Negative Attitude

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Friday, November 23, 2012

अधिकार हो ऐसा जो बदल दे सारा इमां

अधिकारों से अपराध करे
कहते उसे न्याय
अधिकार नहीं तो हो अपराधी

अधिकारों से अपराध करे
तो दर्जा प्रेम का
अधिकार नहीं तो कहते उग्रवादी

जन संहार तो जन संहार है
अधिकारों से उसे क्या लेना
परिणाम तो एक ही है
इंसानों की जान लेना

मौत के बदले मौत
अपराध के बदले अपराध भी तो अपराध है
एक बलि क्या बदलेगी इस सोच को
जहां घात लगाये बैठा सारा जहाँ है

इंसानों ने ली है अब मौत की जिम्मेदारी
तिथि,समय निर्धारण में भी हिस्सेदारी
पसंद से चयनित होंगे अपराध
यहाँ मानव प्रेम की किसको है पड़ी
मौत दिखती है अब फुलझड़ी
कहते जान के पीछे छुपा
है जान
अपराधो की लडियां है, इसकी पहचान
बस मानव जाती का हो रहा अपमान

कहते मौत प्रकृति है
विधि का
है विधान
फिर भूलते यहाँ क्यों इसकी पहचान
अधिकार हो ऐसा

जो बदल दे सारा इमां
अपराधी,अपराधी न रहे
बन जाए इंसान...
Smiley

Tuesday, November 20, 2012

दोमुही राजनीती देखकर दम घुंटने लगा है अब..

श्री बालासाहेब ठाकरे के मृत्यु के बाद उनकी जिंदगी,शख्सियत एवं राजनैतिक विचारधारा के बारे में लोग अलग अलग तरह की प्रतिक्रियाएं दे रहे है। कोई उनके बारे में नकारात्मक विचार रखते हैं तो कोई सकारात्मक। परन्तु सोचने वाली बात यह है की आजकल की तेज रफ़्तार वाली जिंदगी में जहाँ लोगो के पास अपने सगे सम्बन्धियों,मित्रों,पड़ोसियों का हाल पूछने का समय नहीं है वहां श्री बालासाहेब ठाकरे के बारे में चर्चा और विचार अभिव्यक्त करने के लिए इतना समय कहाँ से आ गया? इसका एक ही मतलब निकला जा सकता है की आम लोगो की जिंदगी में श्री बालासाहेब ठाकरे की सख्सियत का प्रभाव इतना गहरा था की लोग उनके के बारे में अपनी विचार अभिव्यक्त करने को विवश है। जब बात नेता और अवाम की होती है तो मतभेद,मनभेद स्वाभाविक है फिर चाहे वो सकारात्मक हो या नकारात्मक। लेकिन जब बात श्री बालासाहेब ठाकरे जैसे असाधारण नेता की होती है तो यही वैचारिक मतभेद थोडा जटिल हो  जाता है।

श्री बालासाहेब ठाकरे क्यों एक असाधारण नेता थे ? आइये इस बात पर थोड़ा विस्तार से प्रकाश डालते है।

ऐतिहासिक तौर पे मुंबई हमेशा से ही पश्चिमी सभ्यता के रंग में सराबोर एक सार्वलौकिक शहर रहा है। इतिहास बताता है की बॉम्बे में 
125 साल तक पुर्गालियों ने शासन किया। सन 1662 में पुर्तगाल की राजकुमारी (कैथरीन ब्रगान्ज़ा) नें चार्ल्स द्वितीय (इंग्लैंड के राजा) से शादी कर ली और उसके पश्चात पुर्गालियों ने दहेज़ के रूप में मुंबई शहर को ब्रिटिश हुकूमत को उपहार दे दिया। फिर ब्रिटिश हुकूमत ने इसे एक प्रमुख बंदरगाह के रूप में विकसित किया जिससे यह एक विशाल व्यापारिक शहर के रूप में विकसित हुआ और18वीं सदी के मध्य तकबॉम्बे में मानो पुरे देश से प्रवासियों की बाढ़ आ गयी।1947 में भारत आजाद हुआ और कुछ क्षेत्रो के विस्तार के साथ बॉम्बे प्रेसीडेंसी से बॉम्बे स्टेट का निर्माण हुआ। इसी समय एक अलग राज्य महाराष्ट्र(बॉम्बे सहित) के लिए संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन अपनी ऊंचाई पर था और अंततः इस आन्दोलन ने 1 मई 1960 को एक मराठी भाषी राज्य महाराष्ट्र का जन्म दिया और बॉम्बे इसकी राजधानी हुई। स्पष्ट है मुंबई में प्रवर्जन 200 साल पहले से हो रही है और जब मराठी भाषी राज्य महाराष्ट् बना तब भी मुंबई के सार्वलौकिक शहर होने की कारण मराठी भाषा अल्पसंख्यक ही था। प्रमाण के तौर पर सरकारी आंकड़े देखे जा सकते है।श्री बालासाहेब ठाकरे उस समय शायद स्वतंत्र हुए भारत की राजनितिक बेचैनी,असुरक्षित सामाजिक परिवेश और मुंबई की व्यवसायिक हैसियत को अच्छी तरह समझते थे और महाराष्ट्र के एक अलग मराठी भाषी राज्य के निर्माण की संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के जज्बे के आँचल में उन्होंने यह चिन्हित कर लिया था की मराठी माणूस को मानुस की विशाल भीड़ से अलग करना है और मराठी भाषी के नाम पर बनी राज्य महाराष्ट् और मराठी भाषी जनता को एक अलग पहचान दिलानी है। और अपने इसी उद्देश्य के साथ पहले अपने कार्टून साप्ताहिक 'मार्मिक' के माध्यम से, वह गुजराती, मारवाड़ी एवं दक्षिण भारतीय के मुंबई में बढ़ते प्रभाव के खिलाफ अभियान चला मराठी  माणूस को मानुस की विशाल भीड़ से अलग करने की खुलेआम नींव डाली और फिर 1966 में शिवसेना पार्टी का गठन किया। श्री बालासाहेब ठाकरे ने एक मंच दिया जहाँ मराठी मराठी माणूस अपने अधिकारों के लिए लड़ सके। अगर लोकतंत्र नहीं तो ठोकतंत्र। उन्होंने मुंबई में झुनका भाकर से लेकर पुरे महाराष्ट्र में सरकारी नौकरी तक मराठी माणूस का मिलकियत सुनिश्चित किया। बालासाहेब ने राजनीती में जो भी बोला,किया या इनसे जुड़े जो भी विवाद हुए उसकी एक ही केन्द्रबिदु रही है और वह है मराठी माणूस,मुंबई,महाराष्ट्र प्रेम। बालासाहेब की इसी राजनीती ने मराठी माणूस का मनोबल बढाने के साथ उनकी प्रतिष्ठा भी सुनिश्चित किया। बालासाहेब की मराठी माणूस प्रेम ने राजनीती का एक अलग सूत्र प्रांतवाद एवं भाषावाद की राजनीती का भी आविष्कार किया.यह बेशक लोकतान्त्रिक भावनाओं को दूषित करता है जो सदैव बहस का मुद्दा बना रहेगा परन्तु अविष्कारों और कुछ अलग हटकर करने की इस युग में बालासाहेब की राजनीती का यह सूत्र काबिल-ए तारीफ है। हमारे देश में राजनीती को तो लोग सदैब हीन दृष्टिकोण से देखते आयें है लेकिन लोकतंत्र में भले ही राजा का चयन जनता करती है पर राज करने के लिए नीति तो अपनानी ही होगी और यही राजनीती किसी के लिए गन्दी,अहितकारी होगी तो किसी के लिए अच्छी,हितकारी भी। भाषा के लिहाज से मुंबई की स्थिति आज भी पूरी तरह से सार्वलौकिक ही है। आज भी मुंबई की कुल जनसंख्या में मराठी माणूस और गैर मराठी माणूस का अनुपात लगभग आधा आधा है। परन्तु 1960 के अपेक्षा मराठी माणूस का यह अनुपात काफी बेहतर है। मुंबई विरासत से ही विकसित है और शायद इसीलिए इसे मैक्सिमम सिटी भी  कहा जाता है। और बालासाहेब इस बात को बखूबी जानते थे की विकास की राजनीती से ज्यादा कारगर है मानुस से मराठी माणूस की सियासत और तभी राजनीती की लम्बी सफ़र तय की जा सकती है। श्री बालासाहेब ठाकरे की इसी दूरदर्शी सोच से मराठी मानुस राजनीती को इतनी उर्जा मिली जिसका असर 46 वर्षो तक रहा औरश्री बालासाहेब ठाकरे की अंतिम विदाई में शामिल लोगो की संख्या इस असीम उर्जा का प्रमाण है।

