आज जन्माष्टमी है...आज कृष्णाष्टमी
है..आज गोकुलाष्टमी है..यमुना जरूर आज उफान पर होगी तेरे चरण स्पर्श करने
को.आज मेघ भी गरजेगा तेरे स्वागत में.ज्ञान के सागर,प्रेम का
प्रतीक,मित्रता की तीर्थ,न्याय के मूर्ति हे नाथ,हे लड्डू गोपाल,हे
द्वारकाधीश,हे मुरारी,हे कन्हैया,हे गोविन्द,हे देवकी पुत्र,हे नन्द लाल,हे
श्री राधे कृष्ण,हे मीरा के गिरधर गोपाल
आपके चरणों में हमारा कोटि कोटि वंदन नमन.आज तेरे इस ब्रह्माण्ड में मनुष्य
विकल्पों की तलाश में लगा है.नव ग्रहों की जानकारियां जुटा रहा है.इसे
मनुष्य के अनु -- संधान की जिज्ञासा कहे या तेरे इस धरती से उबने की व्याकुलता.आज मनुष्य के लिए तीव्रता ही संजीवनी है.जीवन यापन की तीव्रता,जीवन संचालन की तीव्रता,सफलता और यश की तीव्रता,अर्थवान होने की तीव्रता..तेरे मनुष्य को तीव्र
गति से भागने का अब बोध हुआ है या असुरक्षित होते मानव जीवन की
मजबूरी.मनुष्य के साधारण ज्ञान में विज्ञान के समावेश से मानवीय जीवन
संचालन की प्रक्रिया और सरल होनी चाहिए परन्तु आज मनुष्य मनुष्य का ही
शत्रु बन बैठा है.सर्व - नाश,विनाश,विघात के लिए मनुष्य इसी विचित्र ज्ञान
का उपयोग कर रहा है.यह तेरे कलयुग का चरमोत्कर्ष है.हे पालनहार तू ही दैत्य हो चुके मनुष्य को सुधार सकता है,मार्गदर्शित कर सकता है.हे संपूर्ण संसार के पालनहार कोटि कोटि विनती है हमारी, अवतरित हो जा.बचा ले इस संसार को...बचा ले इस संसार को..! जय श्री कृष्ण ! ! जय राधे गोविन्द !
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