Negative Attitude

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Monday, January 24, 2022

"बिहार मे बहार है" या "बिहार अभी भी बीमार है"?


आपको बिहार की समर्पित विधायिका,कुशल नौकरशाही और न्यायनिष्ठ न्यायतंत्र को समझना है तो आपको कुछ करने की जरूरत नही है/ कोई सर्वेक्षण की जरूरत नहीं है..विधानसभा,सचिवालय और पटना के कार्यालयों को छोड़कर आप किसी भी शहर या गाँव के सरकारी दफ्तर में चले जाइए,आपको समझ मे आ जाएगा की "बिहार मे बहार है" या "बिहार अभी भी बीमार है"?

और लोकतंत्र के चौथे खंबे कहे जाने वाले मीडिया में कुछ को छोड़कर तकरीबन सारी मीडिया जमात या तो सरकार के माथे पर झंडू बाम रगड़ने में व्यस्त हैं या फिर "नीतिश+BJP+सुशील+RJD+ललन+RCP" के राजनैतिक रसायन के रस से बिहार की तकदीर बदलने की वैक्सीन बनाने में जुटे है...आम लोगों से इनका ना तो कोई सरोकार है और ना ही इनको बिहार की फरेबी विधायिका या जलेबी नौकरशाही से कोई दिक्कत है.!!

बिहार की बीमारी "जेपी/लोहिया/कर्पूरी" युग और इनसे उपजी सभी पार्टियों से लेकर अब के BJP युग तक कोई ऐसा राजनैतिक डॉक्टर नहीं बन पाया जो बिहार की बीमारी का सही उपचार कर सके..!!

बिहार की बीमारी से सभी खुश है,मालिक भी नौकर भी और महाबत भी, बीमारी की लाचारी से तो सिर्फ बिहार कराह रहा है..!!

बिहार को विशेष राज्य का दर्जा की माँग फिर शुरू हुई है और विशेष राज्य का दर्जा मिलना भी चाहिए लेकिन भारत सरकार के नीति आयोग से नहीं,भारतीय संविधान की नियतिवाद के संकल्प के प्रयोग से मिलना चाहिए..अन्यथा अभी जो बिहार की बीमारी का इलाज कर रहे है उनको "विशेष" और "दर्जा" दोनो को गटकने में देर थोड़े ना लगेगी...बिहार में शराबबंदी है तो क्या हुआ, "अज़ाब-बंदी" बंद हो तब ना..!!

बिहार को बीमार लिखने में दिल पसीज जाता है लेकिन क्या करें,जहाँ मुख्यमंत्री के दरबार मे जनता होती है और मुख्यमंत्री प्रचार करते हों "जनता के दरबार में मुख्यमंत्री"...बताइए "बिहार" बीमार है या नहीं..!!

#Bihar #StandupBihar

Wednesday, January 12, 2022

"उत्तर प्रदेश चुनाव(2022) विशेष"


Electioneering में जैसे Floating मतदाता की संकल्पना है वैसे ही Floating नेता और अब तो Floating/Godi Media की भी संकल्पना है जो P.P Model पर कार्य करता है..P.P Model यानि  "The Politics of perceptions"..P.P Model की राजनीति की धारणा एक अलग राजनीतिक अभिविन्यास का गठन करती है जिसमें Floating नेता,सत्ता और Floating/Godi Media द्वारा Floating मतदाता को राजनीतिक भागीदारी के क्षेत्र में राजनीति की अवधारणा और राजनीतिक भागीदारी दोनों को दिग्भ्रमित करने की चाल होती है. 

पिछले 2-3 दिनों से उत्तर प्रदेश में जो "दल-बदल" भगदड़ मची है उससे ना तो कमल को फायदा होगा और ना ही साइकिल को..इसका फ़ायदा सिर्फ और सिर्फ जनहित से जुड़े मुद्दों का होगा..!! भावना हिलकोरे तब ज्यादा मारती है जब चुनाव में किसी दीर्घकालीन शासन/anti incumbency प्रमुख कारक होता है,हमेशा नही..!!

ध्यान रखिए, "The Politics of perceptions" गिरगिट के समान होता है। जब हम इसे देखते हैं, तो हम जानते हैं कि यह कुछ समय के लिए स्पष्ट दृष्टि में छिपा रहा होगा,लेकिन जब तक हम इसका पता नहीं लगा लेते, तब तक हम इसके अस्तित्व के बारे में जानते भी नहीं हैं...