एक क्षेत्रीय पार्टी द्वारा विशुद्ध क्षेत्रीय राजनीती की यह एक मिसाल है। बालासाहेब की राजीनीति चिन्ह धनुष तीर से कटाछ  भरे जो भी तीर निकले उससे किसी परप्रांती के नुक्सान होने के वजाय ज्यादा फायदा मराठी माणूस की सियासत को हुआ और समय समय पर निकलने वाली ये कटाछ भरे तीर उनकी एक रणनीति का हिस्सा था ताकि मराठी माणूस और उससे जुडी सियासत को उर्जा मिलती रहे। उन्होंने क्षेत्रीयता के ऊपर कभी राष्ट्रीयता को हावी होने नहीं दिया परन्तु राष्ट्रीयता को क्षेत्रीयता की शक्ति का एहसास समय समय पर पुरे देश को कराते रहे। आप मेरे इस आलेख से चाहे जो मतलब निकाले या प्रतिक्रिया दे परन्तु बालासाहेब ने क्षेत्रीय पार्टी द्वारा विशुद्ध क्षेत्रीय राजनीती की जो अनूठी मिशाल पेश की है वो राजनीती के नुमाइंदों की स्मृति में हमेशा स्थापित रहेगा। आज हमारे देश में कई क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय होने का दावा करती है पर आज विशुद्ध रूप से कोई भी पार्टी  क्षेत्रीय हितो के लिए कार्य नहीं कर रही है। अगर कोई पार्टी अपने आप को क्षेत्रीय पार्टी मानती है तो उसे समर्पित होकर क्षेत्रीय हितो के लिए कार्य करना भी चाहिए। क्षेत्रीय मुद्दों की पहचान कर और फिर उसके उत्थान के दृढ संकल्प के साथ उसे आगे भी ले जाना चाहिए। लेकिन आज तो हर पार्टी के पास रेडीमेड मुद्दा है और होटल के मेन्यू के तरह हर दिन परिवर्तित होता रहता है। पहले क्षेत्रीय पार्टियाँ क्षेत्रीय होने की प्रपंची दावे के साथ जनमत हासिल करती है और जनमत मिलते ही उनका ध्यान लालकिले की ओर चला जाता है। आम जनता फिर अपने आप को ठगा महसूस कर दिल्ली के छोले भठूरे को पांच साल तक खाने को मजबूर हो जाती है। अब तो रेडीमेड मुद्दा का सरकारीकरण भी हो गया है जब चाहिए RTI के जरिये मुद्दे निकालिए और हर रोज मीडिया के जरिये सिर फट्व्वल कीजिये और केला गणराज्य के मैंगो मैन को उल्लू बनाते रहिये। ठोस मुद्दे किसी के पास नहीं है पर राजनीती करनी है और इसके लिए पांच साल तक मैं अच्छा और तू बुरा में पुरे देश को उलझा कर रखना से अच्छा उपाय क्या हो सकता है? अगर बालासाहेब ने मराठी माणूस और मराठी भाषा के आधार पर विभाजन की राजनीती की तो यह कोई आश्चर्य की बात नहीं है,हमारे देश में राजनितिक पार्टियां चाहे वह जिस दर्जे की हो उनके पास आज जो भी मुद्दे है वे सभी किसी न किसी रूप से विभाजन के सूत्र पर ही केन्द्रित है फिर वह चाहे धर्म का हो या जाती का हो या फिर भाषा का हो? जातियों और अल्पसंख्यको में आरक्षण इस बात के साक्ष्य है और विभाजन तो विभाजन ही माना जाएगा चाहे उसकी शक्ल कैसी  भी हो?

