लाला रामदेव कहने को तो योग की शिक्षा देते हैं पर जिस शिद्दत से वह मंझे हुए नेताओं की भाषाओँ के साथ राजनीति करने में लगे हैं और उससे ये तो अंदाजा लग ही जाता है वो आयुर्वेदिक चिकित्सा विज्ञान पद्धति का परिभव कर हर्ष-वर्धन करने वाले है। विवादों के साथ लाला रामदेव का पुराना नाता है। वह आजकल योग के बारे में कम सत्तासीन मंडली का गुणगान ज्यादा करते हैं। इनकी एक और खूबी है की ये कांग्रेस के खिलाफ अक्सर हमला बोलते हैं,और करें भी क्यों ना,एक पुरुष को अगर स्त्री के वस्त्र पहनकर उसकी ही रची नटलीला, रामलीला मैदान में मजबूरन समाप्त करना पड़े तो हताशा का भाव होना लाज़मी है. पर काले धन की वसूली के उद्देश्य से एक दिव्य संस्था की स्थापना करने वाले लाला रामदेव ही काले धन के बारे में सवाल पूछने पर सूर्य नमस्कार करने लगते है और उनका इन सवालों को अनदेखा करना,उनके असली कपटी चरित्र को प्रमाणित करता है.
भारत
में "सिर्फ़"आयुर्वेदिक दवाइयों को बेचने के लिए कोई ख़ास वैज्ञानिक योग्यता या ड्रग लाइसेंस की आवश्यकता नहीं है. अगर आप आयुर्वेदिक
के साथ कुछ फूड
उत्पाद बेचते हैं तो सिर्फ़
“FSSAI” की प्रमाणिकता लेनी होती है। मतलब
भारत में जो आज़ादी
पान की दुकान खोलने
के लिए है वही
आज़ादी आयुर्वेदिक दवाइयों की दुकान खोलने
की है. पिछली सरकारों
के मुक़ाबले "नियामक या नियंत्रण" के
नाम पर इस सरकार
ने जो परिवर्त्तन किये
है वो है एक
अलग मंत्रालय "आयुष मंत्रालय" और
"आयुष मंत्रालय" में सूचीवद्ध वैकल्पिक
चिकित्सा पद्धतियों को स्वास्थ्य बीमाओं
में शामिल किया जाना। लेकिन
जैसा की हम सभी
जानते हैं की किसी
भी स्वास्थ्य बीमाओं में स्वास्थ्य लाभ
लेने में खर्च हुई
राशि का बीमा दावा
करना हो तो कम से कम
24 घंटे का हॉस्पिटलाइजेशन जरुरी
होता है.अब बताइये
भारत में कितने ऐसे
शहर हैं जहाँ "आयुष
मंत्रालय" में सूचीवद्ध वैकल्पिक
चिकित्सा पद्धतियों की विकल्पयोग्य मात्रा
में व्यवस्थित अस्पताल है? हाँ ये
जरूर है की बीमा
कंपनियों को अपने "नियम
और शर्तो" को कुछ आकर्षक
बनाने का अवसर ज़रूर
मिला है लेकिन यह
सिर्फ ऐसा है जैसे
"किसी ब्रांड के रिफाइंड ऑइल"
को किसी ख़ास "विटामिन
से fortified" बताकर बेचने के लिए प्रचार-प्रसार करना।
"आयुष
मंत्रालय" बनने से एक
जो सबसे बड़ा व्यापारिक
परिवर्तन हुआ है वो
है राशन की दूकान
में भी आप लाला
रामदेव की पतंजलि एवं
कुछ अन्य धर्मगुरुओं द्वारा
निर्मित दवाएँ "Over the counter(OTC) और Scheduled Drug" के अवकलन से
मुक्त सलाह लेकर या
खुद से आयुर्वेदिक औषधि
ख़रीद सकते है.ये
ठीक वैसा ही हुआ
जैसे की पश्चिमी सभ्यताओं/देशों में राशन के
दूकान में "बियर" का विक्रय होना।
जब "आयुष मंत्रालय" नहीं
भी था तब से
ही डाबर,वैद्यनाथ,झंडू,हिमालया आदि जैसी औषधि
निर्माता कम्पनियों की दवाईयाँ मुख्यतौर
तौर पर या ज़्यादातर
"Chemist &
Druggist" की
दुकानों पर ही मिलती
हैं.और इनके वैज्ञानिक
तौर पे जाँची- परखी
औषधियों का उपयोग "आधुनिक
विज्ञान-एलोपैथी" के चिकित्सक भी
कई गंभीर बिमारियों के उपचार के
लिए औषधनिर्देशन करते भी है.डाबर,वैद्यनाथ,झंडू,हिमालया आदि जैसी आयुर्वेदिक
औषधि निर्माता कम्पनियों ने कभी भी "आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" को निम्न नहीं
बताया और ना ही
"आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" ने आयुर्वेदा को
बक़वास बताया। लेकिन लाला रामदेव ने
"आधुनिक विज्ञान-एलोपैथी" को बिना नैतिक
मूल्यांकन के एक झटके
में बक़वास करार कर दिया क्योंकि
ये कोरोनिल से कोरोना भगाने
वाला बाबा है,जो
ये बोलेगा वही सरकार मानेगा
क्योंकि भारत में निवेश
करने वाली विदेशी कम्पनियाँ,ज़हर से उपजे
अनाज से नूडल्स बनाती
है और ये "स्वदेशी
लाला" मिट्टी से उपजे “शरबती
गेँहू” से नूडल्स बनाती
है! नैतिकता और प्रतियोगिता इस
"स्वदेशी लाला" को बिलकुल पसंद
नहीं है और चुकी
ये "स्वदेशी लाला सरकार का
समृद्ध सुदामा" हैं इनको सरकार
से पूरी आज़ादी है.