2022 चुनाव में "गंगा को माँ बना लेने से या गंगा का बेटा बन जाने" से UP की मतदाता रिझने वाली नहीं है..इस बार UP की सियासत से गंगा कई कठिन सवाल भी पूछने को तैयार है..सत्ता,गोदी मीडिया और P.P Model को इसके लिए तैयार रहना होगा..!!

पिछले कुछ वर्षो से गोदी मीडिया के सहयोग से चुनाव के समय "दल-बदल" भगदड़ के जरिए "The Politics of perceptions" का स्वांग रचाया जाता है और इसी स्वांग को लक्षित कर "गोदी मीडिया" कुछ रहस्यमयी Opinion Polls दिखा "The Politics of perceptions" को "मास्टरस्ट्रोक/ प्रदेश का मिज़ाज" सिद्ध कर चुनाव के कुछ समय पहले से ही मतदाताओं के दिमाग पर काबु पाने की प्रक्रिया शुरू कर देती है...लेकिन नोट कर लीजिए 2022 चुनाव में P.P Model नहीं चलने वाला है..!!

गोदी मीडिया की Electioneering अभी तक "गंगा जमुना" पर ही केंद्रित है लेकिन ये बहुत बड़ी भूल होगी अगर आप सरस्वती को नज़रंदाज कर रहे हैं तो..क्योंकि इस बार दम ख़म के साथ सरस्वती भी मैदान मे है..!!

सत्ता और गोदी मीडिया की Electioneering ने उनके "Visual analog scale" से सरस्वती को विलुप्त दिखाने का जो प्रपंच रचा है वह शर्मनाक है..कहीँ ये भूल तो नहीं गये हैँ की,प्रतियोगिता में सब विजयी होने के लिए भाग लेते है और प्रतियोगिता है तो इसमे जीत भी  होगी और हार की सीख भी होगी...ख़ैर 10th मार्च 2022 ज्यादा दूर नही है..इंतज़ार कीजिए..!!


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Tuesday, January 4, 2022

विकास का फरिश्ता अब आत्मनिर्भर का अधिवक्ता है


महामारी जैसे घोर संकट के समय में अगर देश का मुखिया/ प्रधानमंत्री सभी तरह के कर वसूलने के बाद समाज के सभी वर्गों पर करुणा दिखाने के बजाये,देश की जनता को आत्मनिर्भर बनने के संकल्प लेने लिए बार- बार जोर डालते हो तो..इसका आम आदमी क्या मतलब निकाले?

ज़िल्ल-ए-इलाही,आप,भारत में अच्छे दिन लाने का फरिश्ता बन प्रधानमंत्री की सत्ता हासिल की थी और सोचिए आज आप लोगों को आत्मनिर्भर बनाने के अधिवक्ता बन बैठे?..इसका बहुत स्पष्ट मतलब है की..आपने 2014 से आज तक जो भी वादे किये हैँ या आपका जो भी भक्तकथित मास्टरस्ट्रोक था,वो सभी महज़ एक फ़रेब का पुलिंदा था..लालकिला फतेह करने की चाल थी...राजा औऱ सेंट्रलविस्टा का सुख भोगने का हठ था..गटर से गैस निकालने की आविष्कारक प्रेरणा के श्रोत बनने का ज़ज्बा था, चाय और पकौड़े के व्यावसाय को "जी टीवी" पर प्रसिद्धि दिलाने का दीवानापन था..जटिल GST लागू कर छोटे/मंझोले व्यवसायों की बर्बादी सुनिश्चित कर संसद भवन को रंगीन रोशनियो से सराबोर करने का जुनून था, रातोंरात नोटबंदी कर कमजोर अर्थव्यवस्था को और लाचार बनाने की दिवानगी थी और महामारी के शुरुआत में महज़ चंद घंटों के भीतर लॉकडाउन लगाने का साहसिक निर्णय की फकीरी थी...कैसे भी करके, सत्ता पाने के जिद्द की प्रेरणा के लिए माननीय आप इस सदी के राजनैतिक महानायक हैं..और ऐसा कहने में किसी को कोई संशय भी नहीं होनी चाहिए..!!