मुद्दे को पहचानकर राजनीती करने से ही क्षेत्रीय और राष्ट्रीय दोनों लक्ष्य प्राप्त किये जा सकेंगे नहीं तो विकास की डूगडुगिया संगीतमय होने के बाबजूद सुननेवाला कोई नहीं होगा,शहर में ऊँचे ऊँचे माल तो होंगे पर खरीदार नहीं होगा ?अपने प्रान्त के अवाम का नाम ऊँचा कैसे हो इसकी राजनीती होनी चाहिए और इसके लिए बालासाहेब की राजनीती से सिख ले,मुद्दे स्वतः ही दिखने लगेंगे! मैं भी परप्रांती हूँ और परप्रांती संबोधित होने से दुखी होता हूँ पर मेरा ये क्षोभ उन क्षेत्रीय पार्टियों के लिए है जो क्षेत्रीय वस्त्र पहन कर राष्ट्रीय धुन पर थिरक रहे है जिनको टीवी,टेबलेट,इन्डक्शन कूकर और विशेष राज्य के दर्जे के अतिरिक्त आम नागरिक से जुड़ा और कोई मुद्दा दिखाई नहीं देता? इन राजीनीतिक नुमाइंदों को या तो सोच की लिबास बदलनी होगी या फिर थिरकने वाले धुन? दोमुही राजनीती देखकर दम घुंटने लगा है अब
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Saturday, November 17, 2012

अतुल्य भारत की अतुल्य प्राथमिक शिक्षा








'न्यू हैल्थवे , केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (सीबीएसई) स्कूल की वही पाठ्यपुस्तक है जिसको लेकर आजकल गंभीर विवाद चल रहा है।यह किताब कक्षा छह की पाठयक्रम में शामिल है। इस पाठ्यपुस्तक 'न्यू हैल्थवे : हैल्थ,हाईजीन,फिजियोलॉजी,सेफ्टी,सेक्स एजुकेशन,गेम्स और एक्सरसाइज है' के अनुसार  मांसाहारी लोग आसानी से धोखा देते हैं, झूठ बोलते हैं,वादे भूल जाते हैं,बेईमान होते हैं,चोरी करते हैं,झगड़ते हैं,हिंसक हो जाते हैं और यौन अपराध करते हैं  अतुल्य भारत में आजकल बच्चो को यही शिक्षित किया जा रहा है?

आचार्य चाणक्य ने कहा था दीपक तमको खात है, तो कज्जल उपजाय। अन्न जैसे ही खाय जो, तैसे हि सन्तति पाय। चाणक्य ने इस दोहे में बताया है कि जिस प्रकार दीपक तम यानी अंधेरे को खाता है और काजल पैदा करता है, ठीक इसी प्रकार इंसान भी जैसा अन्न खाता है उसका स्वभाव और संस्कार भी वैसे ही हो जाते हैं। यह उस वक़्त कहा गया था जब लोग अज्ञानता के युग में जी रहे थे और तब लोगो को संतुलित और असंतुलित आहार का बोध नहीं के बराबर था। इतिहास गवाह है की आचार्य चाणक्य के समय लोगो में अराजकता ज्यादा थी,सुखी एक और दुखी लाखो का अनुपात था,शिक्षित एक और अशिक्षित लाखो का अनुपात था। सफलता के एक ही उपाय थे युद्ध और जिसके कारण आये दिन युद्ध हुआ करता था। उग्रवादी सोच और विशाल आर्थिक और सामाजिक विषमता के बारे में लोगों को शिक्षित करने के माध्यम उपलब्ध नहीं थे और इस स्थिति में उस समय के वैज्ञानिक दर्शन के मुताबिक,लोगो की उग्रवादी सोच को नियंत्रित करने के लिए आचार्य चाणक्य जैसे महान व्यक्ति के पास इस तरह के परामर्श देने के अतिरिक्त और कोई उपाय नहीं रहा होगा।

मनुष्य अपनी आवश्यकताओं की तुष्टि करने के साथ साथ उसका विकास और रूपांतरण भी करता है। आज हमारी आवश्यकताएं हमारे पूर्वजो से भिन्न है इसी तरह हमारे पूर्वजों की आवश्यकताएं भी उनके वंशजों से अवश्य भिन्न रही होंगी। मनुष्य की आदतों और आवश्यकताओं का सामाजिक स्वरुप भी होता है और व्यक्तिगत स्वरुप भी। परन्तु हम क्या कर रहे है?- इस तरह के पाठ्यपुस्तक के माध्यम से जबरन इतिहास को वर्त्तमान के रूप में थोप कर ज्ञान का दायरा घटा रहे? हमलोग अपनी बचपन की प्रसिद्ध सीख 'पढ़ोगे लिखोगे तो बनोगे नवाब और खेलोगे कूदोगे तो बनोगे खराब' अब नयी पीढ़ी को नहीं देना चाहते - क्यों? क्योंकि हम अब जान गए हैं की खेलने कूदने या व्यायाम से न केवल बच्चों की बल्कि बड़ों की बुध्दि और स्मरणशक्ति भी बढ़ती है। और इसके साथ साथ अब खेल-कूद में भविष्य भी है।

