बिहार विधानसभा चुनाव को सुशांत,रिया,कंगना,जाति,नेहरु की विफलता,पटेल की लौह छवि,हिंदु एवं मुसलमान आदि से दूर रखें अन्यथा बिहार एवं बिहारियों को फिर से बिहारी भावना में डुबाकर उल्लू बनाया जाएगा...सुशांत,रिया एवं कंगना को न्याय दिलाने के लिए न्यायपालिका है...सुशांत,रिया एवं कंगना आर्थिक तौर पर समृद्ध भी है तभी तो भारत से लेकर लेकर अमेरिका तक कैंपेन चल रहा है..
ग्रामीण प्रधान राज्य बिहार को, विकास के नाम पर बिहार का बकबास ना करे...क्या बिहारियों को अनंत काल के लिए प्रवासी बनकर ही अपने परिवार का भरण पोषण करना है..??
स्वर्गीय सुशांत के मामले में दोषियों को पता लगाने के लिए महामारी के तमाम वंदिशो के वावजूद स्थानीय पुलिस, मीडिया आदि से लेकर उच्च/सर्वोच्च न्यायालय तक मुस्तैदी से कार्यरत है....बिहारियों, दिग्भ्रमित ना हो..!!!
बिहारियों, आपको आंशु बहाना ही है तो आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की बिहार अभी भी भारत सरकार के विकसित होने के सभी मानकों पर देश का सबसे पिछड़ा राज्य है...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की असंख्य प्रवासी बिहारी मजदुर तालाबंदी के दौरान रोड पर मर गए...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की बिहार में कोरोना महामारी से जितनी भी मौते हुईं उनमे से लगभग 75% मौते समुचित इलाज ना मिल पाने से हुई है...आप इस बात के लिए आंशु बहाये या प्रलाप करे की भ्रस्टाचार के नाम पर एकलौता सजायाफ्ता नेता बिहार से ही क्यूँ है??
राजनैतिक "ब्रांडिंग" के षड़यंत्र में लालू यादव को भ्रस्टाचार का दोषी करार दिए जाने से राजद की बर्बादी से ज्यादा राष्ट्रीय स्तर पर बिहार की राजनीति की दीर्घकालीन छवि और बिहार की राजनैतिक प्रतिद्वन्द्विता नष्ट हुई है.परिणाम आपके समक्ष है-आईएएस/आईपीएस उत्पादक कहे जाने वाले राज्य में आज क्षेत्रीय लीडरशिप के नाम पर सिर्फ और सिर्फ श्री नीतीश कुमार है..?? लालू यादव को नष्ट करने के चक्कर में बिहार की राजनीति का सेकंड लाइन आज निःसंतान हो गया है.लालू यादव की क्षेत्रीय राजनीति भले ही सभी जनसमूहों के लिए कल्याणकारी थी या ना थी ये निस्संदेह गंभीर प्रश्न रहा है परन्तु ये बिहार के राष्ट्रीय स्तर पर राजनीति के चेक और बैलेंस लिए एक महत्वपूर्ण,शक्तिशाली एवं प्रभावशाली स्तंभ जरूर थे. आप लालु यादव का संसद में दी गयी सभी आधिकारिक भाषणों को सुने और बिहार की राष्ट्रीय राजनीति पर इनकी नजरिये का इनके "जीते-जी""psychological autopsy" करें तो आप समझ पायेंगें की बिहार की राष्ट्रीय राजनीति पर चेक और बैलेंस लिए आज की राजनीति में लालु यादव का अनुपलब्ध होना एक शुन्य जैसी स्थिति या निर्वात सा है या नहीं?