इसके साथ-साथ अब तो भारतवासियों को आपके राज्यपाल महामहिम सत्यपाल जी से यह भी पता चल गया कि आप केवल करिश्माई व्यक्तित्व वाले जननेता ही नही लोकप्रिय घमंडी प्रधानमंत्री भी है..!!

आप महान है..आपने भारत को मुफ़्लिसी और बेकारी का जो सौगात दिया है उसके लिए,जनगणमन के आधिनायक आपका सदैव कर्जदार रहेंगे.ये कोई काल्पनिक अवधारणा नहीं है,आपके ही नीति आयोग की रिपोर्ट बताती है.

आपकी अर्थशास्त्र के समझ का भी कोई मुकाबला नहीं है...आप अर्थशास्त्र का सबसे सुलभ मार्ग जानते है की कर वसूली के लिए भारत कितना मासूम एवं दिलदार है....देश में खुदरा महंगाई दर का जलवा इसका जीता जागता उदाहरण है...

ज़रफ़िशाँ है मिरी ज़रख़ेज़ आवामो का बदन..
ज़र्रा ज़र्रा मिरे हिन्दोस्तां का पारस निकला..!!

Monday, May 24, 2021

"श्री रामकृष्ण यादव उर्फ़ लाला रामदेव" और "चौकीदार सरकार" - एक प्रेम कथा

लाला रामदेव कहने को तो योग की शिक्षा देते हैं पर जिस शिद्दत से वह मंझे हुए नेताओं की भाषाओँ के साथ राजनीति करने में लगे हैं और उससे ये तो अंदाजा लग ही जाता है वो आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान पद्धति का परिभव कर हर्ष-वर्धन करने वाले है। विवादों के साथ लाला रामदेव का पुराना नाता है। वह आजकल योग के बारे में कम सत्तासीन मंडली का गुणगान ज्यादा करते हैं। इनकी एक और खूबी है की ये कांग्रेस के खिलाफ अक्सर हमला बोलते हैं,और करें भी क्यों ना,एक पुरुष को अगर स्त्री के वस्त्र पहनकर उसकी ही रची नटलीला, रामलीला मैदान में मजबूरन समाप्त करना पड़े तो हताशा का भाव होना लाज़मी है. पर काले धन की वसूली के उद्देश्य से एक दिव्य संस्था की स्थापना करने वाले लाला रामदेव ही काले धन के बारे में सवाल पूछने पर सूर्य नमस्कार करने लगते है और उनका इन सवालों को अनदेखा करना,उनके असली कपटी चरित्र को प्रमाणित करता है.

 

भारत में "सिर्फ़"आयुर्वेदिक दवाइयों को बेचने के लिए कोई ख़ास वैज्ञानिक योग्यता या ड्रग लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है. अगर आप आयुर्वेदिक के साथ कुछ फूड उत्पाद बेचते हैं तो सिर्फ़ “FSSAI” की प्रमाणिकता लेनी होती है। मतलब भारत में जो आज़ादी पान की दुकान खोलने के लिए है वही आज़ादी आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकान खोलने की है. पिछली सरकारों के मुक़ाबले "नियामक या नियंत्रण" के नाम पर इस सरकार ने जो परिवर्त्तन किये है वो है एक अलग मंत्रालय "आयुष मंत्रालय" और "आयुष मंत्रालय" में सूचीवद्ध वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों को स्वास्थ्य बीमाओं में शामिल किया जाना। लेकिन जैसा की हम सभी जानते हैं की किसी भी स्वास्थ्य बीमाओं में स्वास्थ्य लाभ लेने में खर्च हुई राशि का बीमा दावा करना हो तो कम से कम 24 घंटे का हॉस्पिटलाइजेशन जरुरी होता है.अब बताइये भारत में कितने ऐसे शहर हैं जहाँ "आयुष मंत्रालय" में सूचीवद्ध वैकल्पिक चिकित्सा पद्धतियों की विकल्पयोग्य मात्रा में व्यवस्थित अस्पताल है? हाँ ये जरूर है की बीमा कंपनियों को अपने "नियम और शर्तो" को कुछ आकर्षक बनाने का अवसर ज़रूर मिला है लेकिन यह सिर्फ ऐसा है जैसे "किसी ब्रांड के रिफाइंड ऑइल" को किसी ख़ास "विटामिन से fortified" बताकर बेचने के लिए प्रचार-प्रसार करना।

 

