मामला तहलका के तेजपाल का हो या तेजपाल के तहलका का, तहलका तो होना ही था.सत्ता के प्रभावरूपी चादर से सुचना नियंत्रण या इसको छिपाना कोई नयी बात नहीं है और घोडा जैसे घास से दोस्ती नहीं कर सकता तो सत्ता तहलका यानि सुचना बम से कैसे दोस्ती कर सकता है? कहते है एक स्त्री के लिए महाभारत जैसा विशाल युद्ध हुआ था जिसमे धर्म को भी अपनी वजूद और महत्ता सिद्ध करने के लिए कई बार शोषित और शर्मशार होना पड़ा था. सत्ता और इससे जुड़े प्रपंच में विजयी भवः होने के लिए सदियों से स्त्रियों की सम्मोहन शक्ति का उपयोग बिना तपस्या वाली ब्रह्मास्त्र के रूप में किया जाता रहा है और फिर गोआ तो विश्व की प्रमुख पर्यटन स्थल में शुमार है जहाँ न तो इंद्र कि कमी है और न ही उसकी अपसराओं क़ी.THINK FEST जैसी वैचारिक मंथन के नाम पर सत्ता का मतलब और सत्ता के मायने का विपणन हेतु गोआ जैसे पर्यटन स्थल से माक़ूल स्थान हो ही नहीं सकता है और जिस तरह से पूरा प्रकरण मीडिया और राजनितिक गलियारो में हर दिन एक नयी ऊर्जा प्राप्त कर रहा है मानो कोई एक दुर्लभ ज्योतिषीय विशिष्टता वाली घटना घटित हुई हो.नर शोषण हो या नारी शोषण, निश्चित तौर पर यह घृणित अपराध है किन्तु जिस प्रकार से इस शोषण को दर्शाया जा रहा है वो कही न कही वैचारिक खोखलेपन का भी संकेत देता है जिसमे कही कोई अदृश्य शक्ति इस नारी शक्ति का इस्तेमाल कर फिर से उस काल्पनिक दौर में ले जा रहा है जहाँ स्त्रियों को भगवान् तो मानते भी थे लेकिन जरूरत पड़ने पर स्त्रीत्व कि अग्नि परीक्षा भी लेते थे. नारी शोषण पर सजग होना हमारे समाज के लिए अत्यंत सकारात्मक सन्देश है लेकिन इसका वर्गीकरण इसी नारी को न्याय के तराजू में दो बटखरे से तौले जाने पर मजबूर करता है. आज के दौर क़ी शिक्षित और कामकाजी स्त्रियाँ इतनी भोली भी नहीं हो सकती क़ी अपने मौलिक अधिकारो और इससे जुड़े क़ानूनी प्रक्रियायों से अनभिज्ञ हो और जिस तरह से किस्तो में इससे सम्बधित घटनाएं मीडिया के जरिये सामने आ रही है वो इन्ही जिम्मेदारियों,भावनाओ को बार बार चोट पहुँचा रही है कि कब तक इस देश कि राजनीती सत्ता,माफिया और सम्मोहन के इस खेल से इंसानियत को मोहरे कि तरह इस्तेमाल कर इंसानियत को ही कटघरे में खड़ा कर लुंगी डांस पर उत्सव मनाता रहेगा। प्रजातंत्र में विपक्ष को मारना मतलब तानाशाह को समर्थन करना है और मीडिया तो प्रजातंत्र में वो व्यवस्था है जो न सिर्फ सिक्के उछालती है वल्कि प्रतियोगी और प्रतियोगिता का तृतीय अंपायर का रोल भी अदा करती है.अपराधी तरुण तेजपाल है ये सिर्फ ब्रेकिंग न्यूज़,FIR और पुलिस के चहलकदमी से सिद्ध नहीं होता.... SU-DOKU का खेल तो पूरा होने दो.... मतलब भी समझ आ जाएगा और मायने भी,तहलका में जो तहलका हुआ है जनाब …
Negative Attitude
Wednesday, November 27, 2013
Wednesday, November 13, 2013
ओपिनियन पोल
ओपिनियन पोल है बकवास लेकिन,कोई है ख़ास तो कोई है निराश..
मज़मा यूँ ही नहीं लगता जम्हूरियत में,गुल्लक इकठ्ठा यूँ ही नहीं होता...
तिज़ारत करने वाले जानते है कि बकवास की भी कीमत होती है..
बस समझना ये है कि बेचने वाला या ग्राहक- है कौन ख़ास...
ओपिनियन का बाज़ार,विरोधी है हज़ार,बकवास बिकेगा ऊँची कीमत मे...