शिक्षा का प्रमुख कार्य मनुष्य को उसके वास्तविक रूप में मनुष्य बनाना है। एवं प्राथमिक शिक्षा का व्यक्ति के जीवन में वही स्थान है जो मां का है। यह मनुष्य के जीवन की वह अवस्था है जो संपूर्ण जीवन विकास क्रम को गति प्रदान करती है। इस उम्र की शिक्षा जीवन की महत्वपूर्ण शिक्षा होती है। प्राथमिक शिक्षा बच्चों के शारीरिक, मांसपेशीय,संज्ञानात्मक,बौध्दिक,सृजनात्मक,अभिव्यक्ति और सौंदर्यबोध का विकास के लिए खाद के जैसा कार्य करती है। बच्चे के विकास पर सामाजिक प्रभाव के सक्रिय वाहकों की भूमिका व्यस्क अदा करते है। वे स्वीकृत सामाजिक संरुपों के दायरे में उसके व्यवहार तथा सक्रियता का संगठन करते है।बच्चो की व्यवहार का मनुष्यों के सामाजिक अनुभव के आत्मसात्करण की ओर सक्रिय अभिमुखन ही शिक्षण कहलाता है और इनसे उत्पन्न प्रभावों से ही चरित्र निर्माण होता है। शिक्षा की प्रक्रिया में बालक एक पौधे के सामान होता है। शिक्षक और पाठ्यपुस्तक इस इस पौधे का समुचित विकास करने वाला माली है। पौधे के विकास के लिए खाद,हवा,मिट्टी और रौशनी की आवश्यकता होती है और माली का काम पौधे के विकास के लिए इन उपर्युक्त आवश्यक तत्वों का उपलब्ध कराना है। जब माली ही खोखला होगा को वो पौधे का क्या समुचित विकास कर पायेगा? 'न्यू हैल्थवे - पाठ्यपुस्तक के माध्यम से जो ज्ञान,आदते या कौशल सिखाये जा रहे है क्या वो प्राथमिक शिक्षा के नाम पर कलंक नहीं है? ये बड़ी आश्चर्य की बात है यह पाठ्यपुस्तक काफी समय से इस्तेमाल की जा रही है लेकिन किसी ने पाठ्यक्रम के शुरुआत में ही इस पर प्रश्न क्यों नहीं उठाया? ये इस बात का सूचक है की पाठ्यपुस्तक की गुणवत्ता के साथ साथ शिक्षको की भी गुणवत्ता आजकल कितनी गिर चुकी है? शिक्षा मानव विकास की प्रक्रिया है और यह विकास की प्रक्रिया दो कारको पर निर्भर होती है - सीखना और परिपक्वता.अगर सिखने की सामग्री और प्रक्रिया इतनी तुच्छ एवं निरर्थक होगी तो परिपक्वता कितनी शक्तिशाली होगी इसका अनुमान आसानी से लगाया जा सकता है। क्या इस तरह के शिक्षाप्रणाली से मानव-विकास के लक्ष्य की प्राप्ति संभव है?

सीबीएसई कह रही है कि वह आठवीं के बाद की कक्षाओं के लिए पुस्तकों का निर्घारण करती हैं और इसके पहले की कक्षाओं की जिम्मेदारी उनकी नहीं है। वहीँ देश की शीर्ष शैक्षिक निकाय एनसीईआरटी अभी तक चुप है। एनसीईआरटी की कई गतिविधियों में से एक है कक्षा एक से लेकर कक्षा वारहवी तक की अलग अलग विषयों की पाठ्यपुस्तक प्रकाशित करनाअगर ये सरकारी संस्थाए निजी स्कूलों का संबंधन करती है तो पाठ्यपुस्तक की गुणवत्ता सुनिश्चित करने की जिम्मेदारी से ये कैसे पल्ला झाड़ सकते है? क्या बेलगाम होती शिक्षा प्रणाली पर नकेल कसना इनकी जिम्मेदारी नहीं है?