"आयुष मंत्रालय" बनने से एक जो सबसे बड़ा व्यापारिक परिवर्तन हुआ है वो है राशन की दूकान में भी आप लाला रामदेव की पतंजलि एवं कुछ अन्य धर्मगुरुओं द्वारा निर्मित दवाएँ "Over the counter(OTC) और Scheduled Drug" के अवकलन से मुक्त सलाह लेकर या खुद से आयुर्वेदिक औषधि ख़रीद सकते है.ये ठीक वैसा ही हुआ जैसे की पश्चिमी सभ्यताओं/देशों में राशन के दूकान में "बियर" का विक्रय होना। जब "आयुष मंत्रालय" नहीं भी था तब से ही डाबर,वैद्यनाथ,झंडू,हिमालया आदि जैसी औषधि निर्माता कम्पनियों की दवाईयाँ मुख्यतौर तौर पर या ज़्यादातर "Chemist & Druggist" की दुकानों पर ही मिलती हैं.और इनके वैज्ञानिक तौर पे जाँची- परखी औषधियों का उपयोग "आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" के चिकित्सक भी कई गंभीर बिमारियों के उपचार के लिए औषधनिर्देशन करते भी है.डाबर,वैद्यनाथ,झंडू,हिमालया आदि जैसी आयुर्वेदिक औषधि निर्माता कम्पनियों ने कभी भी "आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" को निम्न नहीं बताया और ना ही "आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" ने आयुर्वेदा को बक़वास बताया। लेकिन लाला रामदेव ने "आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" को बिना नैतिक मूल्यांकन के एक झटके में बक़वास करार कर दिया क्योंकि ये कोरोनिल से कोरोना भगाने वाला बाबा है,जो ये बोलेगा वही सरकार मानेगा क्योंकि भारत में निवेश करने वाली विदेशी कम्पनियाँ,ज़हर से उपजे अनाज से नूडल्स बनाती है और ये "स्वदेशी लाला" मिट्टी से उपजेशरबती गेँहू” से नूडल्स बनाती है! नैतिकता और प्रतियोगिता इस "स्वदेशी लाला" को बिलकुल पसंद नहीं है और चुकी ये "स्वदेशी लाला सरकार का समृद्ध सुदामा" हैं इनको सरकार से पूरी आज़ादी है. कभी कभी तो ये लगता है की कही ये स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ संयुक्त प्रेस वार्ता कर इस वर्ष धनतेरस के दिन ये ना बोल दे की मैं धन्वन्तरि का अवतार हूँ?

 

ख़ैर, गंभीर बातों को छोड़िये,अब लाला रामदेव के पतंजलि से जुड़े  कुछ और कथाओं पर ध्यान डालते हैं...

 

साल 2011 की बात है, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भारत सरकार से कैंसर,एड्स के इलाज के दावे करने के लिए पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई करने की अपील की। इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा की कि ये महज मार्केटिंग रणनीतियाँ थीं,जिनकी किसी वैज्ञानिक आधार से पुष्टि नहीं हुई है। 2012 में, पतंजलि (नमक, सरसों का तेल) से खाद्य नमूने गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहे और उन पर गलत ब्रांडिंग का भी आरोप लगाया गया। सतत लंबित कार्यवाई और 2014 में सत्तारूढ़ सरकार में बदलाव के बाद भी पतंजलि समूह के गुणवत्ता की जाँच होनी चाहिए थी परन्तु इसके विपरीत इस समूह को बाज़ार विस्तार का खुला छूट मिला इसका श्रेय लाला रामदेव और भारत के प्रधानमंत्री के बीच मैत्रीपूर्ण संबंधों को दे तो कोई ज़्यादा आश्चर्य नहीं होनी चाहिए। इसको समझने के कुछ उदाहरण भी है, 2015 में, पतंजलि कोFSSAI” से बिना किसी अनुमोदन या लाइसेंस के आटा-नूडल्स लॉन्च करने के लिए कारण बताओ नोटिस मिला। पर इस अनुशासनहीनता के लिए इस समूह पर कोई कार्रवाई नहीं की गई। यहाँ तक भारतीय रक्षा मंत्रालय के कैंटीन स्टोर विभागों ने पतंजलि के आंवला के रस की बिक्री को निलंबित कर दिया,क्योंकि उत्पाद को स्थानीय खाद्य-परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा उपभोग के लिए अनुपयुक्त घोषित किया गया था।

