आज मेरे निगेटीव एटिटयुड का पहला दिन है और इसका श्री गणेश मै बिहार के विकास की ओर अग्रसर होने से कर रहा हूॅ । विशाल जनमत से ओत प्रोत श्री नितीष कुमार की बिहार सरकार के कई महत्वाकांक्षी योजनाओ के शंखनाद की एक ध्वनी मुख्यमंत्री जीवन दृश्टी योजना (Mukhyamantri Jeevan Drishti Programme ) जो महादलित परिवारों को रेडियो मुहैया कराने की है। भारत के अखण्डता और संप्रभुता के पहरेदारो ने 21 खण्डो मे बँटे लगभग ...90 लाख दलीत परिवारो को इस योजना के लिए चिन्हित किया है, जो अपने आप में अखंड भारत के गुमान को तार तार करती है। एक रिपोर्ट के अनुसार बिहार जो कुल आबादी के लगभग साढ़े इक्तालिश प्रतिशत गरीबों के साथ देष का दूसरा सबसे गरीब राज्य होने से गौरवान्वित है। मालुम नही ये रेडियो योजना किस हद तक गरीबो का जीवनदृश्टी बनेगा। भोजन को तरसते लोग रेडिया का मसाला (बैटरी), जिसकी एक जोडे की किमत लगभग 60 रुपया है, कहाँ से खरिदेंगे? सरकारी सोच र्निविरोध काबिल-ए-तारिफ है की लोग रेडिओ के द्वारा मनोरंजन के साथ साथ देश और दुनिया से जुड़ सके लेकिन अभी तक हम ये नही तय कर पाये है, की गरीब दलित परिवारों को मुलभूत सुविधाएँ जैसे रोटी, कपडा और मकान उपलब्ध कराई जाय या रेडियो जैसी योजनाओं के द्वारा जीवनदृश्टी सोच और जनता के करानुदान को और दृश्टीहिन बनाए। सच माने तो महत्वाकांक्षी शब्द भी अब महत्वहीन सा लगने लगा है। विकास और इससे जुडी योजनओं की बात की जाय तो अगडे ही सदैव इस फेहरिस्त मे आगे रहते है वरना पिछ़डे अगर अगड़े हो जाएँगे तो राजनिती का रियलिटि शो कैसे चलेगा? गरीब की ना ही कोई जाती होती है और ना ही कोई धर्म। संतोश रेडियो गरीबो को कभी संतोश नही कर सकता। गरीबो की जठराग्नि मंद होगी तभी संतोश रेडियो कुछ़ संतोश प्रदान कर पाएगा। गरीब तो गरीब है चलिये जाएगा पर ना ना प्रकार के आयोग वाले इस युग मे गरीबों की परिभाषा पर जुझ रहे योजना आयोग और मानवाधिकार आयोग की गरीबी देखी नही जाती।
चलिए इस निगेटिव एटिटयुड को एक भोजपुरिया चटकारे के साथ आज के लिए कम करते है - पेश है - सरकारी बाबु तोहार इ पलान देख के मन करअ ता कि चापाकल में डुब के मर जायीं ..:-)
चलिए इस निगेटिव एटिटयुड को एक भोजपुरिया चटकारे के साथ आज के लिए कम करते है - पेश है - सरकारी बाबु तोहार इ पलान देख के मन करअ ता कि चापाकल में डुब के मर जायीं ..:-)
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