जहाँ एक ओर हमारा पुरुष प्रधान समाज एवं धर्म जो बेटो को बंसबर्धक और दूसरी ओर स्त्रिओ को एक बोझ जो सिर्फ कन्यादान कर के ही कम किया जा सकता है मानकर सम्प्रहर्षित है I ज्येष्ठो का आशीर्वाद पुत्रवती भवः , दूधो नहाओ पूतो फलो के साथ पुत्ररत्न की प्राप्ति होने पर ही स्त्रियों के भाग्यशाली स्त्रीत्व की मान्यता पुत्र प्राप्ति की कामना की अग्नि को और प्रज्ज्वलित करता हैI ऐसे सामाजिक व्यवस्था में क्या संकल्प और क्या विकल्प??? सरकारी प्रयासों की बात की जाए तो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के बहुचर्चित एवं प्राचीन हम दो हमारे दो अभियान के प्रतीक चिन्ह भी एक पुत्री और एक पुत्र के साथ परिवार नियोजन को अनुमोदित करती है,दो पुत्री कदापि नहीं ? सरकार का यह अभियान छोटे परिवार होने को प्रेरित तो जरूर करती है पर एक पुत्र के साथI क्या इस विकल्पहीन सन्देश वाले अभियान भी संकल्प को दिग्भ्रमित नहीं करती? क्या यह लिंग भेद भ्रूण हत्या का पथ प्रदर्शक सा मलूम नहीं होता? चिकित्सा के पेशे से जुड़े लिंग चयन के आपूर्तिकर्ता के ऊपर अंकुश लगाने वाला कानून The PCPNDT Act 1994 (Preconception and Prenatal Diagnostic Techniques Act) का 2003 में संसोधन किया गया था पर कार्यान्वयन के आभाव में यह अधिनियम सिर्फ कानून की किताबो में शोभित है.किसी ने ठीक ही कहा है की प्रयास और साहस उचित दिशा और उद्देश्य के बिना पर्याप्त नहीं होताI अनुशाषित प्रयास और सोचरहित उद्देश्य स्वयं ही संकल्प और विकल्प का समन्वय स्थापित कर देगाI.आमिर खान के सत्यमेब जयते जैसा सराहनीय प्रयास महाबिनाश की आशंकाओ से ग्रषित इस ब्रह्माण्ड की जनसांख्यिकीय संकट को जनता और जनता के सम्माननीय प्रतिनिधियों को सचेत जरूर करना चाहिए!!! प्रिय मित्रो भारतीय लोकतंत्र आज संसद की साठबी वर्षगाँठ के जश्न में मदहोश है और संकल्प और विकल्प के इस संग्राम को पूर्णविराम देने का इससे अच्छा दिन और नहीं हो सकता !!!
इन्ही शब्दों के साथ निगेटीव एटिटयुड १९७० के दशक के बहुचर्चित बच्चो की फिल्म के एक गीत अपने अंदाज में प्रस्तुत करते हुए विदा लेता है..:-)
[नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार, प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार... इस झूठ की नगरी से तोड़ के नाता जा प्यारे अमर रहे तेरा प्यार .. जब जानवर कोई इंसान को मारे.. कहते हैं दुनिया में बहशी उसे सारे, कई इंसानों की जान आज इंसानों ने ली है चुप क्यूँ है संसार... चुप क्यूँ है संसार....:-)]
इन्ही शब्दों के साथ निगेटीव एटिटयुड १९७० के दशक के बहुचर्चित बच्चो की फिल्म के एक गीत अपने अंदाज में प्रस्तुत करते हुए विदा लेता है..:-)
[नफरत की दुनिया को छोड़ के प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार, प्यार की दुनिया में खुश रहना मेरे यार... इस झूठ की नगरी से तोड़ के नाता जा प्यारे अमर रहे तेरा प्यार .. जब जानवर कोई इंसान को मारे.. कहते हैं दुनिया में बहशी उसे सारे, कई इंसानों की जान आज इंसानों ने ली है चुप क्यूँ है संसार... चुप क्यूँ है संसार....:-)]
keep on writing bhaiya!
ReplyDeleteThanks for the cooment..:-)
DeleteNew One..सामाजिक व्यवस्था - शिक्षालय भ्रस्टाचार की?...
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