Thursday, November 15, 2012

एक प्रेमी ये भी...बालासाहेब केशव ठाकरे

प्रत्येक मनुष्य जीवन में किसी न किसी से प्रेम तो करता ही है लेकिन प्रेम में जब समर्पण की भावना जुड़ जाती है तब एक शक्ति का निर्माण होता है और इस शक्ति के जरिये मनुष्य किसी को भी अपना बना सकता है। कोई भी इंसान अपने जीवन में यूं ही सफल नहीं हो जाता। सफलता की कहानी बहुत लंबी और मुश्किलों से भरी होती है। बालासाहेब केशव ठाकरे की मुश्किलों भरी जिंदगी और सफलता की कहानी के पछे का जो सत्य है वो है मुंबई,महाराष्ट्र प्रेम। 23 जनवरी 1926 को मध्यप्रदेश के बालाघाट में जन्में बाल ठाकरे ने अपना करियर फ्री प्रेस जर्नल में बतौर कार्टूनिस्ट शुरु किया था. इसके बाद उन्होंने 1960 में अपने भाई के साथ एक कार्टून साप्ताहिक 'मार्मिक' की भी शुरुआत की. मोटे तौर पर बालासाहेब ने अपने पिता केशव सीताराम ठाकरे के  महाराष्ट्र के एक अलग भाषाई राज्य के निर्माण की संयुक्त महाराष्ट्र आंदोलन के राजनीतिक दर्शन का ही अनुसरण किया.अपने कार्टून साप्ताहिक 'मार्मिक' के माध्यम से, वह गुजराती, मारवाड़ी एवं दक्षिण भारतीय के मुंबई में बढ़ते प्रभाव के खिलाफ अभियान चलाया. अंततः 1966 में ठाकरे ने शिवसेना पार्टी का गठन मराठीओ के लिए मुंबई के राजनीतिक और व्यावसायिक परिदृश्य में जगह सुनिश्चित करने के उद्देश्य से किया। बाल ठाकरे स्वयं को एक कट्टर हिंदूवादी और मराठी नेता के रूप में प्रचारित कर महाराष्ट्र के लोगों के हितैषी के रूप में अपने को सामने रखते रहे हैं और इनकी इसी छवि के लिए ये हिन्दु हृदय सम्राट के नाम से भी जाने जाते है। बालासाहेब ने राजनीती में जो भी चाल चली उसकी एक ही केन्द्रबिदु रही है और वह है मुंबई,महाराष्ट्र प्रेम। यही वह मोह है जिसके कारण बाल ठाकरे ने बाहर से आकर मुंबई बसने वाले लोगों पर कटाक्ष करते हुए महाराष्ट्र को सिर्फ मराठियों का कहकर संबोधित किया और खासतौर पर दक्षिण भारतीय,बिहार और उत्तर प्रदेश से मुंबई पलायन करने वाले लोगों को मराठियों के लिए खतरा बता,बाल ठाकरे ने महाराष्ट्र के लोगों को उनके साथ सहयोग न करने की सलाह दी.बालासाहेब की मुंबई और महाराष्ट्र प्रेम और उनके विवादस्पद वयान ने उन्हें राष्ट्रीय स्तर पर ख्याति दिलाई। उनकी हर एक चाल में एक और विशिष्ट छवि स्वजातीय उत्कृष्टता में विश्वास रखना भी दिखती आई है और उनकी इसी सोच ने उन्हें हिंदूवादी नेता से बहुत हद तक प्रांतवाद एवं भाषावाद की राजनीती तक सिमित कर रख दिया। बालासाहेब की मुंबई और महाराष्ट्र प्रेम ने राजनीती का एक अलग सूत्र प्रांतवाद एवं भाषावाद की राजनीती का भी आविष्कार किया.यह बेशक लोकतान्त्रिक भावनाओं को दूषित करता है जो बहस का मुद्दा बना रहेगा परन्तु अविष्कारों के इस युग में बालासाहेब की राजनीती का यह सूत्र काबिल-ए तारीफ है। हमारे देश में राजनीती को तो लोग सदैब हीन दृष्टिकोण से देखते आयें है लेकिन लोकतंत्र में भले ही राजा का चयन जनता करती है पर राज करने के लिए नीति तो अपनानी ही होगी और यही राजनीती किसी के लिए गन्दी,अहितकारी होगी तो किसी के लिए अच्छी,हितकारी भी। जब कोई किसी प्रेमी के प्रेम पर संदेह करता है और उस प्रेमी को अपना प्रेम साबित करना है तो निश्चित तौर पे यह एक भारी बोझ बन जाता है और जो कुछ भी आप करते है,उसकी व्याख्या देना एक पीड़ादायक बोझ होता है.संशय और प्रश्नवाचक रुपी यही परिस्थिति आपको नासाज़ प्रतीत होने लगती है और परिणामस्वरूप यही एक दूरी पैदा करती है,एक विकृति पैदा करती है,एक घृणा पैदा करती है और इसी प्रीत की हठ का परिणाम है बालासाहेब की भाषावाद एवं प्रांतवाद की राजनिति। बालासाहेब शायद देश की राजनितिक हताशा,असुरक्षित सामाजिक परिवेश और मुंबई की व्यवसायिक हैसियत को अच्छी तरह समझते थे और पूरी दुनिया को अपनी इस समझ यानि हिंदुत्व,भाषावाद एवं प्रांतवाद मिश्रित राजनिति से बखूबी अवगत कराया। प्रेम हरी को रूप है त्यों हरी प्रेम स्वरूप। प्रेम हरि का स्वरूप है,इसलिए जहां प्रेम है,वहीं ईश्वर साक्षात रूप में विद्यमान हैं।बिना कोई राजनितिक पद के हमेशा सिंघासन पे विराजमान रहने वाले बालासाहेब ने मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम के जरिये पूरी दुनिया को अपना मुरीद बना लिया। माइकल जैक्सन से लेकर अमिताभ बच्चन और लता मंगेशकर तक। क्षेत्रीय स्तर पर राजनीति कर राष्ट्रीय हैसियत हासिल करना कोई आम बात नहीं है और बालासाहेब की मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम की इसी पराकाष्ठा ने मराठी राजनीती में बाल ठाकरे की सख्सियत को अमर कर दिया। जीवन में ज्ञान और प्रेरणा कहीं से भी एवं किसी से भी मिल सकती है और बालासाहेब की मुंबई,महाराष्ट्र से अगाध प्रेम की राजनीति भी कम प्रेरणादायक नहीं है.बिना कुर्सी या पद की अभिलाषा की राजनीती अगर सीखनी है तो बालासाहेब से सीखे।ये वही राजनीती है जिसने आज भी पूरी मुंबई को एक धागे में पिरोकर रखा है। क्या ख़ास और क्या आम,आज सभी मातोश्री में अपनी उपस्थिति दर्ज कराने को आतुर है। हम श्री बालासाहेब ठाकरे की सेहत के लिए प्रार्थना करते हैं कि वो जल्द से जल्द ठीक हो जाएं।

Wednesday, November 14, 2012

ये रिश्तेदारी,ये दोस्ती-यारी

ये रिश्तेदारी,ये दोस्ती-यारी,
कोई माँ,कोई बाप,
कोई बहन,कोई भाई
कोई बेटा तो कोई बेटी पराई
कोई सखा,कोई सहकर्मी
कोई पिया तो कोई प्रीत पराई
बस वक़्त की जुडती कड़ियाँ है
लम्हों की रंगीन फुलझड़ियाँ है
प्रीत की लौ से दमकती है
वर्ना सुलगाये नहीं सुलगती
वक़्त की बढती पैठ
किसी छलावे से कम नहीं
वक़्त से वक़्त की जुडती पारी
नूतन से पुरातन,किसी बहलावे से कम नहीं
ये रिश्तेदारी,ये दोस्ती-यारी,
बस वक़्त की जुडती कड़ियाँ है
लम्हों की रंगीन फुलझड़ियाँ है
रिश्ते से रिश्तों की गुमां
है स्तम्भ तब तक जवां
बोलते जब तक एक दुसरे की जुबाँ
ये रिश्तेदारी,ये दोस्ती-यारी,
बस वक़्त की जुडती कड़ियाँ है
लम्हों की रंगीन फुलझड़ियाँ है
कई दिवाली बीत गयी और कई आनी वाली है
बदला कुछ भी नहीं
देवता वही,आस्था भी वही
बस बदले तो दीये जलाने वाले है
उत्सव का ये मौसम हमसे बिछड़ने वाला है
विदाई और स्वागत का गवाह बनने वाला है
2012,अब 2013 हो जायेगा
समय फिर समयसीमा बनाएगा
बीते और बर्तमान के इस डोर में
वक्त की कई और कड़ियाँ जुड़ता जायेगा
ये रिश्तेदारी,ये दोस्ती-यारी,और कुछ नहीं
बस वक़्त की जुडती कड़ियाँ है
लम्हों की रंगीन फुलझड़ियाँ है
प्रीत की लौ से दमकती है
वर्ना सुलगाये नहीं सुलगती..:-)