लालु यादव भ्रस्टाचार के दोषी होंगे लेकिन उनकी राजनैतिक विचारधारा में कोई भ्रष्टाचार,कोई घोटाला नहीं था.वास्तव में लालु यादव इकलौते ऐसे सख्सियत होंगे जिसने राजनैतिक विचारधारा से समझौता कर कभी लाभ-हानि का आशियाना बदला हो! देश के तमाम क्षेत्रीय सियासी संस्थाओं के प्रबंध निदेशक को जानने की कोशिश करें तो आपको पता चलेगा की लालु के अलावा लगभग सभी क्षेत्रीय पार्टियों ने कभी ना कभी अपनी राजनैतिक विचारधाराओं के साथ समझौता कर लाभ-हानि का आशियाना बदला है! लालु यादव का सजायाफ़्ता सिद्ध किया जाना यह उद्घोष करता है की लोकतान्त्रिक राजनीति में "अस्वस्थ प्रतिद्वन्द्विता" की संस्कृति की पैठ कितनी मज़बूत हो चुकी है. लालु यादव का सजायाफ़्ता होने से पहले ऐसा लगता था की राजनीति में भ्रस्टाचार/घोटाला भरा हुआ है लेकिन लालु यादव के सजायाफ़्ता होने के बाद ऐसा लगने लगा है भारतीय राजनीति में सतयुग आ गया है तभी तो 2019 लोकसभा में निर्वाचित सभी सांसदों में 43% सांसदों पर आपराधिक मामले है जो आज़ाद भारत के लोकतंत्र की ऐतिहासिक उपलब्धि भी है. पिछले कई दशकों से भारत की साक्षरता दर में जिस तरह से इज़ाफ़ा हुआ है ठीक उसी तरह से आपराधिक आरोपों वाले जनप्रतिनिधियों की भी वृद्धि हुई है..?? पता नहीं देश के बढ़ती साक्षरता का प्रभाव अभी तक भारतीय लोकतंत्र की पारिस्थितिकी तंत्र पर क्यों नहीं पड़ी है? शायद साक्षरता के कुछ अवगुण भी हो या किसी ख़ास क्षेत्र में शिक्षा का प्रभाव कम होता हो और जिसे शिक्षाविद अब तक पहचान नहीं पाये है.....यह शोध का विषय होना चाहिए??
पिछले १० वर्षो में बिहार से बाहर जाकर काम करने वालों की संख्या अवश्य कम हुई है लेकिंग ये बिहार की विकास गाथा नहीं है वल्कि इसका असली हीरो भारत सरकार की मनरेगा जैसी प्रभावशाली योजनाएं है. सिर्फ बिजली से विकास होना होता तो उत्तर प्रदेश में बिजली की स्थिति बिहार से सदैव बेहतर रही है लेकिन उसकी स्थिति देख लीजिये- "प्रति व्यक्ति आय" के मानकों पर नीचे से दूसरा नंबर पर यानी पिछड़ापन में बिहार के ठीक बाद..!!
बिहार में विकास, सिर्फ विकास की "राजनैतिक ब्रांडिंग" से नहीं होगी, बिहारियों को देखना होगा की उन्हें सिर्फ टीवी चैनलों,चुनावी पोस्टरों या पटकथा वाली जन संवाद या मन की बात में बिहार के विकास का विज्ञापन चाहिए या वास्तविक में बिहार का विकास चाहिए। ऐसा विकास जो वर्चुअल दुनिया का विकल्प नेताओं के साथ साथ आपके जीविकोपार्जन के लिए भी सुनिश्चित कर सके!
बिहार में "टीवी वाले घरों" की संख्या देश की सभी बड़े राज्यों के तुलना में कम है और इसीलिए देश के सभी कॉर्पोरेट्स बिहार को ''मीडिया डार्क'' स्टेट कहते है लेकिन आज बिहार की राजनैतिक पार्टियों से पास देश की सभी पार्टियों की तुलना में "टीवी" इतना ज्यादा मात्रा में है की वो आने वाले चुनावी दिनों में हर नुक्कड़ पर टीवी लगा वर्चुअल रैली करेंगे। विकास तो हुआ ही है लेकिन बिहार राज्य का नहीं,बिहार की सियासी संस्थाओं का हुआ है.
बिहारियों, आप "2020 विधान सभा" चुनाव में राजनैतिक विचारधारा और चुनावी घोषणाओं को त्याग "भारतीय संविधान" को देखिये और परखिये की कौन आपको Fast -Track मोड में संविधानप्रदत अधिकारों को दिला विकसित बना पायेगा। आप ऐसे बिहार का संकल्प ले की बिहार ही आपका जन्मभुमि ,कर्मभूमी एवं मोक्षभूमि हो.आप प्रवासी कहलाकर हाईवे पर तालाबंदी जैसी परिस्थिति में कीड़े-मकोड़े की तरह न मरें,आपको प्रवासी के नाम पर महानगरों में ट्रेन से धकेल कर मार ना दिया जाये। बिहार के सफलतम अभिनेता शेखर सुमन को कभी भी बिहारियों की ये आवाज सुनाई नहीं दी,ना ही पीड़ा हुई जितना की वो स्वर्गीय सुशांत की मौत से व्यथित हुए है..??
बिहार की राजनीति में आज एक और अपूरणीय क्षति हुई है...बिहार के प्रभावशाली नेता एवं यूपीए सरकार में मंत्री के तौर पर मनरेगा को गाँव गाँव पहुंचाने वाले श्री रघुवंश प्रसाद सिंह जी को भावभीनी श्रद्धांजलि🙏! आप मनरेगा के कार्यो के लिए सदैव याद रहेंगे!
जय बिहार!!
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