 

रासलीला के इस व्याख्यान में जो लाला रामदेव की पतंजलि की सबसे ख़ास बात यह है की "पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड" के उत्पादों की सूचि में आटा,तेल,चंपा अगरबत्ती,नारियल तेल से लेकर शिलाजीत कैप्सूल एवं कई संवेदनशील आयुर्वेदिक औषधियाँ तक आतीं है. इसका मतलब ये हुआ की पतंजलि का जो भी प्रोडक्ट है वो आयुर्वेदिक है....यानी की आयुर्वेदा चिकित्सा पद्धति पर आधारित। भारत के कानून के मुताबिक़ बिना ड्रग्स लाइसेंस के आयुर्वेद की औषधियों के साथ साथ राशन दोनों बेच सकते हैं.....मतलब आटा,चावल एवं खाने के तेल के साथ साथ आयुर्वेदिक दवाइयाँ भी आसानी से रोज़मर्रा की अनिवार्य चीज़ों (FMCG) की केटेगरी में शामिल हो गयी.... यहाँ ना कोई नियामक की चिंता है और ना ही कोई क़ानूनी वचनबद्धता....लाला रामदेव के अलावा ऐसा खुला अवसर है किसी भी अन्य आयुर्वेदिक औषधि निर्माता को है...यही है विज्ञान के नाम पर व्यवसाय का वो योग और संयोग का प्रेम प्रसंग जो लाला रामदेव और चौकीदार सरकार के बीच चल रही हैं.....लाला रामदेव के पतंजलि की कोरोना की करोनिल नामक "अवैज्ञानिक" दवा के लॉन्च में दो कैबिनेट मंत्रियों की मौज़ूदगी इस प्रेम प्रसंग की भाव भंगिमा थी.... अवैज्ञानिक बोलने कारण ये है की देश की किसी भी राज्य की स्वास्थ्य समितियों ने कोरोना मरीजों के किसी भी चरण के उपचार के लिए “कोरोनिल” को अपने उपचार औषधि किट में शामिल नहीं किया,जो कोरोना जाँच में संक्रमित पाये जाने के बाद सरकार "होम आइसोलेशन" वाले मरीज़ों को निःशुल्क देती है!,

 

लाला रामदेव की पतंजलि द्वारा छुट्टे सांड की तरह किये जा रहे आयुर्वेद व्यापार या आयुर्वेद के खुले व्यापार के प्रति सरकार की ये रास-लीला आयुर्वेद विज्ञान को अज्ञानता की ओर ले जायेगी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के 18000 से ज़्यादा वर्षों के मानव सेवा के स्वर्णिम इतिहास को केवल भारत में ही नहीं वल्कि वैश्विक पटल पर भी अपमानित करेगी।

 

Sunday, September 13, 2020

"बिहार विधानसभा चुनाव-2020"

बिहार विधानसभा चुनाव को सुशांत,रिया,कंगना,जाति,नेहरु की विफलता,पटेल की लौह छवि,हिंदु एवं मुसलमान आदि से दूर रखें अन्यथा बिहार एवं बिहारियों को फिर से बिहारी भावना में डुबाकर उल्लू बनाया जाएगा...सुशांत,रिया एवं कंगना को न्याय दिलाने के लिए न्यायपालिका है...सुशांत,रिया एवं कंगना आर्थिक तौर पर समृद्ध भी है तभी तो भारत से लेकर लेकर अमेरिका तक कैंपेन चल रहा है..


ग्रामीण प्रधान राज्य बिहार को, विकास के नाम पर बिहार का बकबास ना करे...क्या बिहारियों को अनंत काल के लिए प्रवासी बनकर ही अपने परिवार का भरण पोषण करना है..??


स्वर्गीय सुशांत के मामले में दोषियों को पता लगाने के लिए महामारी के तमाम वंदिशो के वावजूद स्थानीय पुलिस, मीडिया आदि से लेकर उच्च/सर्वोच्च  न्यायालय तक मुस्तैदी से कार्यरत है....बिहारियों, दिग्भ्रमित ना हो..!!!