कभी कभी तो ये
लगता है की कही
ये स्वास्थ्य मंत्रालय के साथ संयुक्त
प्रेस वार्ता कर इस वर्ष
धनतेरस के दिन ये
ना बोल दे की
मैं धन्वन्तरि का अवतार हूँ?
ख़ैर,
गंभीर बातों को छोड़िये,अब
लाला रामदेव के पतंजलि से
जुड़े कुछ
और कथाओं पर ध्यान डालते
हैं...
साल
2011 की बात है,
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भारत सरकार
से कैंसर,एड्स के इलाज
के दावे करने के
लिए पतंजलि के खिलाफ कार्रवाई
करने की अपील की।
इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने कहा की
कि ये महज मार्केटिंग
रणनीतियाँ थीं,जिनकी किसी
वैज्ञानिक आधार से पुष्टि
नहीं हुई है। 2012 में,
पतंजलि (नमक, सरसों का
तेल) से खाद्य नमूने
गुणवत्ता परीक्षण में विफल रहे
और उन पर गलत
ब्रांडिंग का भी आरोप
लगाया गया। सतत लंबित
कार्यवाई और 2014 में
सत्तारूढ़ सरकार में बदलाव के
बाद भी पतंजलि समूह
के गुणवत्ता की जाँच होनी
चाहिए थी परन्तु इसके
विपरीत इस समूह को
बाज़ार विस्तार का खुला छूट
मिला । इसका श्रेय
लाला रामदेव और भारत के
प्रधानमंत्री के बीच मैत्रीपूर्ण
संबंधों को दे तो
कोई ज़्यादा आश्चर्य नहीं होनी चाहिए।
इसको समझने के कुछ उदाहरण
भी है, 2015 में,
पतंजलि को “FSSAI” से
बिना किसी अनुमोदन या
लाइसेंस के आटा-नूडल्स
लॉन्च करने के लिए
कारण बताओ नोटिस मिला।
पर इस अनुशासनहीनता के
लिए इस समूह पर
कोई कार्रवाई नहीं की गई।
यहाँ तक भारतीय रक्षा
मंत्रालय के कैंटीन स्टोर
विभागों ने पतंजलि के
आंवला के रस की
बिक्री को निलंबित कर
दिया,क्योंकि उत्पाद को स्थानीय खाद्य-परीक्षण प्रयोगशाला द्वारा उपभोग के लिए अनुपयुक्त
घोषित किया गया था।
रासलीला
के इस व्याख्यान में
जो लाला रामदेव की
पतंजलि की सबसे ख़ास
बात यह है की
"पतंजलि आयुर्वेद लिमिटेड" के उत्पादों की
सूचि में आटा,तेल,चंपा अगरबत्ती,नारियल
तेल से लेकर शिलाजीत
कैप्सूल एवं कई संवेदनशील
आयुर्वेदिक औषधियाँ तक आतीं है.
इसका मतलब ये हुआ
की पतंजलि का जो भी
प्रोडक्ट है वो आयुर्वेदिक
है....यानी की आयुर्वेदा
चिकित्सा पद्धति पर आधारित। भारत
के कानून के मुताबिक़ बिना
ड्रग्स लाइसेंस के आयुर्वेद की
औषधियों के साथ साथ
राशन दोनों बेच सकते हैं.....मतलब आटा,चावल
एवं खाने के तेल
के साथ साथ आयुर्वेदिक
दवाइयाँ भी आसानी से रोज़मर्रा की अनिवार्य
चीज़ों (FMCG) की केटेगरी
में शामिल हो गयी.... यहाँ
ना कोई नियामक की चिंता है और ना ही कोई क़ानूनी वचनबद्धता....लाला रामदेव के
अलावा ऐसा खुला अवसर
है किसी भी अन्य
आयुर्वेदिक औषधि निर्माता को
है...यही है विज्ञान के
नाम पर व्यवसाय का
वो योग और संयोग
का प्रेम प्रसंग जो लाला रामदेव
और चौकीदार सरकार के बीच चल
रही हैं.....लाला रामदेव के
पतंजलि की कोरोना की
करोनिल नामक "अवैज्ञानिक" दवा के लॉन्च
में दो कैबिनेट मंत्रियों
की मौज़ूदगी इस प्रेम प्रसंग
की भाव भंगिमा थी....
अवैज्ञानिक बोलने कारण ये है की
देश की किसी भी राज्य की स्वास्थ्य समितियों ने कोरोना मरीजों के किसी भी चरण के उपचार
के लिए “कोरोनिल” को अपने उपचार औषधि किट में शामिल नहीं किया,जो कोरोना
जाँच में संक्रमित पाये जाने के बाद सरकार "होम आइसोलेशन" वाले मरीज़ों को
निःशुल्क देती है!,
लाला रामदेव की पतंजलि द्वारा छुट्टे सांड की तरह किये जा रहे आयुर्वेद व्यापार या आयुर्वेद के खुले व्यापार के प्रति सरकार की ये रास-लीला आयुर्वेद विज्ञान को अज्ञानता की ओर ले जायेगी और आयुर्वेद चिकित्सा पद्धति के 18000 से ज़्यादा वर्षों के मानव सेवा के स्वर्णिम इतिहास को केवल भारत में ही नहीं वल्कि वैश्विक पटल पर भी अपमानित करेगी।
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