे, कहाँ गए अब दास कबीर..:-)
VERY TRUE
ReplyDeletekırşehir
ReplyDeletekırıkkale
manisa
tokat
urfa
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