देखना क्योंकि जम्हूरियत में नहीं व्यर्थ जाती है आस...
ओपिनियन की जमाखोरी है अभी,बस समय का इन्तेजार है..
है (मज़मा+ओपिनियन पोल)२ का समीकरण और चुनाव है बिलकुल पास...
हल ढूढ़ने में लगा रहे है सभी कयास,यह समीकरण है जो इतना ख़ास..
वाह वाह सुनने के लिए बकवास कहना पड़ता है वर्ना राजनीती में क्या होता है बकवास...
यहाँ होतें सभी ख़ास,न होते है कोई निराश और होते हम आस पास..
इस समीकरण का हल जरुरी है बस यही मज़बूरी है...
जनता को पटाना है,मज़मा भी लगाना है..
कब मौसम बदल जाए, होता नहीं इसका आभास...
कब कहा ओपिनियन पोल है बकवास,बस लोगो को ग़ुमराह करने का है ये प्रयास..
मज़मा यूँ ही नहीं लगता जम्हूरियत में,गुल्लक इकठ्ठा यूँ ही नहीं होता...
तिज़ारत करने वाले जानते है कि बकवास की भी कीमत होती है..
बस समझना ये है कि बेचने वाला या ग्राहक- है कौन ख़ास...
ओपिनियन का बाज़ार,विरोधी है हज़ार,बकवास बिकेगा ऊँची कीमत मे...
देखना क्योंकि जम्हूरियत में नहीं व्यर्थ जाती है आस...
ओपिनियन की जमाखोरी है अभी,बस समय का इन्तेजार है..
है (मज़मा+ओपिनियन पोल)२ का समीकरण और चुनाव है बिलकुल पास...
हल ढूढ़ने में लगा रहे है सभी कयास,यह समीकरण है जो इतना ख़ास..
वाह वाह सुनने के लिए बकवास कहना पड़ता है वर्ना राजनीती में क्या होता है बकवास...
यहाँ होतें सभी ख़ास,न होते है कोई निराश और होते हम आस पास..
इस समीकरण का हल जरुरी है बस यही मज़बूरी है...
जनता को पटाना है,मज़मा भी लगाना है..
कब मौसम बदल जाए, होता नहीं इसका आभास...
कब कहा ओपिनियन पोल है बकवास,बस लोगो को ग़ुमराह करने का है ये प्रयास..
Monday, November 4, 2013
शर्त लगा बैठा संघर्ष से,हर्ष का क्या
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नम तो कभी है तारा रमपम
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नाम तो कभी है तारा रमपम
तेरे मौसम,तेरे रिश्ते,तेरी रवायतें वाह क्या हिज़रत है
उत्सव आने का हर्ष और उत्सव मनाने का संघर्ष
उत्सव के इस मौसम में लगी वही उत्सव की ही शर्त है
तारीखों का ये हिज़रत कल किसी और प्रदेश में
बेताब है उत्सव के इसी शर्त को निभाने में
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नम तो कभी है तारा रमपम
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है
पीढ़ियां भी तो हिज़रत ही है जो रवायतों में है दिखती
और इन्ही रवायतों में दीखता है वो गुमां,वो तल्खी
कही इसकी शर्त है,कही इसका हर्ष है और कही संघर्ष
आज हिज़रत पर बंदिशे है बहोत,रवायतें तो कम होंगी ही
शर्त लगा बैठा संघर्ष से,हर्ष का क्या
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नम तो कभी है तारा रमपम
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है..
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नाम तो कभी है तारा रमपम
तेरे मौसम,तेरे रिश्ते,तेरी रवायतें वाह क्या हिज़रत है
उत्सव आने का हर्ष और उत्सव मनाने का संघर्ष
उत्सव के इस मौसम में लगी वही उत्सव की ही शर्त है
तारीखों का ये हिज़रत कल किसी और प्रदेश में
बेताब है उत्सव के इसी शर्त को निभाने में
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नम तो कभी है तारा रमपम
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है
पीढ़ियां भी तो हिज़रत ही है जो रवायतों में है दिखती
और इन्ही रवायतों में दीखता है वो गुमां,वो तल्खी
कही इसकी शर्त है,कही इसका हर्ष है और कही संघर्ष
आज हिज़रत पर बंदिशे है बहोत,रवायतें तो कम होंगी ही
शर्त लगा बैठा संघर्ष से,हर्ष का क्या
कभी ख़ुशी,कभी गम,कभी आँखें है नम तो कभी है तारा रमपम
ऐ जिंदगी तेरे हर कदम में दीखता कुछ और है
हर बात का अपना इक मिज़ाज़ है और उसी का दमखम है..
Saturday, November 2, 2013
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