[ आप सभी को भाई बहन के रिश्तो का पावन त्यौहार भाई दूज की हार्दिक शुभकामनाएँ!!! ]

Friday, November 9, 2012

श्री कृष्ण की राधा अब संसद में भी

फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर के एक गीत 'राधा..' का मुद्दा अब संसद में गूंजेगा। विवाद का मुख्य कारण गाने में राधा के लिए 'सेक्सी' शब्द है। ये समझ में नहीं आ रहा है की क्या गाने में राधा के लिए 'सेक्सी' शब्द का मुद्दा हिंदुत्व की गरिमा को बचाने के लिए उठाया जा रहा है या इस तरह के भावनात्मक मुद्दों से आगामी चुनाव के लिए हिन्दुवादी चरमपंथ सोच की नव्ज टटोलने की कोशिश की जा रही है? क्योंकि हिंदुत्व और भाषाओ/शब्दों की विविधताएँ दो अलग विषय है और इनको अलग अलग एवं खंडित ऐनक के जरिये देखना अपने आप और पुरे हिन्दू समाज को गुमराह करने के अतिरिक्त और कुछ नहीं है? हिंदुत्व के इन्ही ठेकेदारों ने जहां फिल्म में राधा को सेक्सी बताने के मुद्दे को संसद में उठाने की तैयारी कर रही है, वहीं उनके ही सांसद राम जेठमलानी ने भगवान राम के बारे में कहा कि भगवान राम एक बेहद बुरे पति थे।मैं उन्हें बिल्कुल ...बिल्कुल पसंद नहीं करता। कोई मछुवारों के कहने पर अपनी पत्नी को वनवास कैसे दे सकता है।लक्ष्मण तो और बुरे थे। लक्ष्मण की निगरानी में ही सीता का अपहरण हुआ और जब राम ने उन्हें सीता को ढूंढने के लिए कहा तो उन्होंने यह कहते हुए बहाना बना लिया कि वह उनकी भाभी थीं। उन्होंने कभी उनका चेहरा नहीं देखा, इसलिए वह उन्हें पहचान नहीं पाएंगे।

हिन्दू धर्म की एक अति महत्वपूर्ण स्तम्भ भगवान श्री राम जिनके आदर्श हिन्दू धर्म के दीप को सदैब प्रज्ज्वलित रखता है, आज हिन्दू धर्म की रोटी सेंक हिंदुत्व के गरिमा की रक्षक होने का दावा करने वाली सेना ही भगवान श्री राम को हिन्दू धर्म का एक बेहद बुरा किरदार मानती है। धर्म के बारे में लोगो की अलग अलग विचार हो सकती है परन्तु हिन्दू धर्म के रक्षको द्वारा ही इस तरह का सार्वजानिक बयान हिन्दू धर्म
के बजूद के ऊपर एक तीखा प्रहार है? यह समस्त हिन्दू धर्म के अनुयायियों को कलंकित करता है? दीपावली पर्व भी भगवान राम के चौदह वर्ष के वनवास के पश्चात अयोध्या वापस आने और असत्य पर सत्य की विजय का जश्न है और माननीय सांसद श्री राम जेठमलानी और उनके सहकर्मियों द्वारा उल्लेखित भगवान राम के चरित्र को देखते हुए हिन्दु-स्थान में दीपावली पर्व प्रतिबंधित हो जानी चाहिए? हिन्दु-स्थान में हिन्दू धर्म की ये दुर्दशा देखकर आर्यावर्त की गरिमामयी इतिहास भी आज फूट फूट कर रो रही होगी और ये बोलती होगा की सत्ता और लोकप्रियता के लोभियों से भरे इस आर्यावर्त गणराज्य ने आज हिन्दू धर्म को ही सरेआम नीलाम करने को आतुर है? अगर आन्दोलन करना है तो इन पर करे जिसकी वजह से हिन्दू धर्म की गरिमा तार तार हुई है? पर हम लोकतंत्र रुपी दुनिया में जी रहे है और यहाँ अभिव्यक्ति की आजादी हर ख़ास ओ आम को है हाँ ये बात दीगर है इस अधिकार के मायने क्या होनी चाहिए-इस आजादी का सदुपयोग जनकल्याण के लिए करना या बर्बादी की बुनियाद मजबूत करना? 