बिहारियों, आपको आंशु बहाना ही है तो आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की बिहार अभी भी भारत सरकार के विकसित होने के सभी मानकों पर देश का सबसे पिछड़ा राज्य है...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की असंख्य प्रवासी बिहारी मजदुर तालाबंदी के दौरान रोड पर मर गए...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की बिहार में कोरोना महामारी से जितनी भी मौते हुईं उनमे से लगभग 75% मौते समुचित इलाज ना मिल पाने से हुई है...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की भ्रस्टाचार के नाम पर एकलौता सजायाफ्ता नेता बिहार से ही क्यूँ है?? 


राजनैतिक "ब्रांडिंग" के षड़यंत्र में लालू यादव को भ्रस्टाचार का दोषी करार दिए जाने से राजद की बर्बादी से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की राजनीति की दीर्घकालीन छवि और बिहार की राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता नष्ट हुई है.परिणाम आपके समक्ष है-आईएएस/आईपीएस उत्पादक कहे जाने वाले राज्य में आज क्षेत्रीय लीडरशिप के नाम पर सिर्फ और सिर्फ श्री नीतीश कुमार है..?? लालू यादव को नष्ट करने के चक्कर में बिहार की राजनीति का सेकंड लाइन आज निःसंतान हो गया है.लालू यादव की क्षेत्रीय राजनीति भले ही सभी जनसमूहों के लिए कल्याणकारी थी या ना थी ये निस्संदेह गंभीर प्रश्न रहा है परन्तु ये बिहार के राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के चेक और बैलेंस लिए एक महत्वपूर्ण,शक्तिशाली एवं प्रभावशाली स्तंभ जरूर थे. आप लालु यादव का संसद में दी गयी सभी आधिकारिक भाषणों को सुने और बिहार की राष्ट्रीय राजनीति पर इनकी नजरिये का इनके "जीते-जी""psychological autopsy" करें तो आप समझ पायेंगें की बिहार की राष्ट्रीय राजनीति पर चेक और बैलेंस लिए आज की राजनीति में लालु यादव का अनुपलब्ध होना एक शुन्य जैसी स्थिति या निर्वात सा है या नहीं? 


लालु यादव भ्रस्टाचार के दोषी होंगे लेकिन उनकी राजनैतिक विचारधारा में कोई भ्रष्टाचार,कोई घोटाला नहीं था.वास्तव में लालु यादव इकलौते ऐसे सख्सियत होंगे जिसने राजनैतिक विचारधारा से समझौता कर कभी लाभ-हानि का आशियाना बदला हो! देश के तमाम क्षेत्रीय सियासी संस्थाओं के प्रबंध निदेशक को जानने की कोशिश करें तो आपको पता चलेगा की लालु के अलावा लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने कभी ना कभी अपनी राजनैतिक विचारधाराओं के साथ समझौता कर लाभ-हानि का आशियाना बदला है! लालु यादव का सजायाफ़्ता सिद्ध किया जाना यह उद्घोष करता है की लोकतान्त्रिक राजनीति में "अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता" की संस्कृति की पैठ कितनी मज़बूत हो चुकी है. लालु यादव का सजायाफ़्ता होने से पहले ऐसा लगता था की राजनीति में भ्रस्टाचार/घोटाला भरा हुआ है लेकिन लालु यादव के सजायाफ़्ता होने के बाद ऐसा लगने लगा है भारतीय राजनीति में सतयुग आ गया है तभी तो 2019 लोकसभा में निर्वाचित सभी सांसदों में 43% सांसदों पर आपराधिक मामले है जो आज़ाद भारत के लोकतंत्र की ऐतिहासिक उपलब्धि भी है. पिछले कई दशकों से भारत की साक्षरता दर में जिस तरह से इज़ाफ़ा हुआ है ठीक उसी तरह से आपराधिक आरोपों वाले जनप्रतिनिधियों की भी वृद्धि हुई है..?? पता नहीं देश के बढ़ती साक्षरता का प्रभाव अभी तक भारतीय लोकतंत्र की पारिस्थितिकी तंत्र पर क्यों नहीं पड़ी है? शायद साक्षरता के कुछ अवगुण भी हो या किसी ख़ास क्षेत्र में शिक्षा का प्रभाव कम  होता हो और जिसे शिक्षाविद अब तक पहचान नहीं पाये है.....यह शोध का विषय होना चाहिए??


