हाल ही विश्व में के सबसे बड़े लोकत्तंत्र के मंदिर में चिदंबरम साहब की भोजपुरिया अंदाज़ वाली चुटकी मंदिर के समस्त जन देवताओ को सम्मोहित कर गयी.व्यावसायिक जिंदगी में अधिकांशतः धरा प्रवाह अंग्रेजी बोलने बाले तमिलनाडु के शाही चेटीआर घराने के चिदंबरम साहब का ये भोजपुरिया अंदाज़ शायद संत कबीर के जन्म दिन पर भोजपुरी दिवस मानाने वाली भोजपुरिया समाज और कैथी लिपि से सुसज्जित भोजपुरी भाषा के लिए एक सकारात्मक प्रतिक्रिया है एवं ७-८ वर्षो से भोजपुरी भाषा को संबिधान के आठवी अनुसूची में शामिल करने की लंबित मांग पुरे होने का निश्चयात्मक सन्देश भी ज्ञात होता है. भोजपुरी इस धरातल पर करीब २० करोड़ लोगो के द्वारा बोली जाने वाली भाषा है और यह तादाद किसी भी देश के संबिधान में अधिकारिक भाषा का दर्जा प्राप्त करने के लिए पर्याप्त है. हम अपने देश की बात करे तो हमारी संबिधान में किसी भी भाषा को अधिकारिक दर्जा देने का कोई ठोश मापदंड नहीं है और स्वतंत्रता के बाद जितनी भी भाषाओ को संबिधान के आठवी अनुसूची में शामिल किया गया उनके पछे मात्र राजनैतिक कारण रहे है ना की संप्रभुता, संस्कृतिक राष्ट्रवाद या स्वदेशी लोगो के अधिकारों इत्यादि जैसे अंतर्वेशन के तार्किक एवं भावनात्मक तथ्य.
वैसे संसद में चिदंबरम साहब के मुखरविन्द से निकले भोजपुरी शब्दों से एक मतलब तो जरुर निकला जा सकता है देर आये पर दुरुश्त आये.....धन्यवाद चिदंबरम साहब.....
मित्रो वीकेन्ड माथा पर सवार है और हम ज्यादा पकाने के मूड में नहीं है.भोजपूरी की बात चल रही तो संत कबीर को कैसे भूल सकते. निगेटीव एटिटयुड उनके ही एक भजन के साथ आपसे विदा लेता है...आपका सप्ताहांत मंगलमय हो..:-)
नैहरवा हम का न भावे, न भावे रे
साई कि नगरी परम अति सुन्दर, जहाँ कोई जाए ना आवे ।
चाँद सुरज जहाँ, पवन न पानी, कौ संदेस पहुँचावै ।
दरद यह साई को सुनावै … नैहरवा हम का न भावे........
चाँद सुरज जहाँ, पवन न पानी, कौ संदेस पहुँचावै ।
दरद यह साई को सुनावै … नैहरवा हम का न भावे........
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