आज राधा के नाम पर हिन्दू राजनीती के लिए सस्ती लोकप्रियता को व्यग्र मनुष्यों की यही प्रजाति होगी जिन्होंने प्राचीन काल में दीनहीन की यह परिभाषा‘शूद्र,गंवार,ढोल,पशु,नारी सकल ताड़ना के अधिकारी’ तय की होगी। पुरुषो की इसी प्रजातियों से उत्पन्न हुए अनेक महाकवियों की रचनाएँ पढेंगे तो आपको इन रचनाओं में स्त्रियों को श्रृंगार रस की प्रमुख नायिका के तौर पर एक व्याख्यात्मक निबंध मात्र दिखाई देगा ? स्पष्ट रूप से अगर ये कहें की इन कवियों की रचनाओ का सूत्र नारी,रूप,श्रृंगार एवं कवि यानी कविता ही रहा है,बिलकुल गलत नहीं होगा। इतिहास गवाह है की इंसानों ने नारी को हमेशा संयोग श्रृंगार,विप्रलंभ श्रृंगार की कठपुतली के तौर पर प्रदर्शित करता आया है। आज के युग और इतिहास में वर्णित रचनाओं में सिर्फ यही अंतर है की आज नारी मोह वजहों और उससे होने वाले लाभ से प्रेरित हो उमड़ता है और प्राचीन काल के महाकवियों ने साहसपूर्वक इसको धर्म से जोड़कर ग्रंथो की शोभा बढाया? राधा और कृष्ण प्रेम की पराकाष्ठा है। राधा भाव किसी भी प्रेम से सर्वोच्च है,राधा भाव एक ऐसी स्थिति है जहाँ ये मालूम करना मुश्किल है की कौन कृष्ण है और कौन राधा! राधा की गरिमा किसी आन्दोलन की मोहताज नहीं है। प्रेम के इस विशाल रूप को एक शब्द के जरिये मापना राधा की गरिमा के साथ साथ श्री कृष्ण भी का अपमान है? हाँ आज के आधुनिक युग की लोकतंत्र प्रणाली की असली मंदिर तो संसद ही है और हमारे वास्तविक मंदिरों के देवताओं की विरासत बिना आधुनिक युग के लोकतंत्र की मंदिर-संसद में परिचय के कैसे बरक़रार रखी जा सकती? राजनितिक त्रिया चरित्र से कामासक्त इन योगियों के अनर्थक,निराधार राधान्दोलन की अभिलाषा से राधा नाम,राधा भाव,हिन्दू धर्म एवं हिन्दु-स्थान के समस्त स्थानीय निवासी को शर्मशार किया है?

आप सभी को दीपावली की अग्रिम बधाई..शुभकामनाएं..मंगलकामनाएं ! जय श्री कृष्ण!!



Tuesday, November 6, 2012

अमेरिकी नागरिको ने अमेरिका को जिताया

अमेरिकी नागरिको ने अमेरिका को जिताया
बराक ओबामा के रूप में पुनः अपना राष्ट्रपति बनाया
मुद्दे वहां भी थे कठिन और गंभीर
गिरती अर्थव्यवस्था और वेरोजगारी
पर अपनी देश की हस्ती को ही अपना राहगीर बनाया
अपने घर की समस्या तो अपनी समस्या है
पर राष्ट्रहित कैसे हो सकता पराया
रंगभेद शब्द है उन्ही  का
और उन्ही लोगो ने इसका मिसाल है बनाया
ऊँचा रहे अमेरिका का नाम पुरे ब्रह्माण्ड में
इस चुनाव में सुनिश्चित कर दिखाया
समस्याएं है तो क्या, देख लेंगे
पर खबरदार, जो किसी ने मेरी हस्ती पे आँख दिखाया
अमेरिकी नागरिको ने अमेरिका को जिताया 
बराक ओबामा के रूप में पुनः अपना राष्ट्रपति बनाया..:-)


श्री कृष्ण की राधा अब न्यायालय में

आज कल करण जौहर की हाल ही में रिलीज फिल्म स्टूडेंट ऑफ द ईयर के एक गीत 'राधा..' को लेकर खूब विवाद चल रहा है। विवाद का मुख्य कारण गाने में एक जगह राधा के लिए 'सेक्सी' शब्द का इस्तेमाल किया गया है। हिंदू जनजागृति समिति नामक एक संस्था ने सेंसर बोर्ड से इस फिल्म को प्रतिबंधित करने की मांग की है। इस संस्था का कहना है कि फिल्म के गीत में राधा के लिए सेक्सी शब्द इस्तेमाल करना तमाम हिंदुओं की भावनाओं के साथ खिलवाड़ है और इससे उन तमाम लोगों की भावनाएं आहत होती हैं जो कृष्ण और राधा की पूजा करते हैं। हमारे देश की तमाम मीडिया भी इस मुद्दे पर संवेदनशील दिख रही है और कुछ तो लाइव बहस भी करा रहे है। लोकतंत्र में नागरिको को अभिव्यक्ति की आजादी अत्याचार,शोषण और अन्याय इत्यादि के मद्देनजर दिए गए है। हमारे देश में हिन्दू धर्म के नाम पर कोई व्यक्ति या व्यक्तियों का समूह एक संस्था स्थापित कर स्वयं से ही हिन्दू धर्म के रक्षक और ठेकेदार मान सकता है। सबसे पहले क्या यह हिंदुत्व/हिन्दू धर्म के स्वास्थ्य के लिए सही है? ये संस्था हिंदू जनजागृति समिति हिंदुत्व या हिन्दू धर्मं के लिए ऐसा क्या कार्य किया है जिससे ये समझा जा सके की ये हिन्दू धर्म के हितो एवं उत्थान के लिए ही कार्य करती? कौन कहता है की 'सेक्सी' शब्द का मतलब सिर्फ और सिर्फ अश्लील होता है? कौन कहता है की जहाँ जहाँ भी 'सेक्सी' शब्द का उपयोग होता है वह सिर्फ और सिर्फ अश्लीलता परोसने के लिए ही होता है? आधुनिकता ने लोगो को बहुत कुछ शिक्षित किया है और उनमे से एक है बहुभाषी होना और वैसे भी ज्यादातर भारतीय अपने मूल भाषा के अतिरिक्त अंग्रेजी तो जानते ही है। अगर 'सेक्सी' शब्द के सम्बन्ध में थोडा अतिरिक्त जानने की कोशिश करेंगे तो आप पाएंगे की अंग्रेजी में 'सेक्सी' शब्द का उपयोग आकर्षक के लिए भी किया जाता है। 'सेक्सी' शब्द का मतलब आकर्षक भी होता है तो इससे ना ही हिन्दू धर्म की कोई क्षति होती है और न ही राधा की गरिमा की। ये क्यों भूल गए की श्री कृष्ण लीला में यह वर्णित है...यशोमती मैया से बोले नंदलाला राधा क्यूं  गोरी मैं क्यूँ काला !!! श्री कृष्ण राधा के लिए यह क्यों बोलते है? हमारे देश में भाषाओँ की राजनीती तो विरासत में है ही और अगर अब इसमें शब्दों की राजनीती भी शामिल हो गयी तो इससे प्रांतवाद/भाषावाद रुपी कुंठित राजनीती को और उर्जा मिलेगी जो न किसी धर्म के लिए हितकारी होगी और ना ही किसी समाज के लिए। आइये हाल ही में रिलीज फिल्म राउडी राठोर का एक गीत आ रे प्रीतम प्यारे,सब आग तो मेरे चोली में रे,पल्लू के नीचे  छुपा  के रखा हूँ,उठा दूं तो हंगामा हो पे जरा गौर करते है और धर्म के इन ठेकेदारों से सवाल करते है...क्या यह गीत मानवीय धर्म के लिए अश्लीलता नहीं परोसता? क्या यह गीत अपरोक्ष रूप में नारीवाद पे अघात नहीं है? ऐसा मालूम पड़ता है की अभिव्यक्ति की आजादी का अब जनसशक्तिकरण से कोई सम्बन्ध नहीं रहा।आवाज़ उठानी है तो कुछ ऐसे मुद्दे पे उठाये जिससे समाज की हस्ती बढे,जनकल्याण की स्तम्भ मजबूत हो? अगर इन तुच्छ मुद्दों पे आवाज़ उठनी शुरू हो गयी तो जिंदगी उबाऊ प्रतीत होने लगेगी? सच तो यह है की हमारे देश में बोलने की आजादी का कुछ ज्यादा ही उपयोग हो रहा है जिसका लाभ सिर्फ और सिर्फ बेकिंग न्यूज़ को व्यग्र मीडिया उठा रही है। राजनीती,भ्रस्टाचार एवं धर्म के समक्ष आम लोग की समस्याए तो बस दफ्न  होकर रह गयी है। लोकप्रियता या राजनीती के लिए धर्म या इश्वर का भावनात्मक दुरूपयोग नहीं होना चाहिए और अगर ऐसा हो भी तो इस पर कोई तबज्जो नहीं दिया जाना चाहिए। मामले की सुनवाई न्यायलय में लंबित है और माननीय न्यायाधीशगण भी 'सेक्सी' शब्द के अर्थ पे ही मथापच्ची करने वाले है जिस तरह हम इस आलेख में कर रहे है। हिन्दू धर्म में अतिशयवादी के लिए कोई जगह नहीं है। यह मैं नहीं, हमारे धर्मग्रन्थ बोलते है। जय श्री कृष्ण!!