पिछले १० वर्षो में बिहार से बाहर जाकर काम करने वालों की संख्या अवश्य कम हुई है लेकिंग ये बिहार की विकास गाथा नहीं है वल्कि इसका असली हीरो भारत सरकार की मनरेगा जैसी प्रभावशाली योजनाएं है. सिर्फ बिजली से विकास होना होता तो उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति बिहार से सदैव बेहतर रही है लेकिन उसकी स्थिति देख लीजिये- "प्रति व्यक्ति आय" के मानकों पर नीचे से दूसरा नंबर पर यानी पिछड़ापन में बिहार के ठीक बाद..!!


बिहार में विकास, सिर्फ विकास की "राजनैतिक ब्रांडिंग" से नहीं होगी, बिहारियों को देखना होगा की उन्हें सिर्फ टीवी चैनलों,चुनावी पोस्टरों या पटकथा वाली जन संवाद या मन की बात में बिहार के विकास का विज्ञापन चाहिए या वास्तविक में बिहार का विकास चाहिए। ऐसा विकास जो वर्चुअल दुनिया का विकल्प नेताओं के साथ साथ आपके जीविकोपार्जन के लिए भी सुनिश्चित कर सके!


बिहार में "टीवी वाले घरों" की संख्या देश की सभी बड़े राज्यों के तुलना में कम है और इसीलिए देश के सभी कॉर्पोरेट्स बिहार को ''मीडिया डार्क'' स्टेट कहते है  लेकिन आज बिहार की राजनैतिक पार्टियों से पास देश की सभी पार्टियों की तुलना में "टीवी" इतना ज्यादा मात्रा में है की वो आने वाले चुनावी दिनों में हर नुक्कड़ पर टीवी लगा वर्चुअल रैली करेंगे। विकास तो हुआ ही है लेकिन बिहार राज्य का नहीं,बिहार की सियासी संस्थाओं का हुआ है.


बिहारियों, आप "2020 विधान सभा" चुनाव में राजनैतिक विचारधारा और चुनावी घोषणाओं को त्याग "भारतीय संविधान" को देखिये और परखिये की कौन आपको Fast -Track मोड में संविधानप्रदत अधिकारों को दिला विकसित बना पायेगा। आप ऐसे बिहार का संकल्प ले की बिहार ही आपका जन्मभुमि ,कर्मभूमी एवं मोक्षभूमि हो.आप प्रवासी कहलाकर हाईवे पर तालाबंदी जैसी परिस्थिति में कीड़े-मकोड़े की तरह न मरें,आपको प्रवासी के नाम पर महानगरों में ट्रेन से धकेल कर मार ना दिया जाये। बिहार के सफलतम अभिनेता शेखर सुमन को कभी भी बिहारियों की ये आवाज सुनाई नहीं दी,ना ही पीड़ा हुई जितना की वो स्वर्गीय सुशांत की मौत से व्यथित हुए है..?? 


बिहार की राजनीति में आज एक और अपूरणीय क्षति हुई है...बिहार के प्रभावशाली नेता एवं यूपीए सरकार में मंत्री के तौर पर मनरेगा को गाँव गाँव पहुंचाने वाले श्री रघुवंश प्रसाद सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि🙏! आप मनरेगा के कार्यो के लिए सदैव याद रहेंगे!


जय बिहार!!


#बिहारविधानसभाचुनाव२०२० #बिहारविधानसभा२०२० #BiharElection2020 #Bihar #Patna #BiharVidhanSabha2020 #BiharAssemblyElection2020

Saturday, June 6, 2020

हम "सामाजिक" होते हुए भी "शारीरिक दूरी" से कोरोना से लड़ सकते हैं...

जैसे जैसे कोरोनोवायरस संकट प्रत्येक गुजरते दिन के साथ भयंकर होता रहा है, हर किसी के दिमाग में एक ही बात चल रही है की "यह सब कब समाप्त होगा?" सही जवाब है- किसी के पास कोई सुराग नहीं है। लेकिन पता नहीं दुनिया के तमाम प्रबुद्धजन यह बताने से क्यों हिचक रहे कि यह दुनिया का अंत नहीं है।

संसार की प्रत्येक प्रणाली जो मानव के सहज अस्तित्व के लिए जिम्मेदार है, "पोस्ट कोविड", "न्यू नॉर्मल" और "सोशल डिस्टेंसिंग" आदि जैसे कथनों को बेचने में काफी व्यस्त हैं ,मानो कल पूरी तरह से कोविड मुक्त नई दुनिया होगी? सत्य तो यह है कि हमें अभी लंबे समय तक कोरोना के साथ रहने की आदत डालनी होगी।

इन दिनों,सभी सोशल/मास मीडिया प्लेटफ़ॉर्म पर वेबिनार और बहुत सारे छोटे डेटा एवं अंतर्दृष्टि की होड़ लगी हुई है जो मुख्य रूप से मंदी, कम उत्पादन, बिक्री और खपत के "डर" के साथ साथ कोरोना काल के बाद मानव शरीर में नए तंत्रिका तंत्र होने को भी प्रोत्साहित कर रही है.


