एक वक़्त होता है जब जिंदगी बहुत आसां लगती है.जिंदगी की हरेक राहें मानों
जिंदगी की ओर खिचती चली आती है,जिंदगी की हरेक लम्हें जिंदगी के साथ जश्न
में डूबी रहती है.जिंदगी हर वक़्त उड़ने को बेताब रहती है,ऊँचाइयों को छूने
के नित नए नए ख्वाबों में डूबी रहती है.जिंदगी को जिस्म मिला होता है और
जिस्म को जिंदगी.ऊँचाइयों का ख्वाब,उड़ते रहने का ख्वाब,हर वक़्त उत्सव
मानते रहने का ख्वाब ही दोनों की खुशियाँ और जश्न होती है.उत्सव मनाते
मनाते इन दोनों को पता नहीं चलता की वक़्त क्या होता है,इसकी गति कितनी
तीव्र होती है और यह इस उत्सव की अवधि को अपने आगोश में कितनी तीब्रता से
लील लेता है.पर जिंदगी और जिस्म को इनसे क्या लेना.अभी तो ये आमोद कर रहे
होते है.उत्सव भरे लम्हें इन्हें एक दुसरे से जुदा होने नहीं देते ,इन्हें ये ज्ञात होने नहीं देते की ये दोनों एक होकर भी एक नहीं
है.उम्र की बढती आयु एवं समय की तीब्र परन्तु इसकी नीरव चाल धीरे धीरे इन दोनों के
ऊँचाइयों का ख्वाब,उड़ते रहने का ख्वाब पुरे करने का आभास दिलाती है.जिस्म
और जिन्दगी अब एक दुसरे से मुड़ने लगते है,दोनो का एक ही मकसद होता
है,ख्वाबों को पूरा करने का संघर्ष शुरू करना परन्तु समय की मादक चाल के साथ साथ जिंदगी को जिस्म और जिस्म को जिन्दगी का मोह
इन्हें इनसे जुदा करने लगती है.परिवर्तन के गवाह होते ये दोनों एक दुसरे
को समझना शुरू करते है परन्तु ये इतना आसां कहाँ? एक दुसरे को समझने
और ख्वाब पूरा करने का संघर्ष इनको जवान से बुजुर्ग होने को मजबूर करता
है.इन दोनों के लिए अब उत्सव की परिभाषा बदलती हुई मालूम होती है,आमोद का
स्थान अब गंभीरता लेना शरू कर देता है.जिंदगी जो जिंदगी पे इठलाती थी,जिस्म
जो जिस्म पे इतराती थी,आज बेलुत्फ हो चुके वक़्त और संघर्ष की श्रृंखलाएं
इनको एक दुसरे से दूर कर रही होती है.जिस्म की आसां सी जिंदगी अब उलझी हुई
पहेली मालूम पड़ने लगती है.एक दुसरे को न समझ पाने से हताश जिस्म जिंदगी पे
और जिंदगी जिस्म पे संदेह करने लगती है.नजदीकियां अब दूरियों में तब्दील
हो चुकी होती है.अर्श से फर्श बहुत पास मालूम होने लगता है.जिस्म के हर
पैतरें जिंदगी को नासाज लगने लगती है.जिंदगी और जिस्म की वो अटखेलियाँ
कविताओं और शायरियों के जुमले बन चुके होते है. जिंदगी के लिए जिस्म अब वो
जिस्म न रह चुका होता है और जिस्म के लिए जिंदगी अब वो जिंदगी न रह चुकी
होती है.अंततः न जिंदगी जिस्म को समझ पाती है और न जिस्म जिंदगी को... दोनों अब
अलगाव की ओर अग्रसर हो रहे होते है...जिस्म की दुर्बलता के साथ उत्सव भरी ये
जिंदगी क्रूर एवं निर्दयी हो चुकी होती है...एक दुसरे से जुदा होने की
कामना करने लगते है...जिंदगी अब जिस्म बदलने को आतुर हो जाती है....जिंदगी की
क्रूरता के आगे मृत्यु जिन्दगी से ज्यादा प्यारी लगने लगती है...और फिर
जिस्म जिंदगी के रहस्य में जमींदोज़ हो जाता है..... जिंदगी के रहस्य से
अलग हो अब मूड थोडा चेंज करते है और एक खुबसूरत नगमे के साथ आपसे विदा लेते
है.....Hey dear Sunday,I want to sleep in your arms and have fun day.Have a great Sunday ...Cheers !!!
ये जिस्म है तो क्या,
ये रूह का लिबास है,
ये दर्द है तो क्या,
ये इश्क की तलाश है,
फना किया मुझे,
यह चाहने की आस ने,
तरा तरा,
शिक़स्त ही हुआ...
ये जिस्म है तो क्या,
ये रूह का लिबास है,
ये दर्द है तो क्या,
ये इश्क की तलाश है,
फना किया मुझे,
यह चाहने की आस ने,
तरा तरा,
शिक़स्त ही हुआ...
Loved the lines you ended your post with :)
ReplyDeleteThanks a lot Ghazala..:-)
ReplyDeletesunday has gone .. :( .. wish sunday comes sooner
ReplyDeleteBikram's
Hey Bikram....http://negativeattituder.blogspot.in/2012/09/sunday.html..Its Sunday once again:-),Cheers!!!
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