Sunday, November 4, 2012

आग का दरिया है और डूब के जाना है

आग का दरिया है और डूब के जाना है
क्या पता जिंदगी की पहेली का हल मिल जाए
क्या पता कोई सपनो का महल मिल जाए
कालिख के निशां मानते है अशुभ
पर गालो के काले तील को अदा ए हुश्न
शब्दों की कारीगरी कही जिंदगी की मालगुजारी तो नहीं
क्यों लम्हे हम लम्हों के दरमियान ढूंढते  है
मोहब्बत अब मुहब्ब्त बन गयी है
और मोहब्बत करने वाले इशकजादे
मीरा,राधा अब इश्कीया हो चली
फिर भी कृष्ण की लीला पूजते है
यह कलयुग नहीं कलायुग है
क्योंकी रातो में ही सुकून के निशाँ ढूंढते है
तेज और तेज भागने की होड़ में सभी यहाँ
अगर ये होता तो क्या होता
अगर ये हुआ तो क्या होगा
इन जुगलबंदियों में मशरूफ इस तरह दीखते है
मानो कर्म, कर्म नहीं अपराध हो
जिंदगी,जिंदगी नहीं एक मियाद हो
अगर ऐसा है तो जी ले इस मियाद को
प्रेम से,सौहार्द से क्योंकि
क्या पता जिंदगी की पहेली का हल मिल जाए
क्या पता कोई सपनो का महल मिल जाए
शुभ रात्रि ..:-)

Thursday, November 1, 2012

इस देश का यारों क्या कहना

ये दौर है घपला घोटालो का
अन्नाओं का केजरिवालो का
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ रहते है नेता मस्ती में
और आम आदमीं कड़की में
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ जनमत को कहते वोट बैंक
और जनता बनी है मैंगो मैन
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ करते सब दुर्गा की पूजा
पर नारी का बलात्कार और अत्याचार
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ हर व्यक्ति को चाहिए सिस्टम
पर सिस्टम ही है वैर का ठौर
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ गरीब पे रोटी हर कोई सेंकता  
पर देने के नाम पर हो हाहाकार
यहाँ मुद्दे चुनाव के होते भ्रस्टाचार
पर करते एक दुसरे से अभद्र व्यवहार
यहाँ मुद्दे चुनाव के होते विकास
पर कब.. मानो हो एक ख्वाब
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ कहते संसद को लोकतंत्र का मंदिर
पर करते वहां अश्लील व्यवहार,कुर्सियों से वार
यहाँ सब को चाहिए सुचना का अधिकार
क्योंकि करना जो है लोगो को गुमराह
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ केंद्रीय सरकार है विकेन्द्रित
और राज्य सरकार दिग्भ्रमित
क्योंकि थोपना है दोष बारम्बार,लगातार
यहाँ मीडिया नहीं एक ख़ुफ़िया है
 
क्योंकि करना जो है सब पर्दाफाश
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना
यहाँ रावन की बुराइयां सब को दिखती
पर करते नहीं राम के आदर्शो पे विचार
यहाँ भिक्षा देना है पुण्य का काम
इससे क्रूर क्या हो सकती मानवीय आधार
यहाँ इंसानियत के कई टुकड़े है
यहाँ वहां सब बिखरे है
इस देश का यारों होय
इस देश का यारों क्या कहना...