इसमें तरह के अंतर्दृष्टि में नया क्या है? यह स्पष्ट है कि जब जनता को लंबी अवधि के लिए लॉकडाउन का एकमात्र विकल्प दिया जाता है,तो उपभोक्तावाद के सभी स्तरों पर "उपभोग/खपत" तो बंद हो ही जाएगी।


यहाँ सवाल यह है कि क्या हमें ऐसी अंतर्दृष्टि / धारणाओं पर विश्वास करने की ज़रूरत है जो "भय" को प्रोत्साहित करती हैं? भारत में "CoVid प्रबंधन" के लिए अब तक के सभी शोध और सांख्यिकीय मॉडलिंग निराशाजनक रहे हैं? और यह हमें एक मजबूत संदेश देता है कि जब पूरा पारिस्थितिकी तंत्र अशांत अवस्था से गुजर रहा हो,तो कोई भी शोध या धारणा केवल भ्रमित करने का कार्य ही करेगी।

भारत सरकार की "CoVid19 प्रबंधन टीम" कोरोना वायरस की तरह ही अनूठा है और इन्होने अंततः यह पाया है कि महामारी से लड़ने के लिए रोकथाम ही एकमात्र उपकरण है। महामारी को नियंत्रित करने के लिए लॉकडाउन लगाया गया था, लेकिन यह "8pm कठिन फैसले" करने की आदत को भुनाने के लिए एक राजनीतिक अवसरवाद साबित हुआ और इसके परिणामस्वरूप "भय" और "मनुष्यों पर विश्वास की कमी" के रूप में एक और संक्रामक मनोवैज्ञानिक बीमारी उत्पन्न हो गयी। हम कानूनों को निष्क्रिय करके लॉकडाउन को अनलॉक तो कर सकते हैं लेकिन "सोशल डिस्टेंसिंग" को बनाए रखने के डर से जो "समाज में भय और विश्वास की कमी" हुई है इसका इलाज़ ढूंढ़ निकालना एक कठिन कार्य होगा।

यदि मास्क,हाथ की स्वच्छता और शारीरिक दुरी ही "कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी" के लिए मुख्य सुरक्षात्मक उपकरण हैं, तो हमें स्थायी रूप से "सोशल डिस्टेंसिंग" शब्द का उपयोग करना बंद कर देना चाहिए अन्यथा मनुष्य,कोवीड-19/CoVid19/कोरोना महामारी से कम,मनुष्यों से अधिक डरेगा और जिसका अर्थव्यवस्था पर निश्चित तौर पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा। ।

हमारे नेतागण और तमाम गणमान्य बुद्धिजीवियों को इस महामारी के दौरान "शारीरिक दुरी" के जगह पर "सामाजिक दुरी" शब्द कैसे अप्रासंगिक है और इसका जो त्रुटिपूर्ण उपयोग किया जा रहा है,के बारे में बड़े पैमाने पर जन संपर्क/जन संचार शुरू करना चाहिए ताकि मनुष्यों के बीच विश्वास क़ायम किया जा सके. 

हम, मनुष्य सामाजिक होने के लिए यंत्रस्थ हैं। हम "सामाजिक" होकर भी "शारीरिक दूरी" को बनाए रखते हुए महामारी से आसानी से लड़ सकते हैं। कृपया "सामाजिक दुरी /Social Distancing " शब्द का डर मत पाले, महामारी कुछ समय में दूर हो जाएगी लेकिन हमें सामाजिक ही रहना है .. !!


मास्क का उपयोग करें,हाथ को साफ़ करते रहे,सार्वजनिक स्थानों पर "शारीरिक दूरी" बनाए और प्रधान चौकीदार के कथनानुसार हमेशा आत्मनिर्भर बनने के लिए प्रयासरत रहे..!