
मुंबई बोले तो एक महानगर के साथ साथ एक विशाल भीड़ कहना भी गलत नहीं होगा और जैसा की हम सब मानते है की मुंबई की भौगोलिक स्थिति ही यहाँ की परिवहन व्यवस्था को अत्यधिक जटिल बनाता है.तभी तो मुंबई लोकल ट्रेन को लाइफलाइन शब्द से संबोधित किया जाता है. क्यों न लाइफलाइन शब्द से सम्मानित की जाए एक यही तो है जो लगभग प्रतिदिन ६०-७० लाख मुम्बईकर्स को समय पर उनको उनके कार्यालय पहुचाती है.मुंबई में लम्बी दुरी की यात्रा के लिए मुख्यतः चार [१)छत्रपति शिवाजी टर्मिनस/२)मुंबई सेंट्रल/३) बांद्रा टर्मिनस/४) लोकमान्य तिलक टर्मिनस] रेलवे स्टेशन है. उल्लेखित चारो स्टेशनों में एक है लोकमान्य तिलक टर्मिनस. विस्तृत चर्चा करने से पहले थोडा इसका परिचय दे दूं - लोकमान्य तिलक टर्मिनस पूर्व में कुर्ला टर्मिनस के नाम से जाना जाता था.लोकमान्य तिलक टर्मिनस कुर्ला और तिलक नगर उपनगरीय रेलवे स्टेशनों के पास स्थित हैं. यह मुंबई शहर के एकदम भीतर माना जाने वाला रेलवे टर्मिनस में से एक है एवं मध्य रेलवे के अंतर्गत आता है. रेलवे के हुक्मरानों ने इस रेलवे स्टेशन को छत्रपति शिवाजी टर्मिनस(CST) में बढती भीड़ को संतुलित करने के लिए बनाया है. यहाँ से देश के विभिन्न राज्यों के लिए लगभग ५०-६० ट्रेनों की आवागमन होती है. ये है लोकमान्य तिलक टर्मिनस का संक्षिप्त परिचय. इस स्टेशन के निर्माण का उद्द्देश्य,रेलवे के सीमित संशाधन आदि सब बाते तर्कसंगत है परन्तु यहाँ यात्री सुबिधा नाम पर एक व्यवस्थित नौटंकी है जो हर समय यात्रिओ को लूटनेकी फ़िराक में लगी रहती है.यात्रा की शुरुआत होती है स्टेशन पहुचने से लेकिन आप चाहे मुंबई के किसी भी दिशा से आ रहे हो,लोकमान्य तिलक टर्मिनस स्टेशन तक पहुच पाना ही यात्रा के नाम पर काला पानी टाइप के सजा सामान है. वैसे हमारे देश की विशाल जनसँख्या अगर असल में किसी संस्थान के लिए निरंतर लौटरी है वो है भारतीय रेलवे.स्वतंत्रता के ६५ वर्ष बाद भी पीने का स्वच्छ पानी मुहैया करने में पूरी तरह से नाकाम भारतीय रेलवे प्रतिदिन अनगिनत वेटिंग लिस्ट टिकट बुक कर और फिर इसके कैन्सिलेसन से प्रतिदिन करोडो रुपये यात्रयों से छलती है.यह तो रेलवे के कई छुपे प्रभारो में से एक है.अगर आप तह तक जायेंगे तो लुट खसोट की विशालकाय व्यवस्था मिल जाएगी.अरे हम तो लोकमान्य तिलक स्टेशन से अलग ही हो गए.लोकमान्य तिलक स्टेशन सेंट्रल रेलवे की लुट खसोट की महत्वकांछी उपलब्धियों में से एक है.मुंबई के टैक्सी,ऑटो वाले लोकमान्य तिलक स्टेशन का नाम सुनते ही गिद्ध की नजर से लुटने को आतुर सा दिखने लगते है.मोटा बिल हो इसके लिए लोकमान्य तिलक स्टेशन की ओर जानी वाली रास्तो को लेकर अचानक क्रिएटिव होने लगते है.ऐसा एहसास दिलाने लगते है मनो लोक्मान्य तिलक मुंबई में नहीं किसी और शहर में स्थित है.यह तो हुई रोड से लोकमान्य तिलक तक का नज़ारा.आइये अब जरा लोकल ट्रेन से लोकमान्य तिलक पहुचने का नज़ारा महसूस करते है.अगर आपको वेस्टर्न सबअर्व से लोकमान्य तिलक पहुचना है तो तीन बार,जी हाँ तीन बार लोकल ट्रेन बदलनी पड़ेगी,और अगर आप सेंट्रल सबअर्व से लोकमान्य तिलक आ रहे है तो लगभग दो बार लोकल ट्रेन बदलनी पड़ेगी.लम्बी दुरी की यात्रा होगी तो भारी भरकम लगेज लाजमी है,अब ट्रेन चेंज करनी है तो भारी भरकम लगेज के साथ प्लेटफ़ॉर्म बदलने के लिए सीढियों को नजरअंदाज़ कैसे कर सकते है.मान लीजिये की किसी तरह लुटते पिटते लोकमान्य तिलक टर्मिनस पहुच जाते है.तो यहाँ फिर शुरू होगी आपके दुसरे चरण का संघर्ष.यहाँ की पूछताछ सेवा मनो यात्री सुविधा न यात्रिओं पे उपकार हो,अज्ञानी रेल सुरक्षा बल जैसे यात्रियों को प्रताड़ित करने को वचनवद्ध हो और शेष बची सत्कार लोकमान्य तिलक स्टेशन पे मंडराते नशेड़ियों की टोली संपूर्ण कर देगी. रेलवे के पास जगह का अभाव है और लोकमान्य तिलक स्टेशन इसी आभाव की देन है परन्तु इसका मतलब ये तो हीं की यात्रयों के साथ मवेशियों से भी बदतर तरीके से व्यवहार किया जाए.इनके सुविधाओं का बिलकुल भी ध्यान ना रखा जाए.साधारण श्रेणी के क्या कहने, इसमें यात्रा करने वाले यात्रियों की रेल सुरक्षा बल की दमनकारी एवं कड़ी निगरानी वाली लम्बी कतार स्वतंत्र भारत की एक मेड इन इंडिया ब्रिटिश राज की छवि प्रस्तुत करती है.जब एक रेलवे स्टेशन शहर के अन्दर ही इतना दुर्गम स्थान बना हो तो ऐसे स्थान पर रेलवे स्टेशन क्यों? क्या रेल प्रशासन की ये जिम्मेदारी नहीं है की लोकमान्य तिलक पहुचने या लोकमान्य तिलक से शहर के अन्य स्थान तक जाने के लिए यातायात के सुलभ एवं वहन करने योग्य साधन की व्यवस्था करे. क्या विश्व के चौथे सबसे बड़े नेटवर्क वाली भारतीय रेल प्रशासन मूलभूत यात्री सुबिधायें मुहैया कराने में इतना